युद्ध ही विकल्प नही हो सकता

Created on Sunday, 25 September 2016 08:50
Written by Shail Samachar

उरी मे हुए आंतकी हमले को लेकर पूरे देश में रोष और आक्रोश हैं उरी से पहले पठानकोट में ऐसा आतंकी हमला हो चुका है। दोनों  बार सेना के ठिकानो का निशाना बनाया गया है। दोनों घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ होना सामने आ चुका है इसके सबूत मिल चुके है। पठानकोट में तो पाकिस्तान को स्वंय आकर मौका देखने का अवसर दिया गया है। लेकिन उसने इसमें अपना हाथ होने से साफ इन्कार कर दिया है। आज तक देश के अन्दर जितनी भी आंतकी घटनाएं हुई है।

उनमें अधिकांश के तार पाकिस्तान से जुड़े हुए मिले है। लेकिन पाकिस्तान ने इस सच्च को कभी स्वीकारा नही है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यू एन मंच से लेकर अधिकांश देशों ने भी पाकिस्तान को बढ़ते आंतक के लिये जिम्मेदार मान लिया है। परन्तु इस सबके बावजूद पाकिस्तान की आंतक के प्रति नीयत और नीति में कोई अन्तर नही आया है। बल्कि अब यह धारणा बनती जा रही है कि संभवतः आंतक उसकी रणनीति का ही एक हिस्सा है। लेकिन पाकिस्तान की इस नीति के लिये अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि किसी भी देश ने पाकिस्तान की निर्देश करने के अतिरिक्त उसके साथ अपने व्यापारिक और दूसरे रिश्ते समाप्त नहीं किये हैं। कहीं से भी कोई प्रतिबंध पाकिस्तान पर नहीं आये है क्योंकि हम जो इन आंतकी घटनाओं की सीधी कीमत चुका रहे हैं हमने भी अपने रिश्ते समाप्त नही किये है। हम भी कड़े ब्यानो और पाकिस्तान के राजदूत को बुलाकर अपना रोष अधिकारिक रूप से वहां की हकूमत तक पहुंचाने से ज्यादा कुछ नहीं करते रहे है। पाकिस्तान को सामरिक हथियार उपलब्ध करवाने के लिये कभी चीन, कभी अमेरिका तो कभी को अन्य देश हर समय आगे आता ही रहा है और यही पाकिस्मान की सबसे बड़ी ताकत बन जाता है।  आज देश के भीतर पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक सैन्य कारवाई की मांग जोर पकड़ती जा रही है। सरकार और सेना की ओर से भी युद्धको अन्तिम विकल्प के रूप में लेने पर विचार किया जा रहा है। सैन्य बल के रूप में हम पाकिस्तान पर हर बार भारी पड़ते आये है और आज भी पडेंगे इसमें कोई दो राय नहीं है। बढ़ती आतंकी घटनाओं का जवाब यदि सैन्य कारवाई के रूप में दिया जाता है तो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय भी इसके लिये हमें दोष नही दे सकता। क्योंकि पाकिस्तान की सच्चाई हम विश्व समुदाय के सामने ला चुके हैं। लेकिन यदि सैन्य कारवाई का विकल्प चुना जाता है तो उसके परिणाम क्या होंगे उस पर गंभीरता से विचार करना होगा। अमेरीका, फ्रांस, इंग्लैण्ड आदि कई देशों में पिछले कुछ अरसे से ऐसी आंतकी घटनाएं देखने को मिली है। बढ़ता आंतकवाद विश्व समस्या बनता जा रहा है। इन आंतकीयों के पास हर तरह के सैन्य हथियार/ उपकरण पहुंच रहे हैं। इन्हें यह सब कहां से और कैसे उपलब्ध हो रहा है? इसके लिये धन कंहा से आ रहा है? क्यांेकि आतंकवाद इन संसाधनोेें के सहारे ही तो बढ़ रहा है। आज के अधिकांश देशों के पास परमाणु और रसायनिक हथियार उपलब्ध है। हर रोज इनके परीक्षण हो रहे है और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय इनकी निंदा करने से अधिक कुछ कर नही पा रहा है। हर देश के बजट का बड़ा भाग सामरिक रिसर्च और सामरिक हथियारोें के उत्पादन पर खर्च हो रहा है। कुछ देशों की अर्थव्यवस्था का तो सबसे बड़ा आधार ही हथियारों का उत्पादन बन गया है। यदि इन हथियारों का कोई खरीददार न हो तो उनका उत्पादन ही रूक जायेगा और उसकी अर्थव्यस्था ही डगमगा जायेगी। आज बढ़ते आंतकवाद के पीछे हथियारों का यह उत्पादन और उनकी सहज उपलब्धता ही सबसे बड़ा कारण है। हथियारों के उत्पादक देश आतंकवाद की निंदा के साथ ही आतंकियों को यह हथियार भी उपलब्ध करवा रहे हैं। क्योंकि आज तक ओसामा विन लादेन जैसे बड़े आतंकी को लेकर यह भी सामने नही आया है कि वह हथियार भी स्वयं बनता था। ऐसे में बहुत स्पष्ट है कि जब आतंकवादियों के खिलाफ खुली सैन्य कारवाई अमल में लायी जायेगी तो फिर उसमें परमाणु और रसायनिक हथियार कब आतंकियों तक पहुंच जायें और उनका इस्तेमाल हो जाये यह आशंका और संभावना बराबर बनी रहेगी।  इसलिये युद्ध का विकल्प चुनने से पहले इन सारे सवालों पर विचार करना आवश्यक होगा। लादेन के लिये जिस तरह की कारवाई पाकिस्तान में घुसकर अमेरिका ने की थी आज वैसी ही कारवाई के लिये अन्तर्राष्ट्रीय मंचो पर सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। अमेरिका ने कारवाई की पूरा विश्व समुदाय खड़ा देखता रहा उसकी निन्दा तक कोई नही कर पाया। आज भारत पूरे विश्व को पाकिस्तान की इस हकीकत से अवगत करवा चूका है। विश्व समुदाय ने इसे स्वीकार भी कर लिया है और यह स्थिति अमेरिका जैसी कारवाई के लिये बहुत ही उपयुक्त अवसर है। क्योंकि युद्ध के विकल्प से आतंकियों से अधिक सामान्य नागरिकों का नुकसान होता है और वह नही होना चाहिये।