एस आई आर पर उठते सवाल

Created on Wednesday, 26 November 2025 04:21
Written by Shail Samachar

बिहार में जब एस आई आर चल रहा था तब इस पर उठते सवालों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। लेकिन सर्वाेच्च न्यायालय इस पर अन्तिम फैसला नहीं दे पाया था। मामले को बिहार चुनावों के बाद सुनवाई के लिये रख लिया गया। लेकिन इन्हीं चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने एस आई आर को देश के बारह राज्यों में करवाये जाने का ऐलान कर दिया और वहां पर इसका काम शुरू भी हो चुका है। परन्तु इसी बीच जो परिणाम बिहार चुनाव के आये हैं उसमें एस आई आर पर सवाल उठाने वाले महागठबंधन को शर्मनाक हार और एनडीए को प्रचण्ड बहुमत हासिल हुआ है। परन्तु इन चुनाव परिणाम का अध्ययन करने के बाद अधिकांश सीटों पर हार जीत के अन्तर से वहां पर एस आई आर में कांटे गये वोटरों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। इससे अनायास ही यह सन्देश चला गया कि एस आई आर की प्रक्रिया में सत्ता पक्ष के विरोधियों के ही वोट काटे जा रहे हैं।
इस पर एस आई आर के खिलाफ एक बड़ा विरोध खड़ा हो गया है। एस आई आर को तुरन्त प्रभाव से बन्द करने की मांग उठ गयी है। इसी मांग के साथ एस आई आर के काम में लगे बी एल ओ पर अत्याधिक दबाव और तनाव आ गया है। इसके कारण कई स्थानों पर बी एल ओज द्वारा आत्महत्या कर लिये जाने के समाचार भी आ गये हैं। यह भी समाचार आया है कि मध्य प्रदेश में भाजपा और संघ के कार्यकर्ता भी बी एल ओज की सूची में शामिल है। एस आई आर के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा कई शिकायतें भी दायर हो चुकी हैं। ऐसी संभावना है कि यदि इन शिकायतों पर समय रहते पूरी निष्पक्षता के साथ सुनवाई नहीं हुई तो यह राजनीतिक दल चुनावों तक का बहिष्कार कर सकते हैं। क्योंकि जब चुनाव निष्पक्षता से होने ही नहीं है तो उनमें भागीदारी से कोई लाभ नहीं हो सकता। ऐसे में देश की जनता के सामने इस सच को पूरी नग्नता के साथ रखने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता है।
अब जब बिहार चुनावों के लगभग एक तरफा परिणाम आने के बाद ही चुनाव आयोग पर उठते सवाल शान्त नहीं हुये हैं तब देश के दो सौ सतर पूर्व न्यायाधीशों, राजनयिकों और वरिष्ठ नौकर शाहों ने राहुल गांधी के नाम खुला पत्र जारी करके उसकी मंशा पर सवाल उठाते हुये उसके आरोपों को चुनाव आयोग को बदनाम करने की साजिश करार दिया है। तब पूरा देश इन लोगों की निष्ठाओं पर सवाल उठाने लग गया है। यह आरोप लग रहा है कि यह लोग किसी न किसी रूप में इस सरकार के विशेष लाभार्थी रहे हैं। क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट में राहुल के आरोपों की जांच के लिये एक एसआईटी गठित किये जाने की मांग की गयी थी और शीर्ष अदालत ने इस मांग को अस्वीकार करते हुये इस मुद्दे को उसी चुनाव आयोग के पास उठाने की राय दी थी जिसके खिलाफ यह आरोप थे। तब यह बुद्धिजीवी लोग क्यों सामने नहीं आये थे? कोई भी यह नहीं कह पाया कि यह सवाल गलत है। आज बिहार के चुनाव परिणामों ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रह गया है। पूरे देश में आयोग की नीयत और एस आई आर पर जो सन्देह आम आदमी के मन में घर कर गया है उसे दूर करने के लिये चुनाव आयोग और शीर्ष न्यायालय को उस संदेह को दूर करने के लिए कुछ ठोस व्यवहारिक कदम उठाने होंगे। क्योंकि लोकतंत्र की बुनियाद ही लोगों का विश्वास है और जब यह विश्वास ही प्रश्नित हो जाये तो फिर लोकतंत्र का बचना कठिन हो जायेगा। यह देश बहुधर्मी और बहुभाषी है। इसमें एक धर्म को दूसरे से छोटा बात कर आचरण नहीं किया जा सकता। मुस्लिम समुदाय इस देश का अभिन्न हिस्सा है उसे मानने वालों को दूसरे से छोटा आंकना देश के लिये घातक होगा। देश में एक धर्म को दूसरे के विरोध में खड़ा करके देश को नहीं चलाया जा सकता। पिछले कुछ अरसे से सुनियोजित तरीके से धर्म के आधार पर भेदभाव चल रहा है और देश की जनता अब इसे समझने भी लग पड़ी है। इसलिये लोकतंत्र को जिन्दा रखने के लिये इसमें संवैधानिक संस्थाओं को अपना आचरण व्यवहारिक रूप से सुधारना होगा। यदि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता को प्रमाणित नहीं कर सकता तो फिर जन आन्दोलन को रोकना असंभव हो जायेगा। इस निष्पक्षता के लिये एस आई आर की प्रक्रिया पर समय रहते बदलाव न किये गये तो परिणाम बहुत अराजक हो जाएंगे यह तय हैं।