कांग्रेस की सुक्खु सरकार को सत्ता संभाले सौ दिन हो गये हैं। वैसे तो पांच वर्ष के लिये चुनकर आयी सरकार पर सौ दिनों में ही कोई निश्चित राय नही बनाई जा सकती। लेकिन सरकार ने जिस तरह से सौ दिनों के फैसलों, योजनाओं और नीतियों को लेकर एक लम्बा चौड़ा विज्ञापन जारी किया है उसको सामने रखते हुए इन सौ दिनों का आकलन करना आवश्यक हो जाता है। विज्ञापन में जो दावे किये गये हैं उनका पूरा होना बजट की उपल्बधता पर निर्भर करेगा। बजट दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 2023-24 के कुल बजट का आकार पिछले वर्ष से कम है। जबकि सरकार ने तीन हजार करोड़ के कर लगाकर अपनी आय बढ़ाई है। वर्ष के विकासात्मक बजट का आंकड़ा बीते वर्ष जितना ही है। बजट के इन मोटे तथ्यों के परिदृश्य में कैसे यह दावे वायदे पूरे किये जाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि सरकार ने सत्ता संभालते ही पिछली सरकार के खिलाफ वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाना और कर्ज तथा देनदारियों के आंकड़े जारी कर इस आरोप को सही ठहराने का प्रयास शुरू कर दिया है। बजट और वितीय कुप्रबंधन का जिक्र करना इसलिये आवश्यक हो जाता है कि जो सरकार ऐसी वितीय स्थिति के चलते अपने बजट का आकार तक न बढ़ा पाये उसे सबसे पहले अपने अनावश्यक खर्चों पर रोक लगानी पड़ती है। लेकिन इस सरकार ने जिस मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां की है और कैबिनेट दर्जा देते हुए अन्य नियुक्तियां की है वह सरकार की कथनी और करनी के अन्तर को सीधे स्पष्ट कर देता है। बल्कि इसी के कारण सरकार पर यह आरोप लगा है कि यह मित्रों दोस्तों की सरकार है। यह सही है कि कांग्रेस को जनता ने बहुमत दिया है तब उसकी सरकार बनी है। लेकिन इस बहुमत के बदले में यदि जनता को करां का ही बोझ मिलेगा और अपने मित्रों के अलावा अन्य के हितों का ख्याल नहीं रखा जायेगा तो जनता बहुत देर तक उसे सहन नहीं कर पायेगी। पिछली सरकार के अन्तिम छः माह के फैसलों को यह सरकार इसलिये जारी नहीं रख पायी क्योंकि उससे खजाने पर पांच हजार करोड़ का बोझ पड़ रहा था। जब यह स्थिति है तो क्यों सरकार द्वारा की गयी नियुक्तियां अपने में विरोधाभास नहीं पैदा कर देती है। कई लोगों पर गंभीर आरोप लगने शुरू हो गये हैं क्योंकि हर आदमी चीजों पर नजर रख रहा है। फिर यह तो प्रदेश ही छोटा सा है और सरकार का सचिवालय भी छोटा सा है। फिर विपक्ष लगातार सरकार की स्थिरता को लेकर सवाल उठाने लग पड़ा है। क्योंकि अभी तक मंत्रिमण्डल के खाली पदों को भरा नहीं जा सका है। प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा के साथ मंत्रिमण्डल में सन्तुलन नहीं बन पाया है। जातीय सन्तुलन को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये हैं। प्रशासन कितना सुचारू रूप से चल रहा है वह प्रधान निजी सचिव के पत्र से सामने आ चुका है। आज हर सवाल को व्यवस्था परिवर्तन का नाम लेकर टाला जा रहा है। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन से सरकार का अभिप्राय क्या है इसे सरकार का कोई भी आदमी स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। पिछले सौ दिनों में प्रशासन को लेकर सरकार का जो नजरिया सामने आया है उसके परिणाम बहुत दूरगामी होंगे यह तय है। क्योंकि जिस विपक्ष को मुद्दे तलाशने में समय लगता था उसे इस सरकार ने पहले दिन से ही मुद्दों से लैस कर दिया है।