केजरीवाल बनाम भाजपा-कांग्रेस

Created on Tuesday, 26 April 2016 09:07
Written by Baldev Shrama

शिमला। आज की राजनीति में केजरीवाल एक ऐसा नाम बन गया है जिसका किये बिना कोई भी राजनीतिक चिन्तन /बहस पूरी नहीं हो सकती। ऐसा इसलिये हैे कि 2014 के लोकसभा चुनावों में देश की जनता भाजपा के पक्ष में एकतरफा फैसला देकर जो संकेत दिया था उसे दिल्ली और बिहार विधान सभा चुनावों में एकदम पलट दिया। दिल्ली में केजरीवाल की आप ऐसा राजनितिक इतिहास रचा है शायद उसे ’’आप’’ भी दूसरी बार दोहरा सके। बिहार में भी आप ने स्वयं चुनाव न लडकर नीतिश, लालू और कांग्रेस के गठबधन को सक्रिय समर्थन देकर अपने को राजनीतिक गणना और विश्लेषण में बनाये रखा है। आज आप पंजाब विधानसभा चुनावों के लिये कांग्रेस तथा अकाली भाजपा गठनबन्धन के विकल्प के रूप में चर्चित होता जा रहा है। पंजाब की अंतिम राजनीतिक तस्वीर क्या उभरती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन यह तय है कि वहां पर आप को अनदेखा करना संभव नही है। 2014 के लोक सभा चुनावों में आप पहली बार राजनीतिक पटल पर उभरी और आज भाजपा -कांग्रेस के संभावित विकल्प की गणना तक पहुंच चुकी है। यह अपने में एक बडी उपलब्धि है । आप को इस मुकाम तक पहुंचाने मे केजरीवाल की भूमिका प्रमुख रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि कांग्रेस के अन्दर जो स्थान नेहरू गांधी परिवार का है आप में वही स्थान केजरीवाल का बनता जा रहा है। केजरीवाल एक तरह से आप का प्लस और माईनस दोनों बन चुका है। ऐसा होने के बहुत सारे कारण है जिन पर चर्चा की जा सकती है। केजरीवाल का बतौर मुख्य मन्त्री अपने पास एक भी विभाग को न रखना । एक ऐसा हथिहार बन गया है जिसके कारण वह निःसंकोच भ्रष्टाचार की हर शिकायत पर कारवाई करने का दम दियाा रहे है।
लेकिन आज आप को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने के लिये उन्हें हर राज्य में अपनी टीम का चनय करते समय यह ध्यान रखना होगा कि वहां भी उन्हेे दूसरे केजरीवल ही मिले। आज केजरीवाल और मोदी की केन्द्र सरकार में हर समय टकराव चल रहा है। केजरीवाल के 67 विधायकों की टीम में बहुत सारे चेहरे ऐसे भी रहे होगें जिनके बारे में सारी जानकारियां उनके विधायक बनने के बाद मिली हो क्योंकि चुनाव के समय एक लहर थी जिसमें गुण दोष की परख कर पाना संभव नहीं था। लेकिन आज अन्य राज्यों में संगठन खडा़ करते समय गुण दोष को नजर अन्दाज करना हितकर नही रहेगा। केजरीवाल ने जिस तरह से भाजपा के नितिन गडकरी के खिलाफ पूर्ति उ़द्योग समूह को लेकर हमला बोला था उसके कारण गडकरी को अध्यक्षता का दूसरा कार्यकाल नहीं मिल पाया था। लेकिन गडकरी ने जब अपने उपर लगे आरोपों को लेकर अदालत में मानहानि दायर किया तब केजरीवाल को वह आरोप प्रमाणित करने भारी पड गये थे। परन्तु अब जब उसी तर्ज पर केजरीवाल ने क्रिकेट के मुद्दे पर अरूण जेटली को घेरा है तब स्थितियां अलग है। क्योंकि आज दिल्ली सरकार की अपनी जांच रिपोर्ट और भाजपा सासंद कीर्ति आजाद के जेटली पर आरोप केजरीवाल के स्टाक में मौजूद है।
लेकिन जिस ढंग से केजरीवाल ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को चुनौति दे रखी उसका राजनीतिक बदला लेने के लिये भाजपा राज्यों में अपने लोगों को आप मे भेजने की रणनीति बनाकर आप को तोड़ने का प्रयास अवश्य करेगी । क्योंकि भाजपा औकर आप का सत्ता में आना अन्ना आन्दोलन का ही प्रतिफल है । लेकिन यह भी एक कडवा सच है कि अन्ना का सारा आदोंलन संघ प्रायोजित था और आज उसी आन्दोलन का नाम लेकर भाजपा और उसके समर्थित संगठनों के लेाग आप में घुसने का प्रयास करेगें ।क्योंकि आज भाजपा को जो राजनितिक चुनौती आप से है वह कांग्रेस से नहीं है। भले ही कांग्रेस आज भी सबसे बडा राजनितिक संगठन है और भाजपा जन समर्थन खोती जा रही है लेकिन कांग्रेस के ऊपर भ्रष्टाचार के जो आरोप लग चुके है उनके साये से वह अभी तक उक्त नहीं हो पायी है। कांग्रेस ने अपने किसी भी नेता को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते हटाया नही बल्कि यदि ध्यान से देखा जाये तो मोदी सरकार ने भी कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर से ध्यान हटाना शुरू कर दिया है। जबकि देश में सत्ता परिवर्तन भ्रष्टाचार के कारण हुआ है। लेकिन आज भ्रष्टाचार की जगह कुछ दूसरे मुद्दे उछाल दिये गये है और भ्रष्टाचार पृष्ठभूमि में चला गया है। केजरीवाल और आप को भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनने के लिये इस स्थिति पर विचार करना होगा।