शिमला/शैल। भारतवर्ष का पर्यटन उद्योग प्रतिवर्ष लगभग 1500 करोड़ अमेरिकी डाॅलर की विदेशी मुद्रा के अर्जन के साथ ही लगभग 1.5 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी का साधन है। विदेशी मेहमानों के लिए हमारे देश में पर्यटन के हर रंग विद्यमान हैं। एक समृद्ध इतिहास की गाथा गाते प्राचीन से प्राचीनतम हमारे दुर्ग, ऐतिहासिक धरोहरें, अति रोचक पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुएं, विभिन्न प्रकार की सांस्कृतियां, साम्प्रदायिक सोहार्द का वातावरण, विभिन्न रंगों में रंगे उत्सव और त्यौहार, अगणित प्रकार की पारम्परिक वेशभूषाएं, नाना प्रकार के व्यंजन, मुम्बई जैसे अत्याधुनिक शहर से लेकर समाज की मुख्यधारा से नितान्त विरक्त आदिवासी प्रजातियाँ, सैकड़ों किलोमीटरों में फैले रेगिस्तान, वन्यजीवों से सुशोभित राष्ट्रीय उद्यान, कल कल करती हजारों मीलों लम्बी नदियाँ, विशाल झरने, महासागरों के अति सुन्दर किनारे, विशाल मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे, बौद्ध मोनेस्ट्री, साल भर बर्फ से ढकी पर्वतीय क्षेत्रों की गगनचुंबी चोटियाँ, विशाल हिमखण्ड, हिमनद, पर्वतों के रोचक टेड़े-मेढ़े रास्ते, रमणीक हृदयंगम प्राकृतिक दृश्य और सबसे महत्वपूर्ण बात हमारी ‘अतिथि देवो भवः’ की संस्कृति। आखिर क्या नहीं है हमारे भारत में, एक पर्यटक को आकर्षित करने के लिए।
हिमालय पर्वत में बसे हिमाचल प्रदेश की बात कुछ और ही है। शीतल जलवायु, प्रदूषण रहित, शान्त, सुरक्षित वातावरण एवं सरल जनमानस के कारण हिमाचल आज भारतवर्ष के अव्वल नम्बर के पर्यटन स्थलों में से एक है। ईश्वर ने हमें दिल खोलकर प्राकृतिक सौन्दर्य का उपहार प्रदान किया है। 60 से 80 के दशक का एक समय वह था जब भारत की सारा की सारा फिल्म उद्योग अपने चलचित्रों में रमणीक दृश्य शामिल करने के लिए हिमाचल और कश्मीर जैसे पर्वतीय प्रदेशों की और रूख करता था और दूर दराज के प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने कैमरों में कैद करता था। पर्यटन विकास में फिल्म उद्योग का भी महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है। संभवतः इसी से प्रेरित होकर पर्यटकों ने हिमाचल और कश्मीर जैसे पर्वतीय राज्यों की और रूख किया। आज ग्लोबल वार्मिंग और बदलती जलवायु के कारण भी ग्रीष्मकाल में मैदानी क्षेत्रों के पर्यटक पर्वतीय क्षेत्रों की ओर रूख करते हैं। हिमाचल पर्यटन आज चरम पर है। वर्ष 2014 में प्रदेश में कुल 1 करोड़ 63 लाख पर्यटक से अधिक पहुंचे। वर्ष 2016 की समाप्ति तक इस आंकड़े का 2 करोड़ तक छूने का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में पर्यटन और परिवहन के लिए अनुमानित राजस्व व्यय रू. 1752 करोड़ है, जो कि कुल अनुमानित राजस्व व्यय का 6.55% है। ‘हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम’ का प्रदेश के कुल राजकोष में 10% प्रतिवर्ष का योगदान होता है। प्रदेश में लाखों व्यक्ति प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जिससे प्रदेश में करोड़ों रूपयों की आय होती है। पर्यटन व्यवसाय दिन दोगुनी-रात चैगुनी तरक्की कर रहा है। मगर चिन्ता का विषय है कि हिमाचल के गठन के 45 वर्षो में कई सरकारें आयी और गई, मगर अनुपातिक रूप पर्यटन अविकसित ही रहा। आज भी यहाँ पर्यटकों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। प्रकृति प्रदत्त उपहार को सहेजेने में हम लगभग विफल रहे हैं। पर्यटक एक बार आने के पश्चात् दोबारा आने के पहले कई बार सोचते हैं। आखिर ऐसा क्यों? पर्यटन की स्थिति भविष्य में यथावत बनी रहे, इसके लिए कुछ कठोर कदम उठाने आवश्यक हो गए हैं
हिमाचल का नाम ‘हिम’ अर्थात बर्फ पर आधारित है। मगर बढ़ते शहरीकरण के कारण बर्फबारी वर्ष-दर-वर्ष घट रही है, जो चिन्ता का विषय है। बर्फ ही नहीं रहेगी तो हिमाचल के नाम का औचित्य ही समाप्त हो जायेगा। वैध-अवैध निर्माण पर अंकुश लगाकर वर्ष-दर-वर्ष बढते तापमान और घटती बर्फबारी पर नियंत्राण किया जाये, तभी पर्यटन का भविष्य सुरक्षित माना जा सकता है।
पर्यटक यहाँ की मनमोहक हरियाली से सर्वाधिक प्रभावित है। प्रयास इस बात के लिए किये जाएँ कि यहाँ की हरियाली नष्ट न होने पाए और वातावरण में शुद्धता बनी रहे। हम वैध-अवैध निर्माण और विकास के नाम पर प्राकृतिक वातावरण नष्ट कर रहे हैं और कंकरीट के जंगल खड़े कर रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार एक पेड़ वर्षभर में 650 पोंड आॅक्सीजन देता है, जो दो व्यक्तियों को वर्षभर के लिए पर्याप्त होती है। शिमला-कालका फोरलेन के लिए 25000 पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलायी जा रही है। साथ ही शिमला-मनाली फोरलेन का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। साथ ही बहुत सारे राजमार्गों की घोषणा करके सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही हैं। लेकिन अन्जाम क्या होगा? कंकरीट के जंगल खड़े करने के बजाय हरियाली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अन्यथा 100 वर्षों बाद पर्यटकों को फोटो खींचने के लिए भी पेड़ एवं हरियाली ढूँढनी पड़ेगी।
यूनेस्को विश्व हेरिटेज कालका-शिमला रेलवे की स्थिति ब्रिटिश काल से लगभग वही है। वही पुराने स्टेशन, वही सुरंगें और वही पुल। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए भी कोई प्रचार प्रसार नहीं, इसीलिए उनको इसका ज्यादा ज्ञान भी नहीं है। फोरलेन और राजमार्गों में हम बहुत ज्यादा उत्सुक हैं, जिनको बनाने के लिए जंगल के जंगल और साफ किये जा रहे हैं। रेलवे एवं हवाई अड्डों को विकसित किया जाये तो निश्चित रूप से पर्यटकों की कुछ नया मिलेगा, साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह उचित होगा।
नित्य हजारों की संख्या में निजी वाहन प्रदेश में पहुँच रहे हैं। जिनको शिमला जैसे बड़े स्थलों में पार्किंग की समस्या से जूझना पड़ रहा है। पर्यटक वाहनों को सुविधा देने के बजाय सरकार ‘नो-पार्किंग’ का चालान काटकर यातायात व्यवस्था सुधार रही है और अपना जेब भर रही है, जो कि सर्वथा अनुचित है। इससे पर्यटकों की मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अगर सडकों पर अवैध अतिक्रमण सम्पूर्ण रूप हटा दिया जाये तो वाहनों के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो सकता है और पार्किंग की समस्या संपूर्ण रूप से हल हो सकती है।
अनगिनत वाहनों की संख्या को नियंत्रित कर, पर्यटन विभाग की ओर से दो या तीन दिन के पैकज के हिसाब से सार्वजनिक परिवहन जैसे बसें व टैक्सी उपलब्ध करवानी चाहिए। इससे सडकों पर वाहनों को संख्या भी नियंत्रित होगी साथ ही पर्यटन भी किफायती होगा।
पुराने और उबाऊ पड़ चुके पर्यटन स्थलों के अलावा भी दूर दराज के क्षेत्रों में नए स्थान जैसे बाग-बगीचे, चिल्ड्रनस पार्क, वाटर स्पोर्ट्स, ट्रैकिंग मार्ग, हरे-भरे रिसाॅर्ट्स, फोटोग्राफी साइट्स, प्राचीन धरोहर आदि को विकसित जायें तो पर्यटकों को कुछ नया आकर्षण मिलेगा और वो बार-बार आने को लालायित रहेगा
हिमालय की गोद में बसे होने के कारण प्रदेश में ‘जीओ-टूरिज्म’ अर्थात ‘भू-पर्यटन’ की अपार संभावनाएँ बनती हैं। इस पर कुछ प्रयास भी हुए पर सिरे न चढ़ सके। ‘भू-पर्यटन’ लिए ऐसे स्थान चयनित करने होते हैं, जो भू-वैज्ञानिक और भौगोलिक दृष्टि से आकर्षक हों। जैसे चूनापत्थर की प्राकृतिक गुफाएं एवं उनमे पाई जाने वाली स्टेलेकटाईट एवं स्टेलेगमाईट स्थालाकृतियाँ, प्राकृतिक सन्तुलन बनाती विशाल चट्टानें, प्राकृतिक सुरंगें, धरती से फूटते झरने आदि। ऐसे स्थान यदि पर्यटन के लिए विकसित किया जाये तो निश्चित की यह पर्यटकों के एक विशेष वर्ग के लिए अति रोचक प्रतीत होंगे।
पर्यटन के लिए एक ऐसा स्वस्थ वातावरण तैयार हो कि पर्यटक को ग्राहक की दृष्टि से न देखकर अतिथि के रूप में देखा जाये।
ईश्वर के प्राकृतिक सौन्दर्य रुपी इस उपहार को अगर हम समय रहते नहीं सहेज पाए तो दूरगामी परिणाम अत्यंत भयानक होंगे। समय के साथ अगर हिमाचल पर्यटन को विकसित न किया गया तो हिमाचल भी प्रदूषण, अतिक्रमण, गर्मी, सूखा, अनावृष्टि आदि का शिकार हो जायेगा एवं पर्यटक यहाँ से मुंह मोड़ने लगेगा। जिसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव यहाँ के पर्यटन व्यवसाय आर्थिक व्यवस्था पर निश्चत रूप से पड़ेगा।