जब सरकार ही अराजक हो जाये

Created on Monday, 12 September 2016 04:32
Written by Baldev Sharma

शिमला/शैल। जब सत्ता की ताकत के बल पर स्थापित नियमों/कानूनो की खुली उल्लंघना हो जाये। अदालत के फैसलों पर अमल न किया जाये। सत्ता ही सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाये और उसके लिये लोक लाज त्याग कर जनहितों की परिभाषा अपने स्वार्थो के मुताबिक होनी शुरू हो जाये तो ऐसी स्थिति को अराजकता का नाम दिया जाता है। वीरभद्र सरकार ने जिस तरह से अवैध निमार्णो को नियमित करने के लिये ग्राम एंवम नियोजन अधिनियम में संशोधन किया है और प्रदेश में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के मामलों पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए इस सारी स्थिति को एकदम अराजकता की संज्ञा दी है। किसी भी सरकार और उसके प्रशासन पर इससे गंभीर आक्षेप और कुछ नहीं हो सकता है। 

इस बढ़ती अराजकता का एक और उदाहरण प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा एक याचिका CWP 2336 of 2009 पर अप्रैल 2013 में दिया गया फैलसा है। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा कान्ट्रैक्ट के आधार पर की गयी नियुक्तियों के लिये 2008 और 2009 में लायी गयी नियमितिकरण की पालिसी को संविधान की धारा 14 व 16 तथा धारा 309 के तहत बनाये गये नियमों का खुला उल्लघंन करार देते हुए इसे तुरन्त प्रभाव से रद्द कर दिया है। लेकिन सरकार ने इस फैसले को अगूंठा दिखाते हुए जून 2014 में कान्ट्रैक्ट आधार पर रखे गये कुछ काॅलिज प्रवक्ताओं के नियमितिकरण के आदेश जारी कर दिये जबकि यह उक्त याचिका भी काॅलिज प्रवक्ताओें की ओर से ही दायर हुई थी। जब नियमितिकरण के आदेशों पर इन प्रवक्ताओं ने फिर विभाग का ध्यान आकर्षित किया तब इन आदेशों को वापिस लिया गया। अदालत का फैसला सरकार की पूरी पाॅलिसी पर है किसी एक विभाग पर नही। लेकिन इस फैसलेे के बाद पाॅलिसी को वापिस लेने की बजाये इसके तहत नियमितिकरण की प्रक्रिया अब भी जारी है। अदालत ने कांट्रैक्ट की नियुक्तियोें को चोर दरवाजे से अपनों को भर्ती करने की नीति करार दिया है।
प्रदेश में रोजगार का सबसे बड़ा साधन सरकारी नौकरी ही है। सरकारी नौकरी में कैसे भर्तीयां की जाती रही है इसका सबसे बड़ा खुलासा चिटों पर की गई भर्तीयों की जांच के लिये बनी हर्ष गुप्ता और अवय शुक्ला कमेटीयों की रिपोर्ट से सामने आ चुका है। लेकिन इस प्रकरण पर कैसे विजिलैन्स ने अदालत के सामने सारा मामला रखा और कैसे अदालत ने भी उसे आंख बन्द करके स्वीकार कर लिया अराजकता की इससे बड़ी कहानी और क्या हो सकती है। क्योंकि जिस कड़ाई से अदालत ने इस प्रकरण का संज्ञान लिया था उस तर्ज पर सोलन बागवानी विश्वविद्यालय के एक मामले में उच्च न्यायालय का फैसला भी आया है। लेकिन बाद में अन्य मामलों पर अदालत का रूख भी बदल गया जो आज तक जन चर्चा का विषय है। चिटों पर भर्ती मामले के बाद हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चनय बोर्ड द्वारा की गयी नियुक्तियों का मामलों सामने है। लेकिन इन मामलों का सरकार और प्रशासन की सेहत पर कोई असर नही पड़ा है। चनय में पारदर्शिता लाने की बजाये आज भी एक प्रकार से चिटों पर भर्ती जैसा ही चलन जारी है। भारत सरकार ने क्लास फोर और क्लास थ्री श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती के लिये साक्षात्कार का माध्यम समाप्त कर दिया है अब इन पदों के लिये सीधे शैक्षणिक योग्यता को ही आधार रखा गया है। लेकिन वीरभद्र सरकार केन्द्र सरकार की इस पाॅलिसी को अपनाने के लिये तैयार नही है। मन्त्रीमण्डल हर बार इस पर फैसला टाल देता है। क्योंकि इस पाॅलिसी के बाद अपनों के लिये चोर दरवाजा बन्द हो जायेगा।
सरकार ने इस वर्ष हजारों पदों को भरने की हरी झण्डी दे दी है। मन्त्रीमण्डल की हर बैठक में सैंकडो पद सृजित किये जा रहे है। इस सृजन से यह सवाल उठता है कि अब तक सरकार कैसे काम चला रही थी? क्या इन सारे पदों की आवश्यकता अब पड़ी। आज यह सब आने वाले विधानसभा चुनावों को सामने रखकर किया जा रहा है और इसी के लिये भारत सरकार की पाॅलिसी पर अमल नही किया जा रहा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार यह सब अपने राजनीतिक स्वार्थ को सामने रखकर कर हरी है। उसे जन सरोकारों से कोई लेना देना नही है। राजनीतिक स्वार्थों के आगे पूरा प्रशासन बौना पड़ गया है और यही अराजकता है।