प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर नीचे तक भाजपा का हर बड़ा छोटा नेता कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र को लेकर आक्रामक हो उठा है। कुछ लोगों ने तो इसे मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र करार दे दिया है। आरोप लग रहा है कि कांग्रेस सत्ता में आयी तो वह आपकी संपत्ति छीन कर मुस्लिमों में बांट देगी। इस आरोप को सैम पित्रोदा के एक टीवी चैनल में आये एक वक्तव्य के साथ जोड़कर उठाया जा रहा है। सैम पित्रोदा कांग्रेस के विदेश विभाग के अध्यक्ष हैं। वह टी.वी. चैनल की बहस में विदेशों में संपत्ति कर के बारे में जिक्र कर रहे थे और इसमें यह कह गये कि भारत में ऐसा कर नहीं है। उन्होंने अपने वक्तव्य में यह नहीं कहा है कि भारत में भी ऐसा कर होना चाहिये। सम पित्रोदा के वक्तव्य पर जब देश के प्रधानमंत्री आक्रामक हो जाये तो इस आरोप का समझना और कांग्रेस के घोषणा पत्र को पड़ना पत्रकारिता का धर्म तथा कर्म दोनों हो जाता है। फिर जब कांग्रेस के नेता इस आरोप पर चुप्पी साध ले तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। इस समय चुनाव चल रहे हैं और इसके परिणाम देश के भविष्य पर दूरगामी प्रभाव डालेंगे क्योंकि बहुत सारे नेता प्रधानमंत्री को ईश्वरीय अवतार की संज्ञा देने लग पड़े हैं। यह स्वभाविक है कि जब एक व्यक्ति को इस तरह के संबोधनों से संबोधित किया जाने लग पड़ता है तो वहां पर तर्क शून्य होकर रह जाता है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में जातिगत और आर्थिक सर्वेक्षण करवाने की बात कही गयी है। जातिगत जनगणना बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने करवाई थी और इस जनगणना को सर्वाेच्च न्यायालय की भी हरी झण्डी हासिल है। इस जनगणना के जब आंकड़े सार्वजनिक हुये तब यह सामने आया कि 80 प्रतिशत गरीब दलित, पिछड़े वर्ग और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग में से आते हैं। बिहार के इन आंकड़ों पर भाजपा ने एतराज उठाया था और राज्य में नीतीश भाजपा की सरकार टूटने में यह एक बड़ा कारण बना था। परन्तु आज फिर भाजपा और नीतीश चुनाव में इकटठे हैं। बिहार के आंकड़ों के बाद देश के कई भागों से जातिगत जनगणना की मांग उठी है। शायद इन्हीं आंकड़ों के कारण आर्थिक सर्वेक्षण की आवश्यकता समझी गयी है। क्योंकि पिछले दिनों में एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में यह सामने आया है कि भारत की कुल संपत्ति के चालीस प्रतिशत पर केवल एक प्रतिशत का कब्जा है। इस अध्ययन में स्पष्ट चेतावनी दी गयी है कि आने वाले समय में भारत में आर्थिक असमानता एक बहुत बड़ा मुद्दा बन जायेगा। भारत में 1953 में विरासत कर लगाया गया था। जिसे 1985 में स्व.राजीव गांधी के कार्यकाल में वापस लिया गया था। उसके बाद गिफ्ट टैक्स 1998 में और 2015 में वैल्थ टैक्स वापस लिया गया था। लेकिन इसी दौरान वियना स्थित ग्लोबल पॉलिसी सेंटर के निदेशक जैफरी आन्ज का सुझाव आया था कि भारत को विरासत कर फिर से लगाना चाहिए। इस सुझाव पर 2019 में यह टैक्स फिर से लगाने की संभावना बन गयी थी। मोदी सरकार के दस वर्ष के कार्यकाल में जिस तरह सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य संसाधनों को निजी क्षेत्र के हवाले किया गया है और बड़े घरानों की ऋण माफी हुई है। उसके चलते आर्थिक सर्वेक्षण शायद अब समय की मांग बन जायेगी। ऐसे में आर्थिक सर्वेक्षण के सुझाव को संपत्ति छीनने का प्रयास करार देना सामान्य समझ से बाहिर की बात है और इसे हताशा की संज्ञा दी जाने लगी है।