कर्मचारी भर्ती पर केन्द्र के फैसले पर अमल क्यो नही

Created on Monday, 31 October 2016 07:41
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले कुछ अरसे से मन्त्रीमण्डल की हर बैठक मे विभिन्न सरकारी विभागों में खाली चले आ रहे पदों को भरने का निर्णय लेने का क्रम शुरू किया है। इस क्रम में अब तक हजारों की संख्या में खाली पदो को भरने के आदेश जारी हो चुके हैं। खाली पदों के अतिरिक्त हजारों की संख्या में नये पदों का सृजन भी किया गया है। सरकार में किसी भी पद को भरने के लिये एक तय प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें राज्य का लोक सेवा आयोग प्रथम और द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित पदों को भरने की जिम्मेदारी निभाता है। गैर राजपत्रित पदों को भरने के लिये अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड अधिकृत है। इन दोनां अदारों के अतिरिक्त और कोई कर्मचारी भर्ती के लिये अधिकृत नहीं है। इन अदारों से हटकर केवल आऊट सोर्सिंग के नाम पर ही भर्ती की जा सकती है और कई विभागों में यह आऊट सोर्सिंग चल रही है। तय प्रक्रिया के तहत किसी भी पद को भरने के लिये कम से कम चार से पांच माह तक का समय लग जाता है। जहां कहीं पहले लिखित परीक्षा और फिर साक्षात्कार की प्रक्रिया रहेगी वहां पर यह समय एक वर्ष तक का भी हो सकता है। इस प्रक्रिया से अनुमान लगाया जा सकता है कि जो पद अब सृजित और विज्ञापित होंगे उन्हें भरने के लिये कितना समय लग जायेगा।
हिमाचल में रोजगार के नाम पर सबसे बड़ा अदारा सरकार और सरकारी नौकरी ही है। सरकारी नौकरी में भर्ती के लिये प्रदेश में 1993 से 1998 के बीच चिटों पर भर्ती का कांड हो चुका है। इसमें सारी तय प्रक्रियाओं को अंगूठा दिखाते हुए हजारों की संख्या में चिटों पर भर्तीयां की गई थी। इन भर्तीयों को लेकर बिठाई गयी जांच रिपोर्टो पर ईमानदारी से कारवाई की जाती तो यहां पर हरियाणा के ओमप्रकाश चौटाला की तर्ज पर कई लोगों की गिरफ्तारी हो जाती। चिटों पर भर्ती कांड के बाद हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का कांड हुआ जिसमें अब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर गिरफ्तारीयां हुई है। इन दोनां प्रकरणों से यह प्रमाणित होता है कि हिमाचल में रोजगार का सबसे बड़ा साधन सरकार ही है और उसमें हर बार घपला होने की संभावना बराबर बनी रहती है। प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों का आंकडा लाखों में है और इसी कारण जिन क्लास फोर के पदों के लिये वांच्छित योग्यता मैट्रिक या प्लस टू रहती हैं वहां पर इनके लिये एम ए और पी एच डी तक के आवेदन आ रहे हैं। उद्योग विभाग में तो अधिकारिक तौर पर यह सामने आ चुका है कि क्लास फोर के लिये बी ए, एम ए और पीएचडी के लिये अधिमान देने के लिये अलग अंक रखे गये थे। पटवारियों और सहकारी बैंक की परीक्षाओं पर प्रश्न चिन्ह लग चुके हैं।
प्रदेश में 2017 में विधान सभा चुनाव होने है। लेकिन यह चुनाव तय समय से पहले भी हो सकते है इसकी संभावनाएं भी बराबर बनी हुई हैं बल्कि जिस ढंग से मुख्यमन्त्री ने पिछले दिनों प्रदेश का तूफानी दौरा किया है और सरकार की उपलब्धियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया उससे इन अटकलों को और बल मिला है। इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि इस समय जो नौकरियों का पिटारा खोला गया है वह केवल विधानसभा चुनावों को सामने रखकर ही किया जा रहा है। इससे सरकार की नीयत और नीति को लेकर भी यह सवाल उठते है कि इस समय हजारों की संख्या में जो पदों को भरने की स्थिति आयी है क्या यह पद अभी खाली हुए या पिछले तीन वर्षो से खाली चले आ रहे थे? जो पद अब सृजित किये गये हैं उनके बिना पहले कैसे काम चल रहा था? इसलिये इन पदों के भरे जाने पर अभी भी सन्देह है क्योंकि यदि किसी कारण से विधानसभा चुनावों की स्थिति आ जाती है तो यह सारी प्रक्रिया आचार संहिता के नाम पर रूक जायेगी। ऐसे में यदि सरकार इन पदों को भरने के लिये गंभीर और ईमानदार है तो तुरन्त प्रभाव से केन्द्र की तर्ज पर तीसरी और चौथी श्रेणी के पदों को भरने के लिये परीक्षा और साक्षाकार को समाप्त करके केवल शैक्षणिक योग्यता के अंको के आधार पर ही चयन किया जाना चाहिये। प्रदेश सरकार केन्द्र के इस फैंसले को अपनाने से टाल मटोल करती आ रही है और इसी से उसकी नीयत पर सन्देह पैदा हो जाता है।