विनाश में भविष्य का फैसला वर्तमान की परीक्षा होगी

Created on Monday, 28 August 2023 04:21
Written by Shail Samachar

प्रदेश भर में इस मानसून सत्र से जो तबाही हुई है उससे कुछ बुनियादी सवाल भी उठ खड़े हुये हैं। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि इस विनाश के लिये क्या प्रकृति ही जिम्मेदार है या सरकार की नीतियों और हमारा लालच भी बराबर का जिम्मेदार रहा है। मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है की सरकार की नीतियां लालच से ज्यादा जिम्मेदार रही है। क्योंकि जब नीतियों में ढील दी जाती है तो उससे लालच बढ़ता जाता है। हिमाचल में गैर कृषक गैर हिमाचली को जमीन खरीदने पर मूलतः प्रबंध रहा है। इस प्रतिबंध में ढील देने के लिये भू राजस्व अधिनियम की धारा 118 में सरकारी अनुमति का प्रभावधान करके इस खरीद का मार्ग प्रशस्त किया गया। इस प्रावधान का इतना दुरूपयोग हुआ है की सरकारों पर हिमाचल को बेचने के आरोप लगे। बेनामी खरीदो पर चार बार जांच आयोग बैठाये गये। हर जांच रिपोर्ट में सैकड़ो मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन किसी भी रिपोर्ट पर कोई अंतिम कारवाई नहीं हो पायी है। इसी का परिणाम है कि हर एक पर्यटक स्थल पर गैर हिमाचली गैर कृषक व्यवसायिक परिसर बनाकर बैठे हुये है। प्रदेश में कार्यरत गैर हिमाचली गैर कृषक अधिकारियों ने भी जब यहां जमीन खरीदनी शुरू की तब यह भी प्रावधान नहीं किया गया की एक व्यक्ति को धारा 118 के तहत कितनी बार जमीन खरीद की अनुमति मिल सकती है।

जमीन खरीद पर प्रतिबंध के साथ ही लैंड सीलिंग एक्ट के तहत अधिकतम भूमि सीमा का भी प्रतिबंध है । इस प्रतिबंध के तहत 161 बीघा या 300 कनाल से अधिक जमीन नहीं खरीदी जा सकती। लेकिन जल विद्युत परियोजनाओं और सीमेंट उद्योगों के लिए यह सीमा में छूट दे दी गयी। यही नहीं राधा स्वामी सत्संग व्यास के लिये भी इसमें छूट दे दी गयी और इस संस्था को कृषक का दर्जा भी अदालत के माध्यम से दिला दिया गया और इस फैसले की कोई अपील तक नहीं की गयी। इसी का परिणाम है की राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पास आज हजारों बिघा जमीन है। अब तो 1974 में पारित लैंड सीलिंग एक्ट में भी संशोधन करके एक नया आयाम स्थापित कर दिया गया है। इस संशोधन के लाभार्थी कौन होंगे यह नई चर्चा का विषय बन जायेगा। रियल स्टेट प्रदेश में एक पूरा उद्योग बन गया जबकि नये स्थापित उद्योगिक क्षेत्रों में लेबर को आवासीय सुविधा उपलब्ध करवाने के लिये ऐसे निर्माणों के अनुमति दी गई थी।

इसी तरह भवन निर्माण के लिए जो स्थाई पॉलिसी 1979 में बनाई जानी थी वह आज 2023 में भी अंतरिम आधार पर ही चल रही है। क्योंकि स्थाई योजना एनजीटी के आदेश के बाद केवल शिमला के लिये ही बन पायी और वह सर्वाेच्च न्यायालय में विचाराधीन चल रही है। भवन निर्माणों में अवैधताओं को कैसे लालच का रूप लेने दिया गया इसका खुलासा अब तक लायी गयी रिटेंशन पॉलिसीयों से हो जाता है। जिस विकास के नाम पर इन अवैधताओं को बढ़ावा दिया जाता रहा है उसे सब का सामूहिक परिणाम है यह विनाश। इस विनाश में जहां प्रभावितों को तुरंत राहत पहुंचना प्राथमिकता है तो उसी के साथ यह पुनर्निर्माण भी आवश्यक है। निर्माण की अनिवार्यता और राहत की तात्कालिक आवश्यकता के साथ ही भविष्य की संभावनाओं को भी ध्यान में रखकर अगले फैसले लेने होंगे। यह निष्पक्षता से विचार करना होगा की क्या शिमला राजधानी के तौर पर भविष्य की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को पूरा कर पायेगा। जो लोग कल तक किन्हीं कारणों से एनजीटी के फैसले का विरोध कर रहे थे उन्हें अपने पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर खुले मन से इस विनाश के परिपेक्ष में फैसला लेना होगा। यह फैसला आज की राजनीतिक और प्रशासनिक पीढ़ियां की परीक्षा भी साबित होगी।