चुनाव आयोग की वकालत सरकार क्यों कर रही है?

Created on Thursday, 02 October 2025 11:18
Written by Shail Samachar
चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर एक लंबे समय से सवाल उठते आ रहे हैं जो अब वोट चोरी के आरोप तक जा पहुंचे हैं। ईवीएम मशीनों की अविश्वसनियता पर सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने सवाल उठाये थे और एक पुस्तिका तक जारी कर दी थी। फिर डॉ. स्वामी ने सवाल उठाये और सर्वाेच्च न्यायालय तक जा पहुंचे और इन मशीनों में वीवीपैट यूनिट जोड़ा गया। इसी दौरान आर.टी.आई. के माध्यम से यह सूचना बाहर आयी की उन्नीस लाख मशीने गायब हैं। यह मामला भी पुलिस जांच और अदालत तक गया। लेकिन इसका अन्तिम परिणाम क्या निकला आज तक सामने नहीं आ पाया है। हर चुनाव के बाद निष्पक्षता और पारदर्शिता पर देश के राजनीतिक दलों ने सवाल उठाये और चुनाव मत पत्रों के माध्यम से करवाये जाने की मांग रखी। एडीआर और अठारह राजनीतिक दलों ने सर्वाेच्च न्यायालय में इस संदर्भ में दस्तक दी। सर्वाेच्च न्यायालय ने मत पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाये जाने के आग्रह को तो स्वीकार नहीं किया लेकिन यह प्रावधान कर दिया कि चुनाव प्रक्रिया का सारा डिजिटल रिकॉर्ड पैन्तालीस दिनों तक सुरक्षित रखा जायेगा और चुनाव में दूसरे या तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार को उपलब्ध करवाया जायेगा यदि वह चुनाव याचिका में जाता है और इस संदर्भ में आने वाले खर्च को जमा करवाता है। लेकिन चुनाव आयोग ने सर्वाेच्च न्यायालय के इस प्रावधान की अनुपालना नहीं की। हरियाणा की एक विधानसभा का मामला पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय जा पहुंचा। उच्च न्यायालय ने रिकार्ड उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये। लेकिन इन निर्देशों के बाद इस आशय के नियमों में ही संशोधन करके रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करवाया।
जब सर्वाेच्च न्यायालय के ही निर्देशों की अनुपालना में इस तरह का व्यवहार आयेगा तो यह स्थिति किसी को भी चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर उठने वाले सवालों का पूरी गहनता के साथ पड़ताल करने को बाध्य कर देगा। इसी वस्तु स्थिति ने राहुल गांधी और उनकी टीम को इन सवालों की पड़ताल करने के लिये बाध्य किया। राहुल गांधी ने इस संदर्भ में जो तथ्यात्मक प्रमाण जनता के सामने रखे हैं उनको चुनाव आयोग ने बिना किसी जांच के ही खारिज करते हुये राहुल गांधी से इस में ज्ञापन पत्र मांग लिया। सवाल चुनाव आयोग पर उठे और उसकी वकालत में पूरी भाजपा उतर आयी। बिहार में करवायी गयी एस आई आर में पैंसठ लाख वोट डिलीट किये जाने का मामला उठा और केंद्र सरकार ने बिहार की पच्चहतर लाख महिलाओं को सीधे दस-दस हजार रुपए उनके बैंक खातों में ट्रांसफर करवा दिये। वोट चोरी के आरोप जिस दस्तावेजी प्रमाणिकता के साथ सामने आये हैं उससे यह एक जन आन्दोलन की शक्ल में बदलता नजर आ रहा है। इस संदर्भ में राहुल गांधी की जनसभाओं को रद्द करवाने की रणनीति पर सरकार आ गयी है। एक भाजपा प्रवक्ता पर यह आरोप लग रहा है कि उसने राहुल गांधी की छाती में गोली मार दिये जाने की बात मंच से कही है और केन्द्र सरकार इस आरोप पर चुप है।
वोट चोरी के आरोपों के साथ पिछले ग्यारह वर्षों में जो कुछ देश में घटा है वह सब सामने सवाल बनकर खड़ा होता जा रहा है। देश का युवा प्रतिवर्ष दो करोड़ नौकरियों के वायदे पर सवाल पूछ रहा है। आज जीएसटी में संशोधन करके महंगाई से राहत की बात की जा रही है। लेकिन इसी के साथ यह सवाल उठ रहा है कि जिन वस्तुओं पर नौ वर्ष पहले टैक्स जीरो था क्या उनके दाम आज उसी के बराबर हैं? हर चुनाव में किया गया वायदा आज व्यवहारिकता में जवाब मांगने लगा है। देश के सारे सार्वजनिक उपक्रम आज प्राइवेट हाथों में जा पहुंचे हैं। देश विश्व बैंक के कर्जदारों में पहले स्थान पर पहुंच गया है। इस बढ़ते कर्ज से महंगाई और बेरोजगारी ही बढ़ेगी यह तय है। देश का युवा जो आज सूचना प्रौद्योगिकी के कारण हर चीज की जानकारी रख रहा है और वही बेरोजगारी से सबसे ज्यादा पीड़ित है उस युवा के आक्रोश को दबाना आसान नहीं होगा। सवाल पूछने पर गोली मारने के विकल्प के मायने बहुत गंभीर और दूरगामी होंगे यह तय है।