अदानी प्रकरण और मोदी सरकार का वर्ष 2023-2024 के लिए बजट दोनों करीब एक साथ आये हैं। मोदी सरकार का यह बजट उनके इस कार्यकाल का अन्तिम बजट है। 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। इस नाते यह बजट महत्वपूर्ण हो जाता है। आयकर में भी बढ़ाई गयी सीमा अगले वर्ष होने वाले चुनावों के परिदृश्य में ही देखी जा रही है। बजट के सारे परिणामों के पूरा होने के लिये यह कहा गया है कि यह सब कुछ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। इसलिए बजट पर यह सवाल उठाना बेमानी हो जाता है कि धन का प्रावधान कहां से होगा या यह बजट आम आदमी पर करों का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष बोझ बढ़ायेगा और सरकार की कर्ज पर निर्भरता बढ़ जायेगी। क्योंकि यह सामने चुका है कि सरकार ने संसाधन जुटाने के लिये पिछले वर्षों में भी विनिवेश, सार्वजनिक उपक्रमां को निजी क्षेत्र को सौंपने आदि के जो लक्ष्य रखें थे वह पूरे न होने के बाद संपत्तियों के मौद्रिकरण की नीति घोषित की है। संपत्तियों की जानकारी जूटाने के लिये पंचायत स्तर तक पत्र भेज दिया गया है। पहले चरण में मौद्रिकरण के नाम पर अठारह लाख एकड़ सरकारी जमीने बेचने का लक्ष्य तय किया गया है। महंगाई पर कितना नियन्त्रण हो पाया है। यह हर रोज बढ़ता कीमतों से सामने आ जाता है। बेरोजगारी के क्षेत्र में दो करोड नौकरियां देने के वादे से चलकर यह सरकार अब 4 वर्ष के लिये अग्निवीर बनाने तक पहुंची है। सरकार की अब तक की सारी योजनाओं का हासिल यही है कि एक सौ तीस करोड़ की आबादी में आज भी करीब साढ़े सात करोड लोग ही आयकर रिटर्न भरने तक पहुंचे हैं और उनमें भी आयकर देने वाले केवल डेढ़ करोड़ लोग ही है। आज भी सरकार अस्सी करोड लोगों को मुफ्त राशन देने को उपलब्धी करार दे रही है। अन्दाजा लगाया जा सकता है कि जब अस्सी करोड लोग अपने लिये दो वक्त का राशन भी न जूटा पा रहे हो तो सारे घोषित लक्ष्यों और उपलब्धियों को दिन में ही सपने देखने से ज्यादा क्या संज्ञा दी जाये। आज कार्यकाल के अन्तिम बजट पर यह सवाल उठाने इसलिये प्रासांगिक हो जाता है क्योंकि देश का सबसे अमीर और विश्व का तीसरा अमीर व्यक्ति गौतम अदानी एक रिपोर्ट आने के बाद ही पन्द्रहवें पायदान पर पहुंच गया है। सरकार ने अदानी समूह के हवाले कितने सार्वजनिक प्रतिष्ठान कर रखे हैं सारा देश जानता है। सार्वजनिक बैंकों ने इस समूह को कर्ज भी दिये और इसके शेयर भी खरीदे। एल आई सी ने भी इसमें निवेश किया और यह सामने आया है कि इतना निवेश करने के लिये प्रधानमन्त्री या वित्त मन्त्री की पूर्व अनुमति चाहिये। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में यह खुलासा सामने आया कि इस समूह ने अपनी कंपनियों के शेयरों में 85 का उछाल दिखाकर निवेशकों को निवेश के लिये प्रेरित किया। बाद में अधिकांश कंपनियां फर्जी और अदानी परिवार के सदस्य द्वारा ही टैक्स हैवन देशों में संचालित के जाने का खुलासा सामने आया। इसके परिणाम स्वरुप समूह के शेयरों की कीमतों में गिरावट आने लगी। विदेशी निवेशकों ने निवेश बन्द कर दिया और अदानी समूह को अतिरिक्त बीस हजार करोड का निवेश जुटाने के लिये जारी किया एफ.पी.ओ. वापिस लेना पड़ा। यह एफ.पी.ओ. वापिस लेने से हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता बढ़ जाती है। समूह के शेयरों में गिरावट आने से निवेशकों में हड़कंप होना स्वभाविक है कि क्योंकि जिस लाभ की उम्मीद से निवेश किया गया था उसकी जगह मूल निवेश के भी सुरक्षित रह पाने पर प्रश्नचिंह लगता जा रहा है। एल. आई.सी. और सार्वजनिक बैंकों में देश के आम आदमी का पैसा जमा हैं। आज यह स्थिति पैदा हो गयी है कि अदानी समूह के डूबने से पूरे देश की आर्थिकी पर गंभीर संकट आ जायेगा। बजट के सारे लक्ष्य कागजी होकर रह जायेंगे। लेकिन यह सब होने के बावजूद देश की सारी निगरान एजैन्सियों का मौन बैठे रहना और संसद में विपक्ष के प्रश्नों पर सरकार का बहस से बचना देश के लिये एक अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देता है। यह स्थिति सरकार के भविष्य के लिये निश्चित रूप से घातक होने वाली है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को देश पर हमला करार देकर तनाव की स्थिति तो बनाई जा सकती है लेकिन उसे देश की आर्थिकी को नहीं बचाया जा सकता है। इसलिये अब प्रधानमन्त्री देश के सामने सही स्थिति रखने और विपक्ष के प्रश्नों का प्रमाणित जवाब देने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा है।