अंतिम चरण के मतदान के साथ ही एग्जिट पोल के परिणाम आने शुरू हो गये हैं। इन परिणामों में तीसरी बार मोदी सरकार बनने का दावा किया जा रहा है। लेकिन इसी दावे के साथ इण्डिया गठबंधन में भी अपनी बैठक के बाद गठबंधन को 295 सीटें मिलने का दावा किया है। मोदी ने इस चुनाव के लिए चार सौ पार का लक्ष्य अपने कार्यकर्ताओं के सामने रखा था। एक एग्जिट पोल में मोदी की जीत का आंकड़ा 401 भी दिया गया है। यदि 2014 और 2019 के चुनावी परिदृश्य पर नजर दौड़ायें तो स्पष्ट हो जाता है की तब के चुनाव परिणाम एग्जिट पोल के अनुमानों से मिलते जुलते ही रहे हैं। उसी तर्ज पर इस बार भी एग्जिट पोल सही सिद्ध होते हैं या नहीं इसका पता तो 4 जून को परिणाम आने के बाद ही लगेगा। चुनाव सरकार के कामकाज की समीक्षा होते हैं और यह आकलन हर व्यक्ति का अलग-अलग होता है। पिछले दोनों चुनाव के बाद ईवीएम पर सवाल उठे हैं। ईवीएम पर सबसे पहले एक समय भाजपा ने ही सवाल उठाए हैं। इस बार भी ईवीएम का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था जिस पर इन चुनावों के दौरान फैसला आया है। अभी भी चुनाव आयोग की कार्यशैली को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। ऐसे में ईवीएम का मुद्दा इस बार के परिणामों के बाद भी उठता है या नहीं यह देखना रोचक होगा।
मोदी पिछले दस वर्षों से केंद्र की सत्ता पर काबिज है। इसलिये इन दस वर्षों में जो भी महत्वपूर्ण घटा है और उससे आम आदमी कितना प्रभावित हुआ है उसका प्रभाव निश्चित रूप से इन चुनावों पर पड़ा है। महत्वपूर्ण घटनाओं में नोटबंदी, कृषि कानून और उनसे उपजा किसान आंदोलन तथा फिर करोना काल का लॉकडाउन ऐसी घटनाएं हैं जिन्होंने हर आदमी को प्रभावित किया है। इसी परिदृश्य में काले धन की वापसी से हर आदमी के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख आने का दावा भी आकलन का एक मुद्दा रहा है। हर चुनाव में किये गये वायदे कितने पूरे हुये हैं यह भी सरकार की समीक्षा का मुख्य आधार रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में इस चुनाव में हर चरण के बाद मोदी ने मुद्दे बदले हैं। कांग्रेस पर वह आरोप लगाये हैं जो उसके घोषणा पत्र में कहीं दर्ज ही नहीं थे। बल्कि मोदी के आरोपों के कारण करोड़ों लोगों ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को डाउनलोड करके पड़ा है। राम मंदिर को इन चुनावों में केंद्रीय मुद्दा नहीं बनाया जा सका। इसी तरह इस चुनाव में आरएसएस और भाजपा में बढ़ता आंतरिक रोष जिस ढंग से भाजपा अध्यक्ष नड्डा के साक्षात्कार के माध्यम से सामने आया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस बार भाजपा का आंकड़ा पहले से निश्चित रूप से कम होगा। क्योंकि जिन राज्यों में पिछली बार पूरी पूरी सीटें भाजपा को मिली है वहां अब कम होंगी और उसकी भरपाई अन्य राज्यों से हो नहीं पायेगी।
इसी तर्ज पर इंडिया गठबंधन पर यदि नजर डाली जाये तो इस गठबंधन में कांग्रेस ही सबसे बड़ा दल है। तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार हैं। लेकिन इन राज्यों में भी कांग्रेस सारी सारी सीटें जीतने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि इन सरकारों की परफॉर्मेंस अपने-अपने राज्यों में ही संतोषजनक नहीं रही है। फिर चुनाव के दौरान कांग्रेस के घोषित प्रत्याशियों का चुनाव लड़ने से इन्कार और भाजपा में शामिल हो जाना ऐसे बिन्दु हैं जिसके कारण कांग्रेस अपने को मोदी भाजपा का विकल्प स्थापित नहीं कर पायी है। इसलिए इण्डिया गठबंधन के सरकार बनाने के दावों पर विश्वास नहीं बन पा रहा है। जो स्थितियां उभरती नजर आ रही है उससे लगता है कि विपक्ष पहले से ज्यादा मजबूत और प्रभावी भूमिका में रहेगा।