शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित करते हुए कहा है उनकी सरकार आक्षेपों की सरकार नहीं है बल्कि अपेक्षाओं की सरकार है क्योंकि उनकी सरकार पर अब तक भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। आज यदि खाद्य पदार्थों की बढ़ती मंहगाई को नजरअन्दाज कर दिया जाये तो मोदी के दावे से सहमत होना पड़ेगा। क्योंकि कांग्रेस और दूसरे सारे क्षेत्राीय दल अभी तक लोकसभा चुनावों में मिली हार से पूरी तरह उबर नहीं पाये हैं। उनके लगाये आरोपों पर अभी जनता पूरी तरह विश्वास कर पाने को तैयार भी नही है क्योंकि यह दल अपने ही भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं कर पाये है।
नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनावों में भाजपा का प्रधानमन्त्री पद का चेहरा बन चुके थे। पूरा चुनाव प्रचार अभियान उन्ही के गिर्द केन्द्रित था इसलिये लोकसभा चुनावों में मिली सफलता का पूरा श्रेय उन्ही को जाता है। उन्ही के नेतृत्व में भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही है। लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद हुये विधानसभा चुनावों/उप चुनावों के परिणामों से कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना पर प्रश्न चिन्ह भी लगता जा रहा है। ऐसे में मोदी की सरकार जन अपेक्षाओं पर कैसे पूरा उतर पायेगी इसको लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। लेकिन जो बहुमत लोकसभा में सरकार को मिला हुआ है यदि उसके सहारे मोदी कुछ नया कर पाये तो वह देश के लिये एक बड़ा योगदान बन जायेगा अन्यथा वह भी प्रधान मन्त्रिायों की सूची में केवल एक नाम ही होकर रह जायेंगे।
भाजपा और मोदी कांग्रेस/यू पी ए के भ्रष्टाचार और काले धन को मुद्दा बनाकर सत्ता में आये थे यह पूरा देश जानता है। सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ क्या कुछ किया गया है यह भी सबके सामने है। भ्रष्टाचार ही सारी समस्याओं का मूल है यह एक स्थापित कड़वा सच्च है क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ जितने भी कदम उठाये गये हैं उनके परिणाम आशानुरूप नहीं रहे हैं। ऐसे में यह समझना ज्यादा आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति को भ्रष्ट होने की आवश्यकता ही क्यों पड़ती है। यदि भ्रष्टता की आवश्यकता के आधार को ही समाप्त कर दिया जाये तो बहुत कुछ हल हो जाता है। आज संसद से लेकर राज्यों की विधानसभाओं तक भ्रष्ट लोग ‘माननीय’ बन कर बैठे हुये हैं। हर चुनावों के बाद यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।"Power Corrupts a man and absolute power Corrupts absolutely." यह कहावत इन माननीयों पर स्टीक बैठती है। क्योंकि हर चुनावों में धन बल और बाहुबल का बड़ा खेल हो गया है। बढ़ते धन बल के कारण ही हर बार चुनाव खर्च की सीमा में चुनाव आयोग बढ़ौतरी कर देता है। खर्च की जो सीमा तय है चुनावों में उससे कहीं अधिक खर्च हो रहा है। लेकिन यह खर्च पार्टी के खाते से होता है व्यक्ति के खाते से नहीं। पार्टी पर खर्च की कोई सीमा है नहीं। पार्टीयों द्वारा भरी जाने वाली आयकर रिटर्न को आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है। यहां तक कि चुनाव आचार संहिता की उल्लघंना पर भी केवल चुनाव परिणाम को ही चुनौति देने का प्रावधान है। आचार संहिता की उल्लंघन दण्ड संहिता के अन्दर अभी तक अपराध की सूची में शामिल नहीं है।
इस परिपेक्ष में यदि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इस अपार जन समर्थन के सहारे देश की चुनाव व्यवस्था को सुधारने का साहस कर पाते हैं तो वह देश को बड़ा योगदान होगा। मेरा मानना है कि यदि प्रयास किये जाये तो चुनावों को भ्रष्टाचार से एकदम मुक्त किया जा सकता है। चुनाव के भ्रष्टाचार से मुक्त होने का अर्थ है कि उसमें धन की भूमिका नही के बराबर पर लायी जा सकती है। जब धन की केन्द्रिय भूमिका नहीं रहेगी तब बाहुबलियों का संसद और विधानसभाओं में आना भी रूक जायेगा। चुनाव सुधार ऐसे ही बहुमत और ऐसे ही नेतृत्व में संभव और अपेक्षित हो सकते हैं। यदि प्रधानमन्त्री चाहें तो सुधारों की इस रूपरेखा पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है।