बिहार चुनाव जिस राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे हैं उससे पूरे देश की निगाहें इस पर लग गयी हैं। इन चुनावों में एनडीए या इंडिया गठबंधन को सफलता मिलती है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण इस चुनाव के दौरान उभरे प्रश्न हो गये हैं जिन पर एक सार्वजनिक बहस आवश्यक हो गयी है। बिहार में चुनाव से पूर्व मतदाता सूचियां का गहन सर्वेक्षण करवाया गया था। इन गहन सर्वेक्षण में करोड़ों मतदाताओं का नाम मतदाता सूचीयों से काट दिये जाने का सच सामने आया। चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को बड़ा प्रमाण मानने से इन्कार कर दिया और मामला सर्वाेच्च न्यायालय में पंहुचा। शीर्ष अदालत ने आधार कार्ड को एक वैध प्रमाण माना और चुनाव आयोग को निर्देश दिये कि इसे पहचान और मतदाता पंजीकरण में वैध आधार स्वीकार किया जाये। आज आधार कार्ड एक बुनियादी पहचान पत्र बन चुका है। परन्तु चुनाव आयोग ने इसे वैध प्रमाण मानने से क्यों इन्कार किया इसका जवाब आज तक नहीं आ पाया है। बिहार एसआईआर का मामला अभी तक सर्वाेच्च न्यायालय में लंबित है और फिर भी बिहार में चुनाव करवा दिये गये। क्या ऐसे में यह चुनाव करवाना चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल नहीं खड़े करता। क्योंकि इस मामले में शीर्ष अदालत में लंबित होने के बावजूद पूरे देश में एसआईआर लागू कर दिया गया। चुनाव आयोग के इस फैसले का बंगाल और तमिलनाडु में उग्र विरोध हुआ है। चार दर्जन राजनीतिक दल इसके खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय जा रहे हैं।
चुनाव आयोग पर वोट चोरी के जो आरोप पूरे प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ राहुल गांधी ने लगाये हैं उन पर आयोग की ओर से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं आ पाया है। कर्नाटक में इस वोट चोरी पर मामला दर्ज कर एसआईटी को इसकी जांच सौंप दी गयी है। एसआईटी ने अब तक अपनी जांच में जो तथ्य जुटाये हैं उनसे भाजपा के कुछ नेताओं पर आंच आने की संभावना बढ़ गयी है और वह लोग अग्रिम जमानते हासिल करने के प्रयास में लग गये हैं। वोट चोरी के आरोप एक राष्ट्रीय अभियान की शक्ल लेते जा रहे हैं। क्योंकि केंद्र सरकार और भाजपा आयोग के पक्ष में खड़े हो गये हैं इससे अनचाहे ही संदेश चला गया है की चुनाव आयोग की पक्षधरता का लाभ भाजपा को मिल रहा है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठते सवाल देश में लोकतंत्र के भविष्य के सवाल बनते जा रहे हैं।
चुनावों में मुफ्ती की घोषणाओं के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय तक ने भी चिंता जताई है। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं इसके खिलाफ एक समय आवाज उठा चुके हैं। लेकिन बिहार चुनावों की पूर्व संध्या पर जब प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं बिहार की 75 लाख महिलाओं के खातों में दस-दस हजार डालने की घोषणा कर दी तब मफ्ती को लेकर प्रधानमंत्री की करनी और कथनी का अन्तर सामने आ गया। लेकिन यह पैसा चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद खातों में डाला जाने लगा। इस पर राजद के मनोज झा ने चुनाव आयोग को एक लम्बी चौड़ी शिकायत भेज दी। इस शिकायत पर आयोग खामोश बैठ गया है। यही नहीं इस फैसले के बाद विदेशी मुद्रा भण्डार में आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक साठ हजार करोड़ की कमी आ गयी। डॉलर के मुकाबले रुपया और गिर गया। आरबीआई को बाजार स्थिर रखने के लिये पैंतीस टन सोना बेचना पड़ गया। सोने की इस बिक्री ने सरकार की आर्थिक स्थिति के दावों को सवालों में लाकर खड़ा कर दिया है। इसका देश पर दीर्घकालिक प्रभाव पडना आवश्यक है। संयोगवश यह सब कुछ बिहार चुनावों के दौरान घटा है इसका मतदाताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस परिदृश्य में हो रहे बिहार चुनाव निश्चित रूप से ऐसे सवाल छोड़ रहे हैं जिन्हें नजरअन्दाज करना आसान नहीं होगा।