मोदी सरकार के दो वर्ष

Created on Tuesday, 31 May 2016 05:38
Written by Baldev Sharma

शिमला। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को सत्ता में आये दो वर्ष का समय हो गया है। सरकार की सफलता/असफलता के आकलन के लिये यह पर्याप्त समय माना जा रहा है। क्योंकि भाजपा पहले भी केन्द्र में सत्ता में रह चुकी है। कई बडे़ राज्यों में उसकी सरकारें है। मोदी स्वयं पन्द्रह वर्ष तक गुजरात के मुख्य मंत्री रह चुके है फिर 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी ने देश की जनता से साठ महीने का समय सरकार के लिये मांगा था। इस सबको सामने रखते हुए सरकार का एक निष्पक्ष आकलन बनता है। 2014 के चुनावों से पहले यू पी ए सरकार के खिलाफ सबसे बडा आरोप भ्रष्टाचार का था जनता में रामदेव और अन्ना के आन्दोलनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा आक्रोश उभरा और उस आक्रोश में मोदी जनता की उम्मीदों के केन्द्र बन गये थे। लेकिन दो वर्ष के समय में यू पी ए शासन के खिलाफ भ्रष्टाचार के किसी भी मामलें में कोई ठोेस कारवाई अब तक सामने नही आई है। मोदी यह दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नही आया है। लेकिन यहां प्रधानमंत्री को यह मानना होगा कि क्या वह अपनी राज्य सरकारों के बारे में भी ईमानदारी से यह दावा कर सकते हैं? केन्द्र में आज भ्रष्टाचार है या नही इसका पता आने वाले समय में लगेगा। प्रधानमन्त्री का यह दावा कि एल ई डी बल्बों, कैरोसीन तेल और फर्जी राशन कार्ड, फर्जी अध्यापक आदि कार्डो में लाख करोड़ से अधिक का पर्दाफाश करके इतने धन को बचा लिया गया है। प्रधानमन्त्री का यह दावा सही हो सकता है लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी उठता है कि इस भ्रष्टाचार के लिये किसे सजा दी गयी? क्या घपला सिर्फ कांग्रेस शासित राज्यों में ही हुआ है या भाजपा शासित राज्योें में भी फर्जीे राशन कार्ड पाये गये?े प्रधानमंत्री ने आधार कार्ड के साथ लिंक करके लाभार्थी को सीधा लाभ पहुंचाने का भी दावा किया है लेकिन मोदी जी को यह भी स्मरण रखना होगा कि यू पी ए शासन काल में इसी योजना पर भाजपा का विरोध कितना था। फिर इन सब दावों से इस सच्चाई को भी नजर अन्दाज नही किया जा सकता कि आज खाद्य पदार्थो की कीमतें पहलेे से ज्यादा बढ़ गयी है और इस मंहगाई को किसी भी गणित से नजर अन्दाज नही किया जा सकता ।

प्रधानमन्त्री ने इन दो वर्षो में जितनी विदेश यात्राएं की हंै और इन यात्राओं में जितने आपसी समझौते हुए हैैं उनसे आम आदमी को कितना लाभ अब तक मिल पाया है। इसको लेकर कोई दावा अब तक सामने नहीं आया है। काले धन का मसला अपनी जगह पहले की तरह ही खड़ा है। यह सही है कि इन विदेश यात्राओं में प्रधानमन्त्री जंहा भी गये हैं वहां रह रहे प्रवासी भारतीयों में उनको लेकर बड़ा उत्साह देखने को मिला है लेकिन आज भारत से बाहर रह रहे भारतीयों का प्रतिशत कितना है? देश की कुल आबादी के एक प्रतिशत से अधिक नही है। ऐसे में क्या सारी योजनाओं का केन्द्र केवल एक प्रतिशत लोगों को ही मान लिया जाना चाहिए? अभी तक मोदी सरकार ने जितनी भी विकास योजनाओं का चित्र देश के सामने रखा है उसका प्रत्यक्ष लाभ पांच प्रतिशत से अधिक के लिये नही है। प्रधानमंत्री ने स्वयं माना है कि गरीब आदमी को जो दो तीन रूपये किलो सस्ता अनाज मिल रहा है। उसमें 27 रूपये प्रति किलो की सब्सिडी केन्द्र सरकार दे रही है लेकिन यह जो 27 रूपये दिये जा रहे है यह धन कहां से आ रहा है? फिर सरकार यह 27 रूपये तो उस व्यापारी को दे रही है जो इस राशन की सप्लाई कर रहा है। इसी राशन में फर्जी बाडा भी हो रहा है। इसलिये इस व्यवस्था से किसी को भी लाभ नही हो रहा है न सरकार को और न ही अन्न उगाने वाले किसान का। इसलिये आज इतना बड़ा जन समर्थन हासिल करने के बाद मोदी सरकार सरकार को इस संद्धर्भ में अब तक जितनी भी योजनांए आम आदमी के नाम पर आयी हंै उनका सीधा लाभ बडे़ व्यापारी को ही हुआ है। क्योंकि वह हर येाजना में सप्लायर की भूमिका में रहा है। इसलिये यदि मोदी सरकार इस सप्लायर के चगंुल से आम आदमी को बचाने का प्रयास करती है तभी वह सफल हो पायेगी। शहरों के नाम बदलने उनको स्मार्ट बनाने और स्कूली पाठयक्रमों में कुछ बदलाव करके केवल समाज के अन्दर एक अलग तरह का तनाव पैदा किया जा सकता है लेकिन उससे आम आदमी का कोई स्थायी लाभ होने वाला नही है इसलिये अभी मोदी सरकार को व्यापक संद्धर्भो में सफल करार नही दिया जा सकता ।