स्थानान्तरण कोई हल नही है

Created on Monday, 06 June 2016 12:02
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने प्रदेश के शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी इस कार्यकाल मेे अपने पास रखी हैं इस वार प्रदेश के सरकारी स्कूलों के कक्षा दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम इतने निराशाजनक रहे हैं कि मुख्यमंन्त्री ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए निराशाजनक परिणाम देने वाले स्कूलों के मुख्याध्यापकों /प्रिसिंपलों को तुरन्त ट्रांसफर करने और खराब परिणाम के कारण बताने के आदेश किये है। इन्ही के साथ संबधित विषयों के अध्यापकों की भी जवाब तलबी की है। मुख्य मन्त्रीे के इन आदेशों पर अमल होना भी शुरू हो गया है। मुख्यमन्त्री की चिन्ता जायज है। लेकिन इस समस्या का स्थायी हल खोजने की आवश्यकता है क्योंकि स्थानान्तरण इसका कोई हल नही है क्योंकि जो लोग एक जगह गैर जिम्मेदार रहें हैं वह दूसरी जगह जाकर सुधर जायेगें इसी कोई गांरटी नही है। इसका कोई स्थायी हल तब तक नही निकाला जा सकता है जब तक की इसे मूल कारणों की जानकारी न मिल जाये।
शिक्षा में सुधार लाने के लिये और इसे हर घर और बच्चे तक पहुंचाने के लिये आप्रेशन ब्लैक बोर्ड तथा प्रौढ शिक्षा केन्द्रों से लेकर आर एम एस ए व रूसा तक के कई कार्यक्रम लागू हो चुके है। स्कूलों में व्यवसायिक शिक्षण कार्यक्रम भी इसी में उठाये गये महत्वपूर्ण कदम रहे है। हर कार्यक्रम के तहत काम हुए हैं। केन्द्र से सभी कार्यक्रमों के लिये पर्याप्त आर्थिक सहयोग भी मिला है। आज राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा और सर्व शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों में शिक्षा में गुणवता लाने के लिये विशेष बल दिया गया हैं यहां तक की कैग रिपोर्टो में समय-समय पर जो टिप्पणीयां आती रही है उनका भी गंभीरता से कोई संज्ञान नही लिया जाता रहा है। इसलिये सबसे पहले यह आवश्यक है कि इन सारे कार्यक्रमों का सही मूल्यांकन हमारे सामने हो।
शिक्षा संस्थान खोलने के लिये केवल वोट की राजनीति ही आधार नही रहनी चाहिये। इस समय मुख्यमन्त्री दिल खोलकर प्रदेश में सभी जगह स्कूल/काॅलिज बांटते जा रहे हैं इसका कोई अध्ययन नही है। कि कहां पर स्कूल /काॅलिज खोलने के वांच्छित मानक पूरे है। एक संस्थान खोलने के लिये कम बच्चों की संख्या और अन्य आधार भूत सुविधांयों की निश्चितता पूरी तरह परिभाषित है लेकिन इन मानको को पूरी तरह नजर अंदाज किया जा रहा है। एक समय डीपीवीईपी कार्यक्रम के तहत इतने स्कूल खोल दिये गये थे कि आगे चलकर प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेशों पर स्कूलों का युक्तिकरण करते हुए कई स्कूल बन्द करने पडे थे। आज भी दर्जनों स्कूल ऐसे है जहां पर अध्यापकों की संख्या पूरी नहीं है। दर्जनो स्कूल ऐसे है कि जिनमें बच्चों की कम से कम संख्या भी पूरी नही है। अभी निराशाजनक परिणामों का संज्ञान लेेते हुए जो स्थानान्तरण किये गये है उनमें सामने आया है कि कितने स्कूलों में मुख्याध्यापकों/प्रिसिपलों के पद खाली है। इसलिये सबसे पहले इन खाली पदों को भरने के प्रयास किये जाने चाहिये। हर स्कूल में जब तक हर विषय का अध्यापक उपलब्ध नही होगा जब तक अच्छेे परिणामों की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। शिक्षा पर देश /प्रदेश का भविष्य आधारित है और एक लम्बे अरसे से शिक्षा क्षेत्र में ही व्यापारीकरण के आरोप लगते आ रहे है। इसी व्यापारीकरण का परिणाम है कि शिक्षा के क्षेत्र में नियामक आयोग नियुक्त करना पड़ा है। क्या नियामक आयोग अप्रत्यक्षततःसरकारी तन्त्र की असफलता की स्वीकारोक्ति नही हैं फिर यह नियामक आयोग अपने उद्देश्य में कितने सफल हो पाये है। यदि इस पर ईमानदरी से आकलन किया जाये तो इससे व्यापारीकरण के साथ ही भ्रष्टाचार का स्तर भी बढ़ गया है। इसलिये प्रदेश के भविष्य की चिन्ता करते हुए इस व्यापारीकरण को तुरन्त प्रभाव से रोकने की आवश्यकता है। क्योंकि सरकार से बड़ा कोई अदारा नही हो सकता जो शिक्षा और स्वास्थ्य को हर घर तक पहुंचाने की क्षमता रखता है। लेकिन इसमें गुणात्मक सुधार लाने के लिये शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों के लिये यह अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये कि वह अपने बच्चों को प्राईवेट स्कूलों/कालेजो में न पढायेें। क्योंकि जब तक इस तरह की अनिवार्यता नही ला दी जाती है। तब तक इसमें सुधार नही किया जा सकता। स्कूलों की संख्या बढ़ाने की बजाये स्कूलों में छात्रों और अध्यापकों की संख्या बढ़ाई जाये। संख्या बढ़ाने के लिये कम बच्चों वाले स्कूलों को बन्द करके उन बच्चों को बस सुविधा उपलब्ध करवायी जाये ताकि उन्हे स्कूल पहंुचने में कठिनाई न आये।