राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा पर क्यों उठी यह प्रतीक्रियाएं

Created on Sunday, 22 September 2024 18:52
Written by Shail Samachar

संसद में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की सामने आयी हैं उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा नेतृत्व गांधी को अपने लिये चुनौती मान रहा है। क्योंकि यह प्रतिक्रियाएं भाजपा के केंद्रीय मंत्री सांसद और विधायक स्तर के लोगों से आयी हैं। इन हिंसात्मक प्रतिक्रियाओं का कड़ा संज्ञान लेने के लिये जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी चिन्ता जताई तो उसके जवाब में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने खड़गे को एक तीन पृष्ठों का पत्र भेज दिया। नड्डा ने अपने पत्र में कांग्रेस को उन सारे ब्यानों और प्रतिक्रियाओं का स्मरण करवा दिया जो अब तक कांग्रेस के शीर्ष नेता से लेकर कार्यकर्ताओं तक के ब्यान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर रहे हैं। नड्डा ने अपने तीन पृष्ठों के जवाब में जो भी रिकॉर्ड पर सामने रखा है उसमें ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जो सीधे हिंसा को आमंत्रित करता हो। बल्कि नड्डा के इस जवाब के बाद भाजपा के लोगों ने छत्तीसगढ़ में राहुल के खिलाफ मामला दर्ज करने की तीन शिकायतें भेजी है। शिमला में भी इस आश्य की एक शिकायत आयी है। कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक में भाजपा के केंद्रीय मंत्री के खिलाफ एक मामला दर्ज हुआ है। शिमला में मुख्यमंत्री ने इस प्रकरण पर एक सामान्य प्रतिक्रिया जारी की है। शिमला से ही विधायक और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता कुलदीप राठौर ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए गांधी परिवार के लिये एस.पी.जी. सुरक्षा उपलब्ध करवाने की मांग की है।
राहुल गांधी के अमेरिका में जिस वक्तव्य पर भाजपा में इतनी तीव्र प्रतिक्रियाएं उभरी है उस ब्यान को और स्पष्ट करते हुये राहुल ने हर व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की बात की है। हर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता हासिल होनी चाहिये चाहे वह कोई भी हो। सिद्धांत रूप से इस पर कोई दो राय नहीं हो सकती। धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करना कोई अपराध नहीं है। इन प्रतिक्रियाओं का प्रतिफल क्या होगा? यह प्रतिक्रियाएं इस भाषा में क्यों आयी हैं? केवल राजनीतिक लोगों ने ही ऐसी प्रतिक्रियाएं क्यों दी हैं यह समझना आवश्यक है। ऐसी प्रतिक्रियाएं राजनीतिक वातावरण का ही प्रतिफल होती हैं यह एक स्थापित सच है। इस समय केंद्र में मोदी की सरकार उसके सहयोगियों पर ही निर्भर है। मोदी इस निर्भरता से बाहर निकलना चाहते हैं। इसके लिये अपने दम अकेले भाजपा का बहुमत बनाने के लिये या दूसरे दलों को तोड़कर उनका विलय अपने में किया जाये या फिर किसी कारण से देश में नये चुनावों की परिस्थितियों पैदा की जायें। इस समय राष्ट्रीय दलों के नाम पर कांग्रेस-भाजपा के अतिरिक्त कोई तीसरा नहीं है। शायद लोकसभा चुनावों में यह उम्मीद ही नहीं थी कि कांग्रेस अपने दम पर नेता प्रतिपक्ष तक पहुंच जाएगी।
मोदी सरकार के पिछले दोनों कार्यकालों में चिन्तन और चिन्ता का सबसे बड़ा मुद्दा सरकारी उपक्रमों को योजनाबद्ध तरीके से निजी क्षेत्र के हवाले करने का रहा है। राहुल गांधी और पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर मुखर था। रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कम होता गया है। आज विदेशी कर्ज 205 लाख करोड़ हो गया है। आईएमएफ ने स्पष्ट कहा है कि यदि इसी रफ्तार से विदेशी कर्ज बढ़ता रहा तो यह शीघ्र ही जी.डी.पी. का सौ प्रतिशत हो जायेगा और यह कर्ज चुका पाना कठिन हो जायेगा। इस मुद्दे पर उठे सवालों का ही परिणाम है कि केंद्र में भाजपा को अपने दम पर बहुमत नहीं मिल पाया। आज भी स्थितियां सुधरी नहीं है। इन स्थितियों पर कोई बड़ा सार्वजनिक संवाद न खड़ा हो जाये और भाजपा को अपने दम पर बहुमत भी हासिल हो जाये यह इस समय की आवश्यकता है। यह संवाद छेड़ने की क्षमता इस समय राहुल गांधी के अतिरिक्त किसी दूसरे नेता में शायद नहीं है। नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक वातावरण तैयार करने के लिए विदेश यात्राओं का ही सहारा लिया था और आज राहुल भी इस लाइन पर चल रहे हैं। इसलिये राहुल गांधी को विवादित बनाना मोदी सरकार की शायद आवश्यकता है। इसी के साथ हिन्दू कार्ड को उभारने के लिये वक्फ संशोधन विधेयक के नाम पर एक मुद्दा खड़ा कर दिया गया जो पूरे देश में फैलता जा रहा है। हिमाचल जैसे राज्य में भी सरकार के कमजोर आकलन के कारण पूरे प्रदेश में यह मुद्दा खड़ा हो गया है। सरकार के मंत्री न चाहते हुये भी इसमें पार्टी बन गये हैं।
इसी समय एक देश एक चुनाव को लेकर गठित कमेटी की रिपोर्ट जारी कर दी गयी है। इस रिपोर्ट की चर्चाओं में यह उभारने का प्रयास किया जा रहा है कि यह तुरन्त प्रभाव से लागू कर दिया जाना चाहिये। केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है। इसके लिये जो आवश्यक संविधान संशोधन चाहिये वह संसद के अगले सत्र में किये जा सकते हैं। इस तरह प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक और एक देश एक चुनाव ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आम राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं उनकी परफॉरमैन्स से आम आदमी खुश नहीं है। ऐसे राजनीतिक वातावरण में यदि मोदी भाजपा चुनावों का फैसला ले लेते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। बल्कि कांग्रेस की राज्य सरकारों की परफॉरमैन्स से इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस में बड़े स्तर पर तोड़फोड़ के हालात बन जायें। इस परिदृश्य में यह लगता है कि राहुल की अमेरिका यात्रा पर उठी प्रतिक्रियाओं का एक बड़ा राजनीतिक मकसद है।