अखिल भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा लगाये गये यौन शोषण के आरोपों का मामला जिस मोड़ पर पहुंच चुका है उस अब उस पर देश की निगाहें लग चुकी है। क्योंकि जब यौन शोषण के ऐसे ही आरोप एक समय पूर्व विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर के खिलाफ लगे थे तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके खिलाफ कारवाई करने में न संकोच किया था और न ही देरी। लेकिन अब देरी और संकोच दोनों बराबर चले हुये हैं। क्योंकि बृजभूषण छः बार के सांसद हैं बल्कि जब एक बार टाडा मामले में तिहाड़ जेल में बन्द थे तब उनकी पत्नी ने उनके स्थान पर चुनाव लड़ा था और जीत गयी थी। आज तो उनका एक बेटा भी विधायक है। लग्जरी गाड़ियों और हेलीकॉप्टर के मालिक इस बाहूबली सांसद का उत्तर प्रदेश के इलाकों में भारी राजनीतिक प्रभाव और दबदबा है जो भाजपा को उनके खिलाफ कारवाई करने से रोक रहा है। लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान में अब इस प्रकरण से राजनीतिक नुकसान होने का भी डर हो गया है। इस डर के परिप्रेक्ष में माना जा रहा है कि जल्द ही प्रधानमंत्री को इस पर अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ेगी।
बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दो वर्ष पहले ही ऐसे आरोपों की एक शिकायत प्रधानमंत्री के पास आ चुकी थी यह स्पष्ट हो चुका है। जब प्रधानमंत्री इन आरोपों पर खामोश रहे तो खेल मंत्री से लेकर अन्य भाजपा नेताओं में यह साहस कैसे हो सकता था कि कोई भी इस पर जुबान खोलता। इन महिला पहलवानों को जन्तर मन्तर के धरना प्रदर्शन से लेकर कैसे सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाकर इस मामले में एफ आई आर दर्ज करवाने तक पहुंचना पड़ा है यह पूरे देश को स्पष्ट हो चुका है। यह एक सामान्य समझ की बात है कि एक महिला को यौन शोषण का आरोप लगाने से पूर्व किस मनोदशा से गुजरना पड़ता है। इन बेटियों को किस मानसिकता के साथ अदालत और धरने प्रदर्शन तक आना पड़ा होगा यह सोचकर ही आम आदमी सिहर उठता है। अब 28 अप्रैल को जो दो एफ.आई.आर. इस प्रकरण में दर्ज हुई है उनका विवरण पढ़कर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद भी जब पूरी भाजपा इस प्रकरण पर खामोश रहे तो समझ आ जाता है कि चुनावी लाभ के लिये यह लोग कुछ भी दाव पर लगा सकते हैं। इस व्यक्ति को अभी तक पार्टी से बाहर न कर पाना शीर्ष से लेकर नीचे तक की बहुत सारी कहानी ब्यान कर देता है।
यह सही है कि अदालत एफ.आई.आर. दर्ज करने के निर्देश दे सकती हैं लेकिन किसी को गिरफ्तार करने के नहीं। परन्तु सरकारें नियमों कानूनों के साथ लोकलाज से भी चलती हैं। आज यदि अन्तर्राष्ट्रीय पदक विजेता महिला पहलवानों को भी न्याय मांगने के लिये इस तरह का संघर्ष करना पड़े तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आज पूरे समाज का दायित्व बन जाता है कि वह इन महिला पहलवानों के साथ खड़ा होकर इनकी लड़ाई लड़े। क्योंकि यह बेटियां पूरे समाज की है। जब यह बेटियां अपने पदक मां गंगा में प्रवाहित करने जा रही थी तब इनकी हताशा और निराशा का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसी के साथ यह सोचने का भी अवसर है कि जो सरकार चुनावी लाभ के लिये ऐसी बेटियों की इज्जत की भी रक्षा करने और उन्हें न्याय दिलाने का साहस न दिखा पाये उसके उन आश्वासनों पर कैसे भरोसा किया जा सकता है कि वह संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करवायेगी।