क्या मोदी राहुल से डर रहे हैं

Created on Monday, 03 April 2023 08:10
Written by Shail Samachar

राहुल गांधी प्रकरण राष्ट्रीय प्रश्न बनता जा रहा है क्योंकि इस मुद्दे पर सारा विपक्ष एकजुट होकर कांग्रेस के साथ खड़ा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने इस एक जूटता पर यहां तक कह दिया कि सारे चोर इक्कठे हो गये हैं। कुछ लोगों ने मेरी छवि बिगाड़ने के लिये सुपारी दे रखी है। प्रधानमंत्री की इन प्रतिक्रियाओं से ही स्पष्ट हो जाता है कि वह इस प्रकरण से पूरी तरह हिल गये हैं अन्यथा प्रधानमंत्री स्तर के व्यक्ति से इस तरह की अपेक्षा नहीं की जा सकती। पूरी केन्द्र सरकार और भाजपा इस मामले को अदालती मामला करार देकर इसका प्रभाव हलका करने का प्रयास कर रही है। यह भी कहा जा रहा है कि इससे पूर्व भी कई सांसदों की सदस्यता अदालती फैसलों के कारण जा चुकी है तब तो इतना हंगामा खड़ा नहीं हुआ था फिर अब क्यों। इस तर्क का जवाब देने के लिये यह समझना आवश्यक है कि जिन अन्य सांसदों की सदस्यता गयी है उनके खिलाफ मानहानि के नहीं बल्कि आपराधिक मामले थे। राहुल के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं था। फिर जिस अधिनियम के तहत राहुल की संसद सदस्यता रद्द की गयी है उसमें यह नहीं कहा गया है कि फैसला आने के बाद स्वतः ही सदस्यता चली जायेगी। फैसले से व्यक्ति अयोग्य हो जायेगा लेकिन उसके निष्कासन के लिये आदेश राष्ट्रपति से चाहिये और राष्ट्रपति ऐसा आदेश चुनाव आयोग की राय से पारित करेगा। लेकिन राहुल के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोकसभा सचिवालय में अपने ही स्तर पर यह सब कुछ कर दिया। इसी में राजनीतिक दबाव की गंध आती है। क्योंकि अगली कड़ी में आवास खाली करने का फरमान भी जारी हो गया।
राहुल के जिस ब्यान से मोदी समाज का अपमान हुआ है उससे ज्यादा अपमानजनक टिप्पणी राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य और भाजपा नेत्री खुशबू सुन्दर की 2018 में रही है। तब मोदी समाज का अपमान नहीं हुआ क्योंकि मोदी किसी समुदाय विशेष का घोतक नहीं है। मोदी उपनाम वाले सारे लोग एक ही समुदाय या जाति के नहीं हैं। हिन्दू, मुस्लिम, पारसी सभी इस उपनाम का उपयोग करते हैं। वैष्णव (बनिया) पोरबन्दर के खारवा (मछुआरे) और लोहाना (व्यवसायी) समुदाय में मोदी उपनाम लगाने वाले लोग हैं। ओ.बी.सी. की सूची में मोदी नाम का कोई समुदाय या जाती नहीं है। बिहार और राजस्थान की केन्द्रीय सूची में भी कोई मोदी नहीं है। गुजरात की केंद्रीय सूची में मोदी घांची है। यहां सब अब सामने आ चुका है। इस गणित में कौन सा मोदी कैसे आहत हुआ यह एक सामान्य समझ का विषय बन जाता है। आगे अदालतों में यह बहस का विषय बनेगा। इस मामले की सुनवाई एक माह में पूरी हो गयी। जबकि शायद फास्ट टै्रक कोर्ट भी इस गति से फैसले नही दे पाये हैं। इस तरह मामले के सारे तथ्यों को यदि एक साथ रखकर देखा जाये तो इसमें निश्चित रूप से राजनीति की गंध आती है। एक राजनीतिक गंध हर रोज स्पष्ट होती जा रही है। इसी से भाजपा लगातार यह सवाल कर रही है कि कांग्रेस ऊपरी अदालत में क्यों नहीं जा रही है। क्योंकि जैसे ही मामला अदालत में जायेगा तो तुरंत प्रभाव से अदालत में विचाराधीन की श्रेणी में आ जायेगा और सार्वजनिक बहस काफी हद तक रुक जायेगी यही भाजपा चाहती है।
इस समय नरेंद्र मोदी से राहुल का राजनीतिक कद बहुत बढ़ गया है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल को जिस तरह से स्थापित कर दिया है उसकी बराबरी कर पाना शायद नरेंद्र मोदी के लिये कठिन हो गया है। क्योंकि इस प्रकरण के बाद वह सब कुछ एकदम फिर से चर्चा में आ गया है जो पिछले आठ वर्षों में देश में घटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश विदेश में दिये सारे ब्यान ताजा हो गये हैं। किस तरह से एक ही झटके में यह कह दिया गया कि 75 वर्षों में देश में हुआ ही कुछ नहीं है। किस तरह से पूर्व प्रधानमंत्रियों को लेकर टिप्पणियां की गयी है वह सब चर्चा में आ गयी है। कैसे नेहरु, गांधी परिवार के खिलाफ एक तरह से जिहाद छेड़े गये। कैसे राहुल को पप्पू प्रचारित करने में अरबों रुपए खर्च किये गये। कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में यह सामने आ चुका है। यह बहस चल पड़ी है कि देश का अपमान नरेन्द्र मोदी ने किया है कि राहुल गांधी ने। क्योंकि सरकार लगातार अपने विरोधियों को येन केन प्रकारेण दबाने में लगी रही और आाम जनता को इसके बदले में जो महंगाई और बेरोजगारी मिली उसमें आज जनता को दोनों में तुलना करने पर खड़ा कर दिया है और उसमें मोदी कमजोर पढ़ते जा रहे हैं। क्योंकि अदानी प्रकरण पर सारी सरकार और भाजपा का अदानी के पक्ष में खड़े हो जाना आम आदमी की नजर में लगातार प्रश्नित होता जा रहा है। जब आज तक हर विवादित मुद्दे पर जे.पी.सी. का गठन होता आया है तो अदानी मामले में क्यों नहीं ? क्यों केंद्रीय कानून मंत्री सर्वोच्च न्यायालय और सेवानिवृत्त जजां के खिलाफ हर कुछ बोलने लग गये हैं। जनता इस सब पर नजर रख रही हैं और यही भाजपा तथा मोदी सरकार का कमजोर पक्ष बनता जा रहा है।