दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक लम्बे अन्तराल के बाद भाजपा को जीत हासिल हुई है। इस चुनाव में केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की हार हुई है। लेकिन सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस लगातार तीसरी बार शुन्य से आगे नहीं बढ़ पायी है। यह तीनों राजनीतिक घटनाएं ऐसी हैं जिनका भविष्य की राजनीति पर गहरा और दूरगामी असर पड़ना तय है। आम आदमी पार्टी की हार तब से इंगित होने लग पड़ी थी जब दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार का शक्तियों को लेकर टकराव सर्वाेच्च न्यायालय में जा पहुंचा था। इस टकराव का चरम तब आ गया था जब केन्द्र सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय के फैसलों को पलटने के लिये अध्यादेश लाने का रास्ता चुना था। तब यह स्पष्ट हो गया था कि केन्द्र दिल्ली में किसी भी सरकार को स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने देगा। फिर चुनावों की घोषणा के बाद आठवें वित्त आयोग का गठन और उसकी सिफारिशों के संकेत बाहर आना तथा केन्द्रीय बजट में बारह लाख की आयकर राहत मिलना तात्कालिक प्रभावी कारण रहे हैं। इन्हीं कारणों के बीच आप और कांग्रेस में चुनावी समझौता न हो पाने ने आप की हार को और सुनिश्चित कर दिया था।
लेकिन क्या बीजेपी का एजेण्डा दिल्ली की इस जीत से पूरा हो जाता है? यह सवाल इसलिये प्रसांगिक हो जाता है कि दिल्ली प्रशासन ने चुनाव परिणामों के बीच ही जब भाजपा की जीत सुनिश्चित हो गई थी तब दिल्ली सरकार के सचिवालय को सील कर दिया था। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र की कार्य योजना इस जीत से आगे की भी है। इस समय दिल्ली से लेकर उत्तराखण्ड तक पंजाब में आप और हिमाचल में कांग्रेस की सरकारे हैं। उत्तराखंड में सम्मान नागरिक संहिता कानून लागू हो चुका है। इस कानून को पूरे उत्तरी क्षेत्र में लागू करने के लिये यही दो विपक्ष की सरकारी हैं। यूनिफाइड सिविल कोड हिन्दू एजेण्डे का एक प्रमुख सूत्र है। भाजपा का आधार ही हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना है। इसी सूत्र के आधार पर तो भाजपा केन्द्र की सत्ता तक पहुंची है। राम मन्दिर आन्दोलन और बाबरी मस्जिद गिराया जाना आरक्षण विरोध आन्दोलन में आत्मदाह जैसे पड़ाव भाजपा ने देखे हैं। यदि आरक्षण विरोध का आन्दोलन मण्डल बनाम कमण्डल न हो जाता तो शायद हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का एजेण्डा कब का पूरा हो चुका होता। यह मण्डल आन्दोलन का परिणाम था कि बड़े राज्यों में सत्ता ओबीसी के हाथों में आ गयी। भाजपा को अपने एजेण्डे तक पहुंचाने के लिए राज्यों के क्षत्रपों और कांग्रेस के साथ एक ही वक्त में एक साथ भिड़ना पड़ा। घोषित हिन्दू एजेण्डे को राजनीतिक तौर पर नेपथ्य में रखते हुये भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाकर लोकपाल की मांग का बड़ा आन्दोलन छेड़ना पड़ा। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे लोग सामने लाकर आन्दोलन छेड़ना पड़ा। भ्रष्टाचार और काले धन के बड़े-बड़े आंकड़े जनता में उछालने पड़े। कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय करार देकर कांग्रेस में तोड़फोड़ के लिये जमीन तैयार करनी पड़ी। राहुल गांधी को पप्पू करार देने का एजेण्डा चला। 2014 और 2019 के चुनाव में अलग-अलग वायदे परोस कर संविधान में बदलाव का आधार तैयार किया गया। राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा से अब की बार चार सौ पार के नारे का आधार तैयार किया गया।
लेकिन भाजपा के इन आधारों को राहुल गांधी की पद यात्राओं और उन में संविधान की पुस्तिका हाथ में लेकर राहुल यह संदेश देने में सफल हो गये कि यदि चार सौ पार का नारा सफल हो जाता है तो फिर संविधान को बदलकर ही हिन्दू राष्ट्र का उद्देश्य पूरा कर लिया जायेगा। परन्तु ऐसा हो नहीं सका और भाजपा 240 पर आकर ही रुक गयी। इसलिए अब यू.सी.सी. का रूट लेकर हिन्दू राष्ट्र तक पहुंचना होगा। इसके लिये भाजपा शासित राज्यों में इसे लागू करने के रोड मैप पर चलना होगा। दिल्ली की जीत के बाद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो पहले ही भाजपा की सरकार हैं। ऐसे में यदि पंजाब और हिमाचल में भी कोई खेल करके यह उद्देश्य पूरा हो जाये तो महाराष्ट्र और गुजरात तक कोई रोक नहीं रह जाती है। हिमाचल में खेल करने की जमीन तैयार है। जब तक कांग्रेस हाईकमान इस पर सोचने लगेगी तब तक हिमाचल में यह घट चुका होगा ऐसा माना जा रहा है। पंजाब को लेकर तो चर्चाएं तेज हो ही चुकी है।