शिमला! उरी और पठानकोट के आतंकी हमलों का पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंक के ट्रेनिंग पर हमला करके जिस तरह का जबाव पाकिस्तान को दिया गया है उसके लिये प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी बधाई के पात्र है। क्योंकि एक देश के लम्बे अरसे से आतंकी गतिविधियों का शिकार होता आ रहा था जिसके पठानकोट और उरी ताजा उदाहरण थे। सैंकड़ों लोग इस आतंक का शिकार होकर अपने प्राण गंवा चुके है। देश के दो प्रधानमंत्री एक मुख्य मन्त्री और संसद तक आतंक का शिकार हो चुके है। हर आतंकी घटना के पीछे सीमा पार से समर्थन और साजिश दोनों के प्रमाणिक सबूत मिलते रहे है। लेकिन पाकिस्तान ने हर बार इन सबूतों को मानने से इन्कार किया। विश्व समुदाय भी आतंक की निन्दा करने से अधिक कुछ नही कर पाया। पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगनों की सूची लगातार पाकिस्तान को दी जाती रही लेकिन इसका असर उस पर नहीं हुआ। उसके समर्थन और सरंक्षण में आतंक की फौज लगातार बढ़ती रही उसके लिये बाकायदा ट्रेनिंग कैंप संचालित होते रहे। भारत भी सबूत सौंपने और माकूल जबाव देने के ब्यानो से आगे नही बढ़ा। देश का राजनीतिक नेतृत्व इस तरह की कारवाई करने का फैसला नहीं ले पाया। जबकि इस तरह का फैसला लेना लगातार बाध्यता बनता जा रहा है। ऐसा फैसला लेने से पहले अपने पडा़ेसी देशों और विश्व समुदाय के सामने पाकिस्तान की इस हकीकत का खुलासा रखा जाना आवश्यक था। इसके लिये प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद जिस तरह से विदेश यात्राओं की रणनीति अपनाई और उसकी शुरूआत सार्क देशों से की उसके परिणाम आज सार्क सम्मेलन के स्थगित होने की नौबत तक पहुंचने से सामने आ रहे हैं। आज पाकिस्तान को मोदी ने सफलता पूर्वक सार्क देशों में ही अगल थलग कर दिया है यह उनकी कूटनीतिक सफलता है। पाक अधिकृत कश्मीर में हुई सर्जिकल कारवाई में आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के दो सैनिक भी मारे गये है। लेकिन पाक इस कारवाई को स्वीकार भी नही कर पा रहा है क्योंकि यह कारवाई आतंकी कैंपो पर हुई है यदि पाक इसे स्वीकार कर लेता है तो इसका अर्थ होगा कि उसने उसके यहां आतंक ट्रेनिंग कैंपों का होना स्वीकार कर लिया है और इस स्वीकार के साथ ही वह विश्व समुदाय के सामने बेनकाब हो जाता है क्यांकि वह ऐसे कैंपो के होने से ही इन्कार करता आया है। जब पाकिस्तान ने इन कैंपो को आबादी वाले इलाकों में शिफ्ट करने का काम किया था तो संभवतः उसकी नीति यह रही होगी कि यदि भारत की ओर से कोई सैनिक कारवाई होती है तो उसमें आम नागरिकों को भी हानि पंहुचेगी और वह भारत को विश्व समुदाय के सामने एक आक्रामक करार दे पायेगा। लेकिन किसी भी नागरिक को कोई नुकसान न होने से भारत इस संभावित आक्षेप से बच गया। यही कारण है कि पाक इस कारवाई को स्वीकार नही कर पा रहा है।
अब जहां मोदी इसके लिये समर्थन और बधाई के पात्र हैं वहीं पर उनसे यह भी उम्मीद है कि भारत जिन आतंकी सरगनाओं की पाक से मांग करता आ रहा है आज उन लोगों के खिलाफ भी इसी स्तर की कारवाई हो जानी चाहिये। जिस हाफिज सईद, अजहर मसूद और दाऊद इब्राहिम की तलाश भारत को है और वह पाकिस्तान में बैठे हुए हैं पाक उनको आतंकी नही मानता। उनके पाक में होने से भी इन्कार करता है। उनके खिलाफ आज इसी तरह की कारवाई की आवश्यकता है। आज पूरे देश का मनोबल इस पर बना हुआ है। फिर जब तक आतंक का संचालन करने वाले यह लोग बैठे है और उनको वहां की सरकार का समर्थन हासिल है तब तक आतंकी साजिशों की संभावना बराबर बनी रहेगी। ऐसी संभावनाओं को पूरी तरह से खत्म करने के लिये ऐसी ही सर्जिकल कारवाई की आवश्यकता है। फिर जब अमेरिका लादेन के लिये ऐसा कर सकता है तो भारत क्यों नहीं। ऐसी कारवाई की अपेक्षा अब मोदी से की जाने लगी है और उन पर देश को भरोसा भी अब होने लगा है।