फरवरी 2019 में घटे पुलवामा प्रकरण पर जो जानकारी तत्कालीन राज्यपाल सत्य पाल मलिक के दी वायर में आये एक साक्षात्कार के माध्यम से सामने आयी है उसने पूरे तन्त्र को सवालों में लाकर खड़ा कर दिया है। पुलवामा में सेना के काफिले में सेन्ध लगाकर घुसी एक गाड़ी में हुए विस्फोट से सी.आर.पी.एफ. के चालीस जवान शहीद हो गये थे। इस दुर्घटना को पाकिस्तान की नापाक हरकत करार दिया गया और इसका बदला बालाकोट में लिया गया। बालाकोट को ‘‘घर में घुसकर मारा’’ से देश का गुस्सा कुछ शान्त हुआ था और इसी से पूरा चुनावी परिदृश्य बदल गया था। लेकिन अब जम्मू-कश्मीर में उस समय राज्यपाल रहे सत्य पाल मलिक के साक्षात्कार से यह सामने आना कि यह सब हमारे तन्त्र की चूक के कारण हुआ है। पूरा परिदृश्य ही बदल गया है। मलिक के मुताबिक सी.आर.पी.एफ. के इस ‘‘कानवाई’’ के लिए पांच हैलीकॉप्टर मांगे थे जो उसे नहीं दिये गये। उस क्षेत्र में यह आरडीएक्स से लदी गाड़ी कई दिनों से घूम रही थी जिस पर किसी ने कोई सन्देह नही किया गया। पुलवामा की मुख्य सड़क से मिलने वाले संपर्क मार्गों की कोई नाकाबन्दी नहीं की गयी थी। मलिक उस समय राज्यपाल थे और उनके पास यह सारी आधिकारिक जानकारी रही होगी। फिर जब पुलवामा घटा था तब भी मीडिया के कुछ हिस्से में यह सवाल उभरा था कि ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में इन जवानों को हैलीकॉप्टर से क्यों नहीं ले जाया गया था।
मलिक ने अपने साक्षात्कार ने यह भी कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस चूक से अवगत करवाया था परन्तु उन्हें प्रधानमंत्री और सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपनी जुबान बन्द रखने के लिये कहा था। अब जब मलिक का यह साक्षात्कार सामने आया है तब इस पर पूर्व सैनिक अधिकारियों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। पूर्व सेना प्रमुख जनरल शंकर राय चौधरी ने इसकी जांच किये जाने की मांग की है। बहुत सारे पूर्व सैनिक अधिकारी इस पर प्रधानमंत्री से सवाल पूछ रहे हैं क्योंकि अपनी ही चूक से अपने ही जवानों की जान चली जाये तो निश्चित रूप से इसका सेना के मनोबल पर असर पड़ेगा। प्रधानमंत्री इस पर चुप हैं। गृहमन्त्री अमित शाह की यह प्रतिक्रिया आयी है की मलिक जब राज्यपाल थे तब क्यों चुप रहे। मलिक का ब्यान कोई राजनीतिक ब्यान नही है वह तब के राज्यपाल हैं। इस पर सीधा जवाब आना चाहिये कि यह सच या झूठ है। यह देश और सेना दोनों की सुरक्षा से जुड़ा मामला है और इस पर प्रधानमंत्री की चुप्पी कई और सवाल खड़े कर देती है।
मलिक के इस साक्षात्कार के बाद जिस तरह से सीबीआई ने एक इन्शयोरैन्स के मामले में उन्हें तलब किया है और उनके यहां एक गैर राजनीतिक आयोजन पर जिस तरह दिल्ली पुलिस ने कारवाई की है उससे न चाहते हुए भी यह सन्देश चला गया है कि सरकार उनसे डर रही है। क्योंकि मलिक किसान आन्दोलन के दौरान कितने मुखर थे यह पूरा देश जानता है। अभी उनके आवास पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की खाप पंचायतों के नेता और दूसरे किसान नेता आये थे उससे उनकी लोकप्रियता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। मलिक के ब्यान का जवाब सीबीआई की सक्रियता नहीं हो सकती न ही इस पर ज्यादा देर तक चुप रहा जा पायेगा।