इस बार संसद में एक सशक्त विपक्ष देखने को मिलेगा यह स्पष्ट हो गया है। विपक्ष की संख्या देखकर यह भी लगने लगा है कि आने वाले दिनों में यदि सरकार सही से अपने कार्यों का निष्पादन नहीं कर पायी तो उसे हराया भी जा सकता है। स्थिर सरकार और सशक्त विपक्ष दोनों एक साथ होना लोकतंत्र की पहली और बड़ी आवश्यकता है। इस बार विपक्ष को इस संख्या बल तक पहुंचने का सबसे बड़ा श्रेय कांग्रेस नेता राहुल गांधी को जाता है। यह उनकी दोनों यात्राओं का प्रतिफल है कि एक लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस आधिकारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष के पद की पात्र हो गयी है। कांग्रेस ने राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष के पद के लिये नामजद करके एक सही फैसला लिया है। नेता प्रतिपक्ष के नाते वह एक तरह से प्रधानमंत्री के समकक्ष हो जाते हैं। क्योंकि अब राहुल गांधी और प्रधानमंत्री के बीच आधिकारिक वार्तालाप होता रहेगा। दोनों नेताओं को एक दूसरे को वैचारिक स्तर पर समझने का मौका मिलेगा। पिछले 10 वर्षों में कोई सशक्त विपक्ष न होने के कारण प्रधानमंत्री और सरकार दोनों एक तरह से निरंकुश हो गये थे। क्योंकि मोदी भाजपा संगठन से ऊपर हो गये थे और इसका प्रमाण तब सामने आया जब चुनावों के दौरान भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने आरएसएस को उसकी सीमाओं का स्मरण कराया। आज राहुल गांधी सार्वजनिक जीवन में एक सार्वजनिक पद पर आसीन हो गये हैं। अब उनकी सोच और कार्यशैली की आधिकारिक समीक्षा होगी और सार्वजनिक रूप से सबके सामने रहेगी।
एक समय देश कोबरा स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से यह देख चुका है कि उनको पप्पू प्रचारित करने के लिए कैसे और किस स्तर तक निवेश किया गया था। पिछले दस वर्षों में विपक्ष और देश ने जो कुछ जिया भोगा है उस सबके गुणात्मक आकलन का अवसर अब आया है। इस दौरान कैसे प्रभावशाली लोगों का लाखों करोड़ का ऋण माफ हो गया? कैसे सार्वजनिक संस्थान एक के बाद एक निजी क्षेत्र के हवाले होते चले गये? दस वर्षों में दो बार नोटबंदी की नौबत क्यों आयी? क्यों सरकार में सरकारी रोजगार के अवसर कम होते चले गये? ईडी के दुरुपयोग को लेकर विपक्ष को क्यों सर्वाेच्च न्यायालय का रुख करना पड़ा? जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय सर्वसुलभ और निःशुल्क होने चाहिये वहीं पर यह आम आदमी की पहुंच से बाहर क्यों होते जा रहे हैं। पेपर लीक हर परीक्षा में हर राज्य में क्यों होने लग गया है? जितने सवाल देश के सामने आज तक उठाये गये हैं अब उनके सही जवाब देश के सामने लाना एक बड़ी जिम्मेदारी और आवश्यकता होगी। पिछली बार किस आंकड़े तक विपक्ष के सांसदों का निलंबन हो गया था यह देश ने देखा है। तीन अपराधिक कानूनों का मानसून सत्र के अंतिम दिन कैसे बिना बहस के पारण हो गया यह देश देख चुका है। अब यह संशोधित कानून पहली जुलाई से लागू होने जा रहे हैं।
अब इन कानूनों पर संसद में खुली बहस किये जाने की मांग टीएमसी नेता ममता बनर्जी की ओर से आ गयी है। यह कानून पूरे देश और उसके भविष्य को प्रभावित करेंगे। देश के सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने महामहिम राष्ट्रपति को खुला पत्र लिखकर इन कानूनों पर अमल रोकने और इन पर संसद में बहस की मांग उठाई है। क्योंकि पिछली बार सौ से अधिक सांसद निलंबित थे। इसलिए इन पर एक विस्तृत बहस देश हित में आवश्यक है। नई संसद के पहले सत्र में ही देश के सामने आ जायेगा कि विपक्ष और सत्ता पक्ष में किस तरह का तालमेल होने जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री किस तरह से इस अहम मुद्दे का हल निकालते हैं। इसी से यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि सरकार और विपक्ष में आने वाले समय में रिश्ते कैसे रहते हैं। राहुल गांधी को यह प्रमाणित करने का अवसर होगा कि वह विकल्प है। इसी तरह प्रधानमंत्री के लिये भी यह सबका विकास और सबका साथ का टेस्ट होगा। गठबंधन के नेता के तौर पर यह मोदी का भी टेस्ट होगा।