चुनौती पूर्ण होगा डॉ. बिन्दल का अगला सफर

Created on Wednesday, 02 July 2025 17:53
Written by Shail Samachar
प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में डॉ. बिन्दल तीसरी बार भाजपा के अध्यक्ष बनना निश्चित रूप से एक बड़ी राजनीतिक सफलता है। क्योंकि भाजपा एक ऐसा राजनीतिक संगठन है जिसमें अध्यक्ष के लिये कभी भी मतदान की स्थिति नहीं आने दी जाती है। इसमें चयन नहीं मनोनयन का सूत्र प्रभावी होता है और यह मनोनयन राज्य ही नहीं बल्कि केन्द्रीय नेतृत्व से होकर आता है। इस समय प्रदेश में जिस तरह से भाजपा नेतृत्व कांग्रेस सरकार के साथ खड़ा नजर आ रहा है उसमें बिन्दल का अध्यक्ष बनना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हिमाचल की राजनीतिक परिपाटी में आगे भाजपा का सत्ता में आना लगभग तय माना जा रहा है। फिर हिमाचल में आज तक मुख्यमंत्री का पद राजपूत और ब्राह्मण समुदाय से बाहर नहीं गया है। आने वाले समय में भी यही दोहराये जाने की संभावना है। इसमें भी बिन्दल किसी के लिये चुनौती नहीं होंगे यह भी तय माना जा रहा है। इस समय हिमाचल एक कठिन वित्तीय दौर से गुजर रहा है। सरकार में आम आदमी पर जिस तरह से करों/शुल्कों का बोझ बढा़कर प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में डाल दिया है वह भविष्य की सरकारों के लिये भी एक समस्या बनेगी यह तय है। वर्तमान सरकार प्रदेश के वित्तीय संकट के लिये पूर्व भाजपा सरकार के कुप्रबंधन को लगातार दोषी ठहराती आ रही है। लेकिन भाजपा इस आरोप का कोई बड़ा जवाब नहीं दे पायी है। क्योंकि भाजपा पर यह आरोप भी आ गया है कि उसने धन बल के सहारे सरकार को गिराने का प्रयास किया और प्रदेश की जनता ने उपचुनाव में फिर कांग्रेस को उस बहुमत पर लाकर खड़ा कर दिया। भाजपा इसका भी कोई राजनीतिक जवाब अभी तक नहीं दे पायी है।
पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा की सरकार नहीं बन पायी क्योंकि हमीरपुर और शिमला संसदीय क्षेत्रों में पार्टी की परफॉर्मेंस बहुत अच्छी नहीं रही। जिस तरह का चुनाव परिणाम मण्डी ने भाजपा को दिया यदि वैसा ही परिणाम हमीरपुर, शिमला का भी रहता तो स्थितियां कुछ और ही होती। राज्यसभा चुनाव में जब भाजपा पर दल बदल करवा कर सरकार गिराने का आरोप लगा उसके बाद से भाजपा आज तक उस आरोप से न तो मुक्त हो पायी है और न ही सरकार को नुकसान पहुंचा पायी है। जबकि ऐसी परिस्थितियां विधानसभा उपचुनावों के दौरान ही निर्मित हो गयी थी कि भाजपा जब चाहे सरकार बदलवा सकती है। देहरा उपचुनाव में 78.50 लाख रुपया चुनाव के अन्तिम सप्ताह में सरकारी आदारों द्वारा कैश बांटा जाना एक ऐसा सवाल बन चुका है जिस पर भाजपा की चुप्पी कई कुछ कह जाती है। क्योंकि इस संबंध में राज्यपाल के पास आयी होशियार सिंह की शिकायत पर अभी तक कोई कारवाई न हो पाना कई सवालों को जन्म दे जाता है।
इसी तरह नादौन में हुई ई.डी. की छापेमारी में दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद उस मामले में भी आगे कुछ न होना भी कई सवाल खड़े कर जाता है। अब विमल ने की मौत प्रकरण की जांच में सी.बी.आई. का अब तक खाली हाथ होना भी लोगों में सवाल खड़े करने लग पड़ा है। इन सवालों पर प्रदेश भाजपा का नेतृत्व लगभग मौन चल रहा है। बल्कि कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुये नेता भी अब लगभग शान्त होकर बैठ गये हैं। भाजपा शायद इस सोच में चल रही है कि वर्तमान सरकार जनता में जितनी असफल प्रमाणित होती जायेगी उसी अनुपात में उसका स्वभाविक लाभ भाजपा को मिल जायेगा। लेकिन जिस तरह से भाजपा में ही कुछ असन्तुष्ट नेताओं ने एक अलग गुट खड़ा कर लिया है उसमें यदि कल को कुछ और नेता भी जुड़ जाते हैं तो स्थितियां एकदम बदल जायेगी। तब सरकार की असफलता का स्वभाविक लाभ भाजपा को ही मिलना निश्चित नहीं होगा। क्योंकि जिस तरह से भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व लगातार सवालों में उलझता जा रहा है उसका असर हर प्रदेश पर पढ़ना तय है। इस परिदृश्य में डॉ. बिन्दल के लिये यह भी बड़ी चुनौती होगा कि वह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की सरकार के साथ चर्चित सांठ गांठ के आरोपों से कैसे बाहर निकालते हैं। क्योंकि आने वाले समय में सरकार से ज्यादा भाजपा पर सवाल उठने लग पड़ेंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि महत्वपूर्ण सवालों पर भाजपा की चली आ रही चुप्पी के आरोपों को बिन्दल किस तरह से नकार पाते हैं। क्योंकि आने वाले समय में प्रदेश भाजपा में नड्डा, अनुराग ठाकुर और जयराम में ही प्रदेश के मुख्यमंत्री की दौड़ होगी? इनमें कौन नेता अपने-अपने जिलों में कितनी चुनावी जीत हासिल कर पाता है यह बड़ा सवाल होगा और डॉ. बिन्दल के लिये यही बड़ी चुनौती होगी कि वह कैसे इन ध्रुवों को इकट्ठा चला पाने में सफल होते हैं।
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