बिहार चुनावों पर सारे देश की निगाहें लगी हुई थी क्योंकि इस चुनाव से पहले चुनाव आयोग को लेकर कुछ राष्ट्रीय प्रश्न देश के सामने उछल चुके थे। चुनाव के दौरान भी और अब इस चुनाव के परिणाम आने के बाद वह राष्ट्रीय प्रश्न और भी गंभीर हो गये हैं। यह चुनाव परिणाम पूरी तरह एक तरफा है। विपक्ष को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन परिणाम पर जो प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दी है उसमें उन्होंने कांग्रेस का नया नामकरण किया है ‘‘मुस्लिम लीग माओवादी’’ कांग्रेस। प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट हो जाता है कि वह अभी भी कांग्रेस से कहीं न कहीं डरते हैं। संभव है कि इस डर के प्रतिफल के रूप में कांग्रेस के अन्दर एक विभाजन हो जाये। कांग्रेस की कुछ सरकारें इस संभावित विभाजन की भेंट चढ़ जायें। क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी को इसी तरह का चुनावी परिणाम गैर भाजपाई राज्यों में आगे होने वाले चुनावों में प्रदर्शित करना होगा। चुनाव आयोग के चुनाव आयुक्तों को आजीवन कानूनी संरक्षण प्राप्त है। उनके खिलाफ कहीं भी कोई भी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता है। इसलिये चुनाव आयोग को भी सत्ता के इशारे पर नाचने की विवशता आ खड़ी होगी। क्योंकि बिहार में हुये एस आई आर का मामला अभी भी सर्वाेच्च न्यायालय में लंबित है। बिहार में पैंसठ लाख नाम मतदाता सूचियों से काट दिये गये। बाईस लाख वोटर जोड़ दिये गये। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद मतदान होने के बाद जो सूची आयोग ने जारी की उसमें तीन लाख वोटर और सूचियों में जोड़ दिये गये। यह सामने आ गया है कि एक सौ अठ्ठाईस सीटों पर जहां एनडीए के उम्मीदवार विजयी हुये हैं वहां जीत का अंतर मतदाता सूची से हटाये गये मतदाताओं की संख्या से बहुत ही कम है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि यदि यह नाम सूची से न हटाए गये होते तो इन सीटों पर एनडीए का जीतना संभव नहीं था।
यह सवाल आने वाले दिनों में उठेंगे यह तय है। लेकिन इनका कोई भी जवाब आयोग की ओर से पहले की तरह नहीं आयेगा यह भी तय है। सर्वाेच्च न्यायालय भी पहले की तरह तारीखें देने से ज्यादा कुछ नहीं करेगा और चुनाव आयोग तो कानूनन कहीं जवाब देह है ही नहीं। आयोग की जगह सरकार और हिन्दू राष्ट्र के पक्षधर जवाब देंगे। ऐसी स्थिति में देश का युवा और आम आदमी क्या करेगा? क्योंकि हिन्दू राष्ट्र के पक्षधरों को तो हिन्दू राष्ट्र के आगे सरकार पर उठने वाला हर सवाल राष्ट्र विरोधी नजर आयेगा। इसमें यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि विपक्ष अपनी इस हार पर किस तरह की प्रतिक्रिया देता है और जनता के बीच क्या लेकर जाता है। इन परिणामों के बाद क्या सरकार महंगाई पर नियंत्रण पायेगी? क्या बेरोजगारी का सवाल हल हो पायेगा? शायद यह सारे सवाल हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना में दफन हो जायेंगे।
आज इन चुनाव परिणामों के बाद विपक्ष के हर दल को अपने अन्दर झांकने की आवश्यकता है क्योंकि हर दल में भाजपा संघ के स्लीपर सैल मौजूद हैं। कांग्रेस में तो राहुल गांधी ने इन स्लीपर सैलों को चेतावनी भी दी थी लेकिन व्यवहारिक तौर पर कोई कारवाई नहीं हुई। कांग्रेस को अब अपनी विचारधारा को लेकर अपने कार्यकर्ताओं को जागरूक करना होगा। क्योंकि इस समय कांग्रेस नीत सरकारों में भी ठेकेदारी की मानसिकता प्रबल हो गयी है। कांग्रेस की सरकारें भी अनचाहे ही संघ भाजपा के एजैन्डे पर ही काम कर रही है। इन सरकारों को अपने चुनावी घोषणा पत्र राज्य की आर्थिक स्थितियों के आधार पर लाने होंगे। अन्यथा यह घोषणा पत्र ही इन सरकारों और पार्टी को डुबोने में काफी होंगे। अब कांग्रेस को निष्पक्षता के साथ आत्म मंथन करने की अति आवश्यकता है।