मोदी सत्ता पर उठते सवाल

Created on Wednesday, 17 December 2025 11:19
Written by Shail Samachar
केन्द्र में जब 2014 में सत्ता परिवर्तन हुआ था उस समय इस परिवर्तन के सबसे बड़े कारक भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ खड़े हुये अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव के आन्दोलन रहे हैं। इन आन्दोलनों ने यह स्थापित कर दिया था कि देश की जनता भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकती है। यह आन्दोलन आर एस एस से पोषित संचालित और नियंत्रित थे। लेकिन देश के आम आदमी को इससे कोई सरोकार नहीं था कि इन आन्दोलनों की रणनीति का नियंत्रक कौन था। आम आदमी के लिये भ्रष्टाचार और काले धन पर उस समय परोसे गये आंकड़े ही सब कुछ थे। इसी आन्दोलन का प्रभाव था कि कांग्रेस समेत हर दल के नेता भाजपा में शामिल हो गये। उस समय भाजपा ने देश की जनता से पांच वर्ष का कार्यकाल मांगा था अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिये। लेकिन आज भाजपा-मोदी का सत्ता में तीसरा कार्यकाल चल रहा है। अब तक के कार्यकाल पर अगर नजर डालें तो यह सामने आता है कि भ्रष्टाचार के नाम पर ईडी, सीबीआई, आयकर और एनआईए सभी एजैन्सियां अति सक्रिय हैं। परन्तु उनके बनाये हुये कितने मामलों में दोष प्रमाणित होकर दोषी को सजा मिल पायी है तो शायद यह आंकड़ा अभी तक पांच प्रतिश्त तक नहीं पहुंच पाया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय से जिस तरह से वरिष्ठ अधिकारियों को निकाला गया उससे बहुत कुछ व्यावहारिक रूप से सामने आ जाता है। अब तक मोदी सरकार अपने कितने चुनावी वादों को पूरा कर पायी है तो शायद सुक्खू सरकार का आंकड़ा मोदी के आंकड़ों से बेहतर होगा। यही नहीं डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। इससे अर्थव्यवस्था का व्यावहारिक पक्ष सामने आ जाता है। कितने किसानों की आय दोगुनी हो पायी है यह आंकड़ा आज तक जारी नहीं हो सका है। मोदी सरकार ने हर चुनाव में नये नैरेटिव उछाले हैं। सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास आज बुलडोजर न्याय तक पहुंच गया है। दो करोड़ नौकरियां जुमला बनकर रह गया है।
लेकिन यह सब होते हुये भी लगातार चुनावी जीत हासिल की है। इस बार के चुनाव में भाजपा अपने ही दम पर सरकार नहीं बना पायी है और इसी से स्पष्ट हो जाता है कि देश की जनता इस जीत के जादू को समझने लग पड़ी है। इस समझ में यह सामने आ गया है कि यह जीत चुनाव आयोग के सहयोग के कारण हो रही है। वोट चोरी कितने सुनियोजित तरीके से की जा रही है इसके दस्तावेजी प्रमाण सामने आ चुके हैं। चुनाव आयोग वोट चोरी के आरोपों पर जिस तरह के तर्क सामने रख रहा है उससे आयोग की निष्पक्षता पूरी तरह प्रश्नित हो गयी है। एसआईआर का मुद्दा सर्वाेच्च न्यायालय में जिस तरह से चल रहा है उससे शीर्ष अदालत पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लग पड़े हैं। चुनाव आयोग और सर्वाेच्च न्यायालय दो शीर्ष संवैधानिक स्वायतः संस्थान हैं जो सिर्फ संविधान के प्रावधानों से संचालित होते हैं। लेकिन पहली बार देश का विश्वास इन संस्थानों पर प्रश्नित होने लगा है। उनकी निष्पक्षता पर उठते सन्देह कालान्तर में लोकतंत्र के लिये घातक प्रमाणित होंगे यह तय है। सरकार की मंशा पर लगातार सवाल खड़े होते जा रहे हैं। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सरकार येन केन प्रकारेण हिन्दू राष्ट्र के ऐजैण्डे पर चल निकली है। इसी ऐजैण्डे के लिये संविधान में बदलाव की तैयारी की जा रही है। इसी ऐजैण्डे के तहत सार्वजनिक संसाधनों को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। इसी के तहत यह पहली सरकार है जिनके कार्यकाल में कोई भी नया सार्वजनिक संस्थान स्थापित नहीं हुआ है। अब जब वोट चोरी का सच देश के हर कोने तक पहुंच गया है तब यह स्पष्ट हो जाता है कि अब इस मुद्दे को जनान्दोलन बनने से हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा भी नहीं रोक पायेगी। क्योंकि यह देश बहुधर्मी और बहुभाषी है। इसमें एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ बताकर सत्ता नहीं चलाई जा सकती। अभी वन्दे मातरम की चर्चा के दौरान जो दस्तावेजी प्रमाण संसद के पटल पर आये हैं वह देर सवेर पढ़े जायेंगे और यह सच सामने आयेगा कि इतिहास को इतिहास लेखन प्रकोष्ठों के लेखन से बदला नहीं जा सकता। देश की स्वतंत्रता में जिन लोगों का योगदान रहा है उसे बदला नहीं जा सकता यह एक स्थापित सच है आज मोदी सत्ता पर उठते सवाल इसी कारण से गंभीर होते जा रहे हैं।
 
मोदी सत्ता पर उठते सवाल
केन्द्र में जब 2014 में सत्ता परिवर्तन हुआ था उस समय इस परिवर्तन के सबसे बड़े कारक भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ खड़े हुये अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव के आन्दोलन रहे हैं। इन आन्दोलनों ने यह स्थापित कर दिया था कि देश की जनता भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकती है। यह आन्दोलन आर एस एस से पोषित संचालित और नियंत्रित थे। लेकिन देश के आम आदमी को इससे कोई सरोकार नहीं था कि इन आन्दोलनों की रणनीति का नियंत्रक कौन था। आम आदमी के लिये भ्रष्टाचार और काले धन पर उस समय परोसे गये आंकड़े ही सब कुछ थे। इसी आन्दोलन का प्रभाव था कि कांग्रेस समेत हर दल के नेता भाजपा में शामिल हो गये। उस समय भाजपा ने देश की जनता से पांच वर्ष का कार्यकाल मांगा था अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिये। लेकिन आज भाजपा-मोदी का सत्ता में तीसरा कार्यकाल चल रहा है। अब तक के कार्यकाल पर अगर नजर डालें तो यह सामने आता है कि भ्रष्टाचार के नाम पर ईडी, सीबीआई, आयकर और एनआईए सभी एजैन्सियां अति सक्रिय हैं। परन्तु उनके बनाये हुये कितने मामलों में दोष प्रमाणित होकर दोषी को सजा मिल पायी है तो शायद यह आंकड़ा अभी तक पांच प्रतिश्त तक नहीं पहुंच पाया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय से जिस तरह से वरिष्ठ अधिकारियों को निकाला गया उससे बहुत कुछ व्यावहारिक रूप से सामने आ जाता है। अब तक मोदी सरकार अपने कितने चुनावी वादों को पूरा कर पायी है तो शायद सुक्खू सरकार का आंकड़ा मोदी के आंकड़ों से बेहतर होगा। यही नहीं डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। इससे अर्थव्यवस्था का व्यावहारिक पक्ष सामने आ जाता है। कितने किसानों की आय दोगुनी हो पायी है यह आंकड़ा आज तक जारी नहीं हो सका है। मोदी सरकार ने हर चुनाव में नये नैरेटिव उछाले हैं। सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास आज बुलडोजर न्याय तक पहुंच गया है। दो करोड़ नौकरियां जुमला बनकर रह गया है।
लेकिन यह सब होते हुये भी लगातार चुनावी जीत हासिल की है। इस बार के चुनाव में भाजपा अपने ही दम पर सरकार नहीं बना पायी है और इसी से स्पष्ट हो जाता है कि देश की जनता इस जीत के जादू को समझने लग पड़ी है। इस समझ में यह सामने आ गया है कि यह जीत चुनाव आयोग के सहयोग के कारण हो रही है। वोट चोरी कितने सुनियोजित तरीके से की जा रही है इसके दस्तावेजी प्रमाण सामने आ चुके हैं। चुनाव आयोग वोट चोरी के आरोपों पर जिस तरह के तर्क सामने रख रहा है उससे आयोग की निष्पक्षता पूरी तरह प्रश्नित हो गयी है। एसआईआर का मुद्दा सर्वाेच्च न्यायालय में जिस तरह से चल रहा है उससे शीर्ष अदालत पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लग पड़े हैं। चुनाव आयोग और सर्वाेच्च न्यायालय दो शीर्ष संवैधानिक स्वायतः संस्थान हैं जो सिर्फ संविधान के प्रावधानों से संचालित होते हैं। लेकिन पहली बार देश का विश्वास इन संस्थानों पर प्रश्नित होने लगा है। उनकी निष्पक्षता पर उठते सन्देह कालान्तर में लोकतंत्र के लिये घातक प्रमाणित होंगे यह तय है। सरकार की मंशा पर लगातार सवाल खड़े होते जा रहे हैं। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सरकार येन केन प्रकारेण हिन्दू राष्ट्र के ऐजैण्डे पर चल निकली है। इसी ऐजैण्डे के लिये संविधान में बदलाव की तैयारी की जा रही है। इसी ऐजैण्डे के तहत सार्वजनिक संसाधनों को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। इसी के तहत यह पहली सरकार है जिनके कार्यकाल में कोई भी नया सार्वजनिक संस्थान स्थापित नहीं हुआ है। अब जब वोट चोरी का सच देश के हर कोने तक पहुंच गया है तब यह स्पष्ट हो जाता है कि अब इस मुद्दे को जनान्दोलन बनने से हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा भी नहीं रोक पायेगी। क्योंकि यह देश बहुधर्मी और बहुभाषी है। इसमें एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ बताकर सत्ता नहीं चलाई जा सकती। अभी वन्दे मातरम की चर्चा के दौरान जो दस्तावेजी प्रमाण संसद के पटल पर आये हैं वह देर सवेर पढ़े जायेंगे और यह सच सामने आयेगा कि इतिहास को इतिहास लेखन प्रकोष्ठों के लेखन से बदला नहीं जा सकता। देश की स्वतंत्रता में जिन लोगों का योगदान रहा है उसे बदला नहीं जा सकता यह एक स्थापित सच है आज मोदी सत्ता पर उठते सवाल इसी कारण से गंभीर होते जा रहे हैं।
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