आरोप पत्र की रस्म अदायगी क्यों

Created on Monday, 08 August 2016 13:32
Written by Shail Samachar

शिमला। प्रदेश सरकार ने वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र लाने का फैसला लिया है। इस आशय का भाजपा अध्यक्ष ठाकुर सत्तपाल सिंह सत्ती का एक ब्यान भी आया है। सरकार के इस कार्यकाल में भाजपा का यह दूसरा आरोप पत्रा होने जा रहा है। पहला आरोप पत्र 2015 में सत्ती और धूमल के हस्ताक्षरों तले आया था। वैसे 2015 में भाजपा की आक्रामकता की जो धार थी वह अब 2016 में उतनी तेज नजर नहीं आ रही है। वैसे इस धार का पता प्रस्तावित आरोप पत्र से लग जायेगा । प्रदेश में आरोप पत्र जारी करने की संस्कृति बड़ी पुरानी है। स्व. डा. परमार के समय से ही चली आ रही है बल्कि उस समय तो कांग्रेस के ही आठ विधायकों प.पदम देव के नेतृत्व में आरोप पत्रा दाग दिया था। उसके बाद सत्यदेव बुशैहरी और हरि सिंह जैसे नेताओं ने गंभीर आरोप लगाये थे। डा. परमार के बाद स्व. ठाकुर रामलाल के कार्यकाल में भी वीरभद्र सिंह ने एक पत्र लिखकर बड़ा धमाका किया था। 1977 में जनता पार्टी के समय आरोपों के चलते ही शान्ता कुमार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव सदन में आये थे।

शान्ता के दूसरे कार्यकाल में भी आरोप लगे और उसके बाद वीरभद्र तथा धूमल के हर कार्यकाल में आरोप पत्रा आयें आरोप पत्र लाने में हर विपक्षी पार्टी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। जनता पार्टी ने, जनता दल, जन मोर्चा, वांमपंथी दल, लोकदल हिविंका और भाजपा सबने विपक्ष में बैठकर सत्ता पक्ष के खिलाफ आरोप पत्रा जारी किये है। हर आरोपपत्र में गंभीर और संवदेनशील आरोप रहे है। आरोपों को प्रमाणिक मानकर प्रदेश की जनता ने आरोप पत्र वालों को सत्ता भी सौंपी है। लेकिन आजतक किसी भी दल ने सत्ता में आकर अपने ही दागे हुए आरोप पत्रों की ईमानदारी से जांच करवा कर उन्हें अन्तिम अन्जाम तक नही पहुंचाया है। हर सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरैन्स के दावे किये हैं। वीरभद्र सिंह ने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी प्रतिवद्धत्ता को विश्वसनीय बनाने के लिये 31 अक्तूबर 1997 को एक रिवार्ड स्कीम तक अधिसूचित की है। लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ जिसने जितने बडे दावे किये है। उसके शासन के खिलाफ उतने ही बड़े और गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। परन्तु यह आरोप पत्रा केवल अखवारांे की खबरों से आगे नही बढे़ हैं।
लेकिन इन आरोप पत्रों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार को हमारे नेता अपने विरोधीे के खिलाफ कितना बड़ा हथियार मानते हैं। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जनता पर ऐसे आरोपों का कितना बड़ा असर होता है। इसी कारण इन आरापों को जनता तक पहुंचाने में यह नेता कोई कोर कसर नही छोड़ते है। परन्तु इसी सबसे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि यह नेता इन आरोपों का प्रचार-प्रसार करने के अतिरिक्त इन पर कभी कोई कारवाई नहीं चाहते। शायद इसी कारण आज तक भ्रष्टाचार के खिलाफ बडे़-बडे़ दावे करने वाले किसी भी मुख्यमन्त्राी ने अपनी ही पार्टी के आरोप पत्रों पर कभी कोई कारवाई करने का जोखिम नही उठाया है। 1998 में भाजपा की सहयोगी हिमाचल विकास पार्टी ने वीरभद्र के खिलाफ आरोप पत्र सौंपा था। इस पत्र पर जांच रोकने के लिये वीरभद्र ने 31.3.99 को तत्कालीन मुख्य सचिव और एडीजीपी विजिलैन्स को धमकी भरा पत्र लिखा था और इस पत्र के बाद धूमल ने उन आरोपो पर जांच को आगे नही बढ़ाया। यही नही 2003 से 2007 के वीरभद्र के कार्यकाल को लेकर भी भाजपा ने तीन आरोप पत्र सौंपे थे लेकिन अपने 2008 से 2012 के शासनकाल में भाजपा सरकार ने इन आरोप पत्रों पर कोई कारवाई नही की है।
इसी तरह कांग्रेस ने भी धूमल शासन के दोनों कार्यकालों के खिलाफ आरोप पत्र सौंपे थे लेकिन कारवाई के नाम पर कुछ नही हुआ। आज वीरभद्र सरकार ने एच पी सी ए और धूमल के खिलाफ जितने मामलों में कारवाई की थी उनमें से अधिकाशं में उच्च न्यायालय में सरकार को भारी फजीहत झेलनी पड़ी है। क्योंकि यह मामले अदालत में सफल नही हो पाये हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह मामले मूलतः ही आधारहीन थे और जबरदस्ती बनाये गये थे? या फिर इनमें जानबूझकर बुनियादी कमीयां रखी गयी थी। ताकि यह अदालत में सफल न हों। ताकि ऐसा करने से आज जो आरोप भाजपा लगा रही है उनकी जांच का भी यही हश्र हो।
आज प्रदेश से भाजपा सांसद केन्द्रिय स्वास्थ्य  मंत्री जे पी नड्डा के खिलाफ संघ के ही एक प्रकाशन यथावत ने कवर स्टोरी छापी है। नड्डा के खिलाफ गंभीर आरोप हैं इसमें। क्या प्रदेश भाजपा वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्रा सौंपते हुए नड्डा पर लगे आरोपों की जांच की मांग भी उसी तर्ज पर करेगी। इस परिदृश्य में भाजपा नेतृत्व से यह आग्रह है कि आरोपों का मजाक न बनाएं उन पर प्रतिबद्धता दिखाते हुए अदालत तक जाकर उन पर जांच की मांग उठाये। अन्यथा यह आरोप पत्रा रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रह जायेंगे और इससे बड़ा भ्रष्टाचार और कुछ नही हो सकता।