जांच ऐजैन्सीयों की विश्वसनीयता

Created on Tuesday, 10 May 2016 14:11
Written by Baldev Shrama

शिमला। भ्रष्टाचार से देश का आम आदमी कितना और किस कदर आहत है इसका प्रमाण जनता ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को एक तरफा समर्थन देकर दे दिया है। लेकिन इस भ्रष्टाचार से छुटकारा कैसे मिलेगा? भ्रष्टाचारियों को सजा कब मिलेगी? भ्रष्टाचार की निष्पक्ष और निडर जांच कौन करेगा? यह सवाल केन्द्र में हुए इतने बड़े सत्ता परिवर्तन के बाद और भी जटिल और गंभीर हो गये हैं क्योंकि मालेगांव और ईशरत जहां जैसे बडे मामलों पर आज हमारी जांच ऐजैन्सीयों का जो चेहरा सामने आया है उससे जांच ऐजैन्सीयां की विश्वसनीयता पर ही गंभीर सवाल और संकट खड़ा हो गया है। आज कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि जांच ऐजैन्सीयां तब सही थी। या आज सही हैं। अभी हैलीकाप्टर खरीद घोटाला सामने आया है। इसमें इटली की अदालत घूस देने वालों को सजा दे चुकी है। इस सौदे के लिये घूस दी गयी थी यह प्रमाणित हो चुका है। घूस देने वाले कौन हैं उनकी पकड़ और पहचान की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। लेकिन इन घूसखोरों के खिलाफ तुरन्त प्रभाव से कारवाई करने की बजाये उस पर राजनीति शुरू हो गयी है। इस राजनीति में इटली के प्रधानमन्त्री और हमारे प्रधानमंत्री के बीच सांठगांठ होने तक के आरोप लग गये हैं। इन आरोपों से एक तरह से इटली की न्यायव्यवस्था पर भी सवाल उठ गये हैं। जो भी वस्तुस्थिति इस पूरे प्रकरण में अब तक उभर चुकी है उससे लगता है कि निकट भविष्य में इस घूस कांड पर से पर्दा उठना संभव नही है।
भ्रष्टाचार के जितने भी बडे़ मामलें आज तक सामने आये हैं उनमें बहुत कम पर सजा हुई है। बल्कि जिन मामलों में बड़े राजनेताओं की संलिप्तता सामने आती है उन मामलों में कारवाई भी उनके राजनीतिक कद के मुताबिक ही सामने आती है। जयललिता और मायावती के मामले इसके बडे़ प्रमाण है। आज मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे अन्ना के आन्दोलन का ही प्रतिफल है लेकिन क्या अब तक भ्रष्टाचार के मामलांे पर राजनीति के अतिरिक्त और कुछ हो पाया है? मालेगांव और ईशरत जंहा मामलों में जहां आरोपों की सूई संघ से प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष ताल्लुक रखने वालोें की ओर घूमी थी आज उस सूई का रूख मोड़ कर जांच ऐजैन्सी की विश्वसनीयता को ही सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया गया है।
यदि मालेगांव और ईशरत जहां मामलों में अब हुए खुलासे सही है तो ऐसा करने वालों के खिलाफ अब तक कारवाई करके उन्हें अदालत से दण्डित नहीं करवा दिया जाता है तब तक इन खुलासों पर विश्वास कर पाना कठिन होगा। क्योंकि आज मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रीयों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के बडे़ मामले चर्चा में हैं जिन पर हो रही कारवाई से देश की जनता कतई संतुष्ट नही है। बल्कि यह हो रहा है कांग्रेस के घोटाले को भाजपा के घोटाले से बड़ा /छोटा प्रमाणित करने की राजनीतिक कवायद हो रही है।
ऐसे में आज मोदी सरकार की देश को यही बड़ी देन होगी यदि देश की सारी जांच ऐजैन्सीयों को केन्द्र और राज्य सरकारों के प्रभाव/दबाव से मुक्त रखने की कोई व्यवस्था कर पाये। क्योंकि जो जांच अधिकारी मामले की जांच शुरू करता है मामले का चालान अदालत तक ले जाने तक वह मामले से अलग हो चुका होता है । जब तक जांच अधिकारी को जांच से लेकर अदालत तक उसे सफल बनाने की जिम्मेदारी से बांध कर नही रखा जाता है तब तक भ्र्रष्टाचार के मामलों में कमी नही आयेगी और न ही सरकारों तथा जांच ऐजैन्सीयों की विश्वसनीयता बन पायेगी। क्योंकि आज जिसकी सरकार उसी की जांच ऐजैन्सी वाली धारणा बनती जा रही है। यह धारणा कालान्तर में देश के लिये अति हानिकारक सिद्ध होगी।