शिमला के कोटखाई में 2017 में घटे गुड़िया कांड में पूरी पुलिस जांच टीम को अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि किसी अपराध की जांच के लिये गठित की गई पूरी जांच टीम को ही अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई हो। पुलिस जांच टीम का नेतृत्व एक आई.जी. स्तर के अधिकारी कर रहे थे और टीम में आठ लोग शामिल थे। टीम में आई.जी. से लेकर डी.एस.पी. और सिपाही तक पुलिस कर्मी शामिल थे। पुलिस की कस्टडी में एक व्यक्ति की हत्या हो जाने का आरोप था। इस पूरी टीम को उम्र कैद की सजा होने से पूरे प्रशासनिक तंत्र पर जो सवाल उठ रहे हैं और जो संदेश आम आदमी तक गया है वह अपने में बहुत गंभीर है। क्योंकि इससे आदमी के विश्वास को धक्का लगा है उसे बहाल होने में बहुत वक्त लग जायेगा। क्योंकि यह विश्वास किसी के ब्यानों से नहीं बल्कि तंत्र में बैठे हर व्यक्ति के आचरण से होगा। क्योंकि इस समय जिस तरह के सवाल तंत्र के शीर्ष पर बैठे लोगों से लेकर नीचे तक के लोगों पर लग रहे हैं वह महत्वपूर्ण है। यह सही है कि इस सजा के बाद अपील के दरवाजे शीर्ष अदालत तक खुले हैं। लेकिन वहां तक पहुंचने में कितना वक्त लगेगा और कितने लोग दोष मुक्त हो पाते हैं यह इन्तजार करना भी अपने में एक त्रासदी होगी। इस गुड़िया प्रकरण को लेकर जिस तरह का जनाक्रोष 2017 में उभरा था और उसी के कारण इस मामले की जांच प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश की एस.आई.टी. से लेकर सीबीआई को सौंप दी थी।
स्मरणीय है कि 4 जुलाई 2017 को गुड़िया स्कूल से गायब हो गई और 6 जुलाई को उसका शव जंगल में बरामद हुआ। 7 जुलाई को पोस्टमार्टम हुआ 10 जुलाई को सरकार ने आई.जी. जैदी के नेतृत्व में एस.आई.टी. गठित कर दी। 13 जुलाई को एस.आई.टी. ने पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया और 18 जुलाई को पुलिस की हिरासत में सूरज की कोटखाई पुलिस स्टेशन में मौत हो गई। 19 जुलाई को प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह पूरा प्रकरण सी.बी.आई. को ट्रांसफर कर दिया और 29 अगस्त को सीबीआई ने जैदी समेत 8 पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया। 11 अप्रैल 2021 को सी.बी.आई. कोर्ट ने लकड़ी चिरानी नीलू को गुड़िया की हत्या और रेप के लिये आजीवन कारावास की सजा सुना दी। अब 18 जनवरी 2025 को सी.बी.आई. अदालत ने जैदी और सात अन्य पुलिस कर्मियों को दोषी करार दे दिया। इससे केवल डी.डब्लयू. नेगी ही बरी हुये। 27 जनवरी को सभी दोषियों को उम्र कैद की सजा सुना दी गई। इस मामले में जैदी ने किस तरह एस सौम्य को अपना ब्यान बदलने का दबाव डाला यह सौम्य द्वारा अदालत में दी गई शिकायत से सामने आ चुका है। पूरे प्रकरण में एक भी पुलिसकर्मी का यह चरित्र सामने नहीं आया है कि उसने निष्पक्षता से कुछ कहने का प्रयास किया हो। जबकि पुलिस हिरासत में ही उसकी मौत हुई थी और इसके लिये इन पुलिस कर्मियों के अतिरिक्त और कोई जिम्मेदार हो नहीं सकता था।
ऐसे में जब पुलिस कर्मियों का सामूहिक चरित्र इस तरह का सामने आयेगा तो निश्चित रूप से पुलिस पर से आम आदमी का विश्वास उठता चला जायेगा। यह अक्सर देखा गया है कि पुलिस गैर संज्ञेय मामलों को संज्ञेय बनाने के लिये ऐसी धाराएं जोड़ देती है जिसका कोई जमीनी आधार ही होता है। ऐसा या तो बड़े अधिकारियों या फिर राजनीतिक दबाव में किया जाता है। गुड़िया प्रकरण में जनाक्रोस बड़ा तो यह दबाव आया कि अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ा जाये। तब पुलिस सूरज आदि कुछ लोगों को पकड़ चुकी थी और उन्हीं को अपराधी प्रमाणित करने की कवायत कर रही थी। इसी कवायत में जैदी ने पत्रकार सम्मेलन में यह दावा कर दिया कि वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर गिरफ्तारियां की गयी हैं। लेकिन सी.बी.आई. अदालत में इन वैज्ञानिक साक्ष्यों का कोई जिक्र तक नहीं आया है। इससे यह सामने आता है कि पुलिस निष्पक्षता से अपना काम नहीं कर रही थी। या तो वह राजनीतिक नेतृत्व के सामने यह प्रदर्शित करना चाह रही थी कि उसने मामले के असली गुनहगारों को पकड़ लिया है या किसी को बचाने के लिये वह सूरज आदि पर भी दोष सिद्ध करने की कवायत में लग गयी थी। इस समय पूरे तंत्र की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। जिस तरह से रेरा द्वारा लाखों के सब खरीद कर उपहार स्वरूप बांटे गये हैं वह सरकारी धन के दुरुपयोग और अपनी शक्तियों से बाहर जाने का पुख्ता मामला बनता है। यह मामला और इसके तथ्य सार्वजनिक रूप से सामने आ चुके हैं। इस पर सोर्स रिपोर्ट बनाकर विजिलैन्स स्वयं भी मामला दर्ज कर सकती है। या सरकार भी इस पर तुरन्त कारवाई के निर्देश दे सकती है। अब यही मामला प्रमाणित कर देगा की तंत्र अपना विश्वास जनता में बनाये रखने के लिये क्या चयन करता है।