कांग्रेस का संकट

Created on Monday, 04 July 2016 14:29
Written by Shail Samachar

शिमला। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है क्योंकि उसकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और मंहगाई के जो आरोप लगे उनका वह जवाब नहीं दे पायी। जनता ने उसे भ्रष्टाचारी सरकार कहकर सत्ता से बेदखल कर दिया। इस बेदखली के बाद राज्यों की विधान सभाओं के जो भी चुनाव हुई उनमें पांडीचेरी को छोड़कर और कहीं भी कांग्रेस सत्ता में नही आयी। दिल्ली में तो शून्य पर चली गयी। दिल्ली के बाद बिहार और बंगाल में भले ही पार्टी का प्रदर्शन कुछ अच्छा रहा है लेकिन इसका श्रेय अकेले कांग्रेस को नही जाता है। यह श्रेय चुनावी गठबन्धन के दूसरे सहयोगीयों को उसी बराबरी में जाता है। अब पंजाब में 2017 जनवरी में चुनाव होने हंै और इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी गयी है। इसी तैयारी के परिदृश्य में कांग्रेस ने पंजाब में वरिष्ठ नेेता कमल नाथ को यहां का प्रभार दिया। लेकिन 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों में रही कमल नाथ की भूमिका को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये। इन सवालों के दवाब में कमल नाथ को पंजाब से हटाना पड़ा। कमल नाथ के बाद आशा कुमारी को वहां का प्रभार दिया गया। लेकिन संयोग वश आशा कुमारी को जमीन के मामले में ट्रायल कोर्ट से एक साल की सजा हो चुकी है। भले ही अपील में अब यह मामला हिमाचल उच्च न्यायालय में है लेकिन जब तक उच्च न्यायालय से क्लीन चिट नही मिल जाती है तब तक आशा कुमारी के खिलाफ सजा का यह फतवा जनता में यथा स्थिति बना रहेगा।
आशा कुमारी को यह जिम्मेदारी दिये जाने पर भाजपा और आम आदमी पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रियाएं जारी करते हुए इसे कांग्रेस द्वारा जन-अनादर करार दिया है। इन प्रतिक्रियाओं का कांग्रेस ने इसे पार्टी का अंदरूनी मामला कहा है। यह ठीक है कि पार्टी किस आदमी को कहां क्या जिम्मेदारी देना चाहती है यह उसका अपना मामला है। लेकिन जब पार्टी जनता के बीच वोट मांगने-सत्ता मांगने जाती है तो वह जनता से पहला वायदा स्वच्छ शासन-प्रशासन देने का करती है। आज हर पार्टी पर यह आरोप लग रहा है कि वह अपने संगठन और पैसे के दम पर आपराधियों को चुनावों में उम्मीदवार बनाकर उतार रही है। लोकतन्त्रा में लोक लाज बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील भूमिका अदा करती है। लोकलाज के लिये सबसे पहली आवश्यकता नेता की अपनी छवि का स्वच्छ होना है। आज आशा कुमारी के लिये और पार्टी के लिये यह धर्म संकट की स्थिति होगी जब उसके सामने कोई ऐसा व्यक्ति चुनाव का टिकट मांगने के लिये आ जायेगा जिसके खिलाफ कोई अपराधिक मामले खडे हों। ऐसे व्यक्ति को किस नैतिक अधिकार से वह मना कर पायंेगी। आज चुनाव के परिदृश्य में पार्टी ने आशा कुमारी को यह जिम्मेदारी देकर यह सवाल खड़े कर लिये कि क्या पार्टी में स्वच्छ छवि के लोगों की कमी है? क्या पार्टी आज किसी भी नेता के खिलाफ लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों का संज्ञान लेने को तैयार नही है?
भ्रष्टाचार के आरोपों के साये में सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस ने क्या अभी तक हार से कुछ नही सीखा? आज मोदी सरकार जिन योजनाओं को लेकर जनता में अपनी सफलता का राग अलाप रही है उन सबकी नीव कांग्रेस में रखी गयी थी। कम्यूटरीकरण का सपना सबसे पहले स्व. राजीव गांधी ने देखा था। स्व0 चन्द्रशेखर के प्रधानमन्त्राी काल में जब सोना गिरवी रखकर कर्ज लिया गया था तो क्या नरसिंह राव और मनामोहन सिंह की सरकारों ने देश को उस स्थिति से बाहर नहीं निकाला। सब्सिडी का पैसा सीधे उपभोक्ता के खाते में ले जाने की योजना क्या मनमोहन सिंह की नहीं थी। जिस मनरेगा को लेकर मोदी ने इसे कांग्रेस का कंलक कहा था क्या आज उसको भाजपा अपनी उपलब्धि नही बता रही है? जब आधार योजना शुरू की गयी थी तक क्या इसका भाजपा ने विरोध नही किया था और उसे आज अपनी सफलता करार दे रही है। ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर कांग्रेस भाजपा को घेर सकती है लेकिन ऐसा कर नही पा रही है क्योंकि पार्टी अपने भीतर बैठे भ्रष्टाचारीयों को बाहर का रास्ता दिखाने का साहस नहीं कर पा रही है और यही उसका सबसे बडा संकट है।