क्या राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर बैठे भाजपा के अपरोक्ष समर्थकों को बाहर कर पाऐगें? या राहुल की कारवाई से पहले ही नरेंद्र मोदी कांग्रेस में एक बड़ी सेंधमारी को अंजाम दे देंगे? यह सवाल देश की राजनीति के राहुल बनाम मोदी होतेे जाने के बाद उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि 2024 में भाजपा के मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आने के बाद लगभग सभी छोटे बड़े राजनीतिक दलों में विघटन हुआ है और पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं ने भाजपा में ही शरण ली है। बल्कि आज की भाजपा में दूसरे दलों से आये नेताओं की संख्या मूल भाजपाईयों से शायद बढ़ गयी। दूसरे दलों से तोड़ फोड़ में सरकार की एजेंसियों ईडी, सीबीआई और आयकर की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। फिर राहुल गांधी को पप्पू प्रचारित और प्रमाणित करने के लिये एक विशेष अभियान चलाया गया जिसका खुलासा कोबरा पोस्ट ने अपने स्टिंग ऑपरेशन में देश के सामने रखा था। आज भी जितने ज्यादा आपराधिक मामले राहुल गांधी के खिलाफ बनाये गये हैं उससे भी यही प्रमाणित होता है कि नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा राहुल गांधी को ही अपना विकल्प मानती है। अन्ना और रामदेव के आन्दोलन से भाजपा कांग्रेस को सत्ता से हटाने में तो सफल हो गयी लेकिन अभी स्थापित नहीं हो पायी है क्योंकि आज नरेंद्र मोदी और भाजपा किसी समय कांग्रेस के खिलाफ उठाये अपने ही सवालों में बुरी तरह घिरते जा रहे है। महंगाई, बेरोजगारी, आतंकवाद, काला धन और डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार कमजोर होते जाना ऐसे मुद्दे जिन्हे भाजपा ने एक समय कांग्रेस के खिलाफ बहुत बड़े स्तर पर उछाला था लेकिन आज यही मामले पहले से कई गुना बढ़ गये और उसी अनुपात में भाजपा-मोदी से जवाब मांग रहे हैं। आज भाजपा-मोदी यदि हिन्दू मुसलमान के विभाजनकारी एजैण्डे को छोड़कर अन्य किसी मुद्दे पर देश में एक सार्वजनिक बहस उठाना चाहे तो शायद उनके पास और कोई राष्ट्रीय मुद्दा रह ही नहीं गया है। अभी पहलगाम और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिन्दूर में जिस तरह से समूचे विपक्ष ने सरकार को स्थिति से निपटने के लिये सरकार और सेना का समर्थन दिया उसमंे अन्त में जिस तरह का आचरण सरकार ने देश के सामने रखा है उससे स्वयं ही विवादों में आ खड़ी हो गई है। क्योंकि पहलगाम के वह चारों दोषी आज तक पकड़े नहीं गये हैं। सेना ने जिस तरह से दुश्मन देश को उसके घर में घुसकर नुकसान पहुंचाया था उससे उम्मीद बंधी थी कि इससे सीमा पार से पोषित आंतकवाद से स्थायी तौर पर निपटारा हो जायेगा। लेकिन जिस तरह से ट्रंप के दखल से सीजफायर हुआ उससे सरकार की जो कमजोरी विदेश नीति के मामले में सामने आयी है उससे भाजपा-मोदी पर ऐसे स्थायी प्रश्न चिपक गये हैं जिनसे छुटकारा पाना असंभव हो गया है। ऐसे में यह आशंकाएं उभर रही है कि भाजपा-मोदी इस सबसे बचने के लिये जहां यह कहने लग गये हैं कि ट्रंप के ब्यानों पर विश्वास करने की बजाये मोदी पर विश्वास किया जाना चाहिए यह इस बात का संकेत बनता जा रहा है कि शायद अब भाजपा के कुछ कोने में मोदी पर अविश्वास बढ़ने लग पड़ा है। आज भाजपा जब अपना नया अध्यक्ष चुनने में ही उलझ गयी है तो स्पष्ट हो जाता है कि संघ भाजपा के रिश्तों में भी शायद दरारे आना शुरू हो गयी हैैं। इस वस्तुस्थिति में अपने विकल्प को जनता में कमजोर प्रमाणित करने के लिये कांग्रेस के अन्दर किसी बड़ी तोड़फोड़ की बिसात का बिछाया जाना भाजपा-मोदी की तात्कालिक आवश्यकता बन सकती है। क्योंकि यह राहुल गांधी के ही प्रयासों का परिणाम था की लोकसभा में भाजपा 400 पार की 240 पर ही रुक गयी। अब तो स्थितियां और प्रतिकूल है ऐसे में कांग्रेस की सरकारों में किसी तोड़फोड़ की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।