इस लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह की ब्यानबाजी की है उससे स्वतः ही कुछ ऐसे सवाल उभर कर सामने आ गये हैं जिनका इन चुनावों के परिणाम और भविष्य की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। पिछले 10 वर्षों से नरेंद्र मोदी सत्ता पर काबिज हैं। इस कालखण्ड में देश को विश्व गुरु बनाने और अर्थव्यवस्था को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने के संकल्प प्रधानमंत्री ने भारत की जनता को परोसे हैं। इन्हीं संकल्पों के सहारे इस बार चुनावों में जीत का आंकड़ा 400 पार का लक्ष्य रखा गया था। देश में ‘एक चुनाव एक राष्ट्र का नारा’ दिया गया था। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये ही दूसरे दलों से एक लाख लोगों को भाजपा में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया था। इस लक्ष्य के तहत 80 हजार लोगों के शामिल होने का दावा भी किया गया है। यह सारे लक्ष्य और दावे इस बात का प्रमाण बन जाते हैं कि देश में भाजपा और प्रधानमंत्री की स्वीकारोक्ति किस स्तर तक पहुंच चुकी है और अब कोई राजनीतिक चुनौती शेष नहीं बची है।
लेकिन जैसे-जैसे चुनाव प्रचार और मतदान चरण दर चरण आगे बढ़ता गया तो उसी के साथ प्रधानमंत्री का तथ्य और कथ्य भी बदलता गया। कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र पर जिस तरह की आक्रामकता प्रधानमंत्री ने अपनायी और उन मुद्दों पर कांग्रेस को घरने का प्रयास किया जो उसके घोषणा पत्र में थे ही नहीं। प्रधानमंत्री की आक्रामकता का चरण तब सामने आ गया जब उन्होंने देश की जनता से कहा कि यदि कांग्रेस सत्ता में आयी तो राम मन्दिर पर बुलडोजर चलवा देगी। जब प्रधानमंत्री जैसा नेता इस तरह का तथ्य जनता के सामने रखेगा तो उसका क्या अर्थ लगाया जायेगा। यह अपने में ही एक बड़ा सवाल बन जाता है। क्योंकि राम मन्दिर पर बुलडोजर चलाने की कल्पना देश में किसी भी राजनीतिक दल से नहीं की जा सकती चाहे सत्ता पर कोई भी काबिज क्यों न हो। यह एक सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी जानता है। परन्तु फिर भी प्रधानमंत्री ने जब ऐसा आरोप देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल पर लगाया है तो उसके निहितार्थ बदल जाते हैं। मोदी के नेतृत्व में ही कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगा था। भले ही आज भाजपा स्वयं कांग्रेस युक्त हो चुकी है दूसरे दलों से आये नेता जो वहां पर भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे थे भाजपा में आकर आरोप मुक्त हो गये हैं।
बल्कि इन्हीं लोगों के सहारे आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष यह कह पाने का साहस कर पाये हैं कि आज भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहयोग समर्थन और सलाह की आवश्यकता नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का यह विचार उनका अपना नहीं वरन् प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का संघ को सन्देश माना जा रहा है। संघ भाजपा में यह संभावित टकराव क्या परिणाम लायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के इस वक्तव्य के परिणाम दूरगामी होंगे। संघ भाजपा में यह स्थिति एकदम पैदा नहीं हुई है। जब इन चुनावों में संघ का वह वीडियो वायरल हुआ था जिसमें भाजपा को समर्थन न देने का आहवान किया गया था तभी यह आशंका सामने आ गई थी कि इस बार देश के राजनीतिक पटल पर कुछ बड़ा घटना वाला है। इस वस्तुस्थिति में भी प्रधानमंत्री द्वारा 400 पार के दावे को पूरे विश्वास के साथ दोहराना स्वतः ही ईवीएम मशीनों की ओर भी गंभीर संकेत करता है।