प्रधान न्यायधीश की चिन्ता

Created on Tuesday, 30 August 2016 09:08
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। देश के प्रधान न्यायधीश श्री तीरथ सिंह ठाकुर ने प्रधान मन्त्री के पन्द्रह अगस्त को लाल किले से देश के नाम आये संबोधन पर अपनी प्रतिक्रिया में यह चिन्ता व्यक्त की कि इसमें न्यायपालिका को लेकर कुछ नहीं कहा गया। पन्द्रह अगस्त के बाद प्रधान न्यायधीश दो कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिये शिमला आये। इन कार्यक्रमों में प्रधान न्यायधीश ने फिर चिन्ता व्यक्त की कि निष्पक्ष और तीव्र न्याय अभी बहुत दूर की बात है। प्रधान न्यायधीश की यह चिन्ताएं देश की पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। क्योंकि जब आदमी व्यवस्था से लड़ते-लड़ते हार जाता है तब उसकी न्याय के लिये अन्तिम उम्मीद केवल न्यायपालिका ही रह जाती है। लेकिन अब इस अन्तिम उम्मीद के प्रति भी लोगों का भरोसा टूटने लगा है। क्योंकि उच्च न्यायपालिका में बैठे कानून के रखवालों के अपनेे आचरण पर भी प्रश्न चिन्ह लगने के कई मामले सामने आ चुके है। ऐसे परिदृश्य में जब देश का प्रधान न्यायाधीश ही निष्पक्ष और तीव्र न्याय पर सन्देह व्यक्त करंे तो निश्चित रूप से पूरी वस्तुस्थिती की गंभीरता को लेकर चिन्ता और चिन्तन की आवश्यकता आ खडी होती है।
इस समय न्यायपालिका में निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक हर स्तर पर हजारों-हजार मामलें वर्षो से लंबित चले आ रहे हंै। किसी मामले का समय से अधिक वक्त तक लंबित रहना अपने में ही अन्याय बन जाता है। यह स्थिति इसलिये है क्योंकि पूरी न्यायव्यवस्था में हर स्तर पर जजों की कमी है। लोअर न्यायपालिका में जजों कि नियुक्तियों के लिये एक स्थापित प्रक्रिया चली आ रही है। लोकसेवा आयोगों के माध्यम से यह नियुक्तियां की जाती है। इसमें भी प्रदेश लोकसेवा आयोगों के स्थान पर राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक भर्तीयां किये जाने की व्यवस्था बनाये जाने की मांग चल रही है। आई ए एस और आई पी एस सेवाओं के समान ही राष्ट्रीय न्यायिक सेवा गठन की आवश्यकता पर विचार की मांग चल रही है। लेकिन उच्च न्यायपालिका में जजों की भर्ती के लिये चल रही वर्तमान व्यवस्था को बदलने को लेकर चल रही मांग और उस पर आये सुझावांे को लेकर उच्च न्यायपालिका में टकराव की स्थिति चल रही है। इसी टकराव के कारण न्यायपालिका में जजों के रिक्त पद भरे नही जा पा रहे हैं। इस टकराव का अन्तिम परिणाम क्या होगा और उच्च न्यायपालिका में रिक्त स्थान कैसे भरे जायेंगे इसको लेकर कब स्थिति स्पष्ट हो पायेगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यह जो व्यवस्था चल रही है उसमेें आम आदमी का भरोसा कैसे कायम रहे इसको लेकर सरकार और न्यायपालिका को तुरन्त कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि यह कदम तुरन्त न उठाये गये तो इस समय उच्च न्यायालयों में न्याय की प्रतीक बनी ‘‘आंखो पर पट्टी बंधी देवी’’ का टंगा चिन्ह महाभारत के धृतराष्ट्र और गांधारी का पर्याय बन जायेगा।
क्योंकि अभी जब प्रधान न्यायधीश शिमला थे तो दोनो कार्यक्रमों में प्रदेश के मुख्यमन्त्री उनके साथ थे। इस समय मुख्यमन्त्री सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे है। सीबीआई की छापेमारी के खिलाफ मुख्यमन्त्री प्रदेश उच्च न्यायलय में गये। इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय से मिली राहत को जब सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी और मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय मे स्थानांतरित किये जाने का आग्रह किया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आग्रह को स्वीकारते हुए जिस तरह की अदालत में टिप्पणी की थी वह सबके सामने है। ऐसी टिप्पणी के बाद भी यह मामला जांच ऐजैन्सीयों और अदालत के बीच अभी तक स्पष्ट निर्देशों तक नही पहुंच पाया है। आम आदमी में इससे ‘‘ समर्थ को नही दोष गोसाईं’’ जैसी धारणा बनना स्वाभाविक है। ऐसे परिदृश्य में जब मुख्यमन्त्री और प्रधान न्यायधीश को जनता सर्वाजनिक कार्यक्रमों में इकट्ठा देखेगी तो निश्चित रूप से उसके साथ कई और चर्चाएं भी जुड जायेंगी जिनका संदेश बहुत ज्यादा स्वस्थ नही होगा। आज इस यात्रा को लेकर ऐसे कई सवाल जन चर्चा का विषय बने हुए हंै। ऐसे ही प्रसंगों से आम आदमी का विश्वास न्यायपालिका पर से डगमगाने लग जाता है और इस विश्वास को बनाये रखना सबसे बडी आवश्कयता है। क्योंकि यदि विश्वास खण्डित हुआ तो फिर बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा यह तय है और तब अन्य सारी चिन्ताएं बेमानी हो जायेंगी।