शिमला। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने एक ब्यान में आशंका जताई है कि प्रधान मन्त्री मोदी बौखला गये हैं और उनकी हत्या करवा सकते हैं। केजरीवाल के इस ब्यान पर केन्द्र सरकार और भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। बल्कि अन्य राजनीतिक दल भी इस ब्यान पर मौन ही हैं। केजरीवाल का यह ब्यान एक गंभीर विषय है और इसे हल्के से नही लिया जा सकता। क्योंकि यह एक मुख्यमन्त्री की आशंका है। यदि यह आशंका निर्मूल है तो ऐसे ब्यानों की सार्वजनिक निन्दा होनी चाहिये अन्यथा इस पर स्पष्टीकरण आना चाहिये क्योंकि मौन ऐसे प्रश्नों का हल नही होता उससे विषय की गंभीरता और बढ़ जाती है क्योंकि एक मुख्यमन्त्री प्रधानमन्त्री की नीयत और नीति पर सवाल उठा रहा हैं।
अरविन्द केजरीवाल को ऐसी आशंका क्यों हुई इसके ऊपर भी विचार करने की आवश्यकता है। दिल्ली में जब से आम आदमी पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में सत्ता में आयी है तभी से मोदी की केन्द्र सरकार से उसका टकराव चल रहा है। हर छोटे बडे़ मसले पर टकराव है और इसी टकराव के परिणाम स्वरूप दिल्ली विधान सभा द्वारा पारित कई विधेयकों को अभी तक स्वीकृति नही मिल पायी है। दिल्ली के इक्कीस विधायकों पर उनकी सदस्यता रद्द किये जाने का खतरा मंडरा रहा है। जबकि पूरे देश में हर राज्य में संसदीय सविच बने हुए हैं। जिन विधायकों को मन्त्री नही बनाया जा पाता है उन्हे संसदीय सचिव बनाकर राजनीतिक सतुंलन बनाये रखने का तरीका अपनाया जाता है। इसमें दिल्ली ही अकेला अपवाद नही हैं। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में भी ऐसी नियुक्तियों के माध्यम से राजनीतिक सन्तुलन साधे गये हैं। संसदीय सचिवों की व्यवस्था को समाप्त करने के लिये संसद में ही विधेयक लाकर ऐसा किया जा सकता है। लेकिन किसी एक राज्य सरकार को अलग से निशाना बनाकर ऐसा प्रयास किया जाना राजनीतिक विद्वेश ही माना जायेगा।
दिल्ली में पुलिस पर प्रदेश सरकार का नियन्त्रण नही है। यह केन्द्र सरकार के अधीन है। दिल्ली पुलिस अभी तक विभिन्न मामलों में ग्याहर विधायकों को गिरफ्तार कर चुकी है। इनमें से किसी भी विधायक के खिलाफ चुनाव से पहले कोई आपराधिक मामले दर्ज नही थे जिसे लेकर यह कहा जा सके कि मामले की जांच चल रही थी और अब उसमें गिरफ्तारी की आवश्यकता आ खडी हुई क्योंकि विधायक जांच में सहयोग नही कर रहा था। सबके मामले विधायक बनने के बाद दर्ज हुए और जांच शुरू होने के साथ ही गिरफ्तारियां कर ली गयी। कईयों के मामलों में तो अदालत भी क्लीन चिट दे चुकी है फिर कईयों के खिलाफ तो आरोपों का स्तर भी ऐसा है जिससे यह विश्वास ही नही होती कि विधायक बनने के बाद भी कोई ऐसा आचरण कर सकता है। जिस तेजी के साथ दिल्ली पुलिस ने ‘आप’ विधायकों के खिलाफ कारवाई को अजांम दिया है वैसी तेजी अन्य अपराधीयो के खिलाफ देखने को नही मिली है। फिर देश की संसद के भीतर भी ऐसे कोई कारवाई नही हो पायी है। यही नही उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, में आपराधिक मामलें हैं जिन पर इन राज्यों की पुलिस ने दिल्ली जैसी कारवाई नही की है। दिल्ली पुलिस की कारवाई को इस आईने में देखते हुए सामान्य नही माना जा रहा है और ऐसा मानने के कारण भी हैं। क्योंकि आम आदमी पार्टी को एक राष्ट्रीय राजनीतिक विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है और यह कांग्रेस तथा भाजपा को स्वीकार्य हो नही पा रहा है। भाजपा ने कांग्र्रेस का विकल्प बनने के लिये जनसंघ से जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी बनकर एक लम्बी प्रतिक्षा की है। इसके लिये जनता पार्टी को तोडने और वी पी सिंह के जनमोर्चा को समाप्त करने तक के कई राजनीतिक कृतयों को जन्म दिया है। इस सारी यात्रा के बाद भी राम देव और अन्ना के आन्दोलनों का सहारा लेकर लोकसभा में अकेले 288 सीटें जीतकर दिल्ली विधानसभा में केवल तीन सीटों तक सिमट जाना स्वाभाविक रूप से भाजपा के लिये चिन्ता और चिन्तन का विषय है। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिये यह एक स्थिति है जिसका कोई जवाब उसके पास नही है। ऐसी स्थिति से राजनीतिक खीज का पैदा होना भी स्वाभाविक है। लेकिन इस सच्चाई का सामना करने के लिये ‘आप’ सरकार से टकराव और उसके विधायको के खिलाफ ऐसे मामले बनाना भी कोई हल नही है। पूरा देश इस वस्तु स्थिति को देख रहा है।