हिमाचल को पूर्ण राज्य बने 53 वर्ष हो गये हैं । 25 जनवरी 1971 को प्रदेश की आबादी 3460434 थी जो आज आधार कार्ड के अनुसार 7316708 हो गयी है। 53 वर्षों के इस सफर में प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और सड़क जैसे हर क्षेत्र में पर्याप्त तरक्की की है। इसमें सरकार तथा प्राइवेट सैक्टर दोनों ने पूरा योगदान दिया है। हर तरह के उद्योग प्रदेश में स्थापित हुए हैं । इस दौरान रही सारी सरकारों ने प्रदेश के विकास में भरपूर योगदान दिया है। किसी को भी कम करके आंकना सही नहीं होगा । लेकिन आज 53 वर्ष के बाद जो सरकार आयी है उसने यह घोषित किया है की व्यवस्था बदलने आयी है राज करने नहीं । सुक्खू सरकार और उनकी कांग्रेस पार्टी को यह लगा है कि अब व्यवस्था बदलने की आवश्यकता है। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार का नीति सूत्र व्यवस्था बदलना कहा हो। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि प्रदेश की वर्तमान स्थितियों पर एक निष्पक्ष नजर डाल ली जाये। क्योंकि व्यवस्था राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासन दोनों के तालमेल और विजन का प्रतिफल होता है। हर सरकार प्राय अपने दृष्टि पत्र जारी करती रही है । लंबें भविष्य तक के दृष्टि पत्र प्रशासन से तैयार करवा कर जारी हुए हैं। हर सरकार ने उद्योग नीतियां बदली है। लेकिन आज तक ऐसा एक बार भी नहीं हुआ है कि किसी भी सरकार ने अपने कार्यकाल के अंत इस आशय का कोई श्वेत पत्र जारी किया हो।
आज तक जो भी विकास प्रदेश में हुआ है उसके बाद आज प्रदेश 75000 करोड के कर्ज तक पहुंच गया है । कैग के मुताबिक लिये जा रहे कर्ज का 74% कर्ज की वापसी पर खर्च हो रहा है । प्रदेश के हर नागरिक पर करीब 1.25 लाख का कर्ज भार खड़ा है । इतने कर्ज के बाद भी प्रदेश बेरोजगारी में देश के पहले छः राज्यों में शामिल है । 1971 से 1980 तक प्रदेश पर कोई कर्ज नहीं था यह 1998 में धूमल सरकार द्वारा विधानसभा सदन में रखे श्वेत पत्र से सामने आ चुका है। उसके बाद आयी किसी भी सरकार ने ऐसा श्वेत पत्र जारी करके प्रदेश की वास्तविक स्थिति से परिचित नहीं करवाया है । आज सुक्खू सरकार ने भी अपने पहले ही विधानसभा सत्र में वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप पिछली सरकार पर लगाये हैं । पिछली सरकार पर करीब ग्यारह हजार करोड़ की वेतन और पैंशन की देनदारी छोड़ने का आरोप लगाया गया है । लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इस कुप्रबंधन के लिये किसी की भी जिम्मेदारी तय नहीं की गयी है। बल्कि उसी शीर्ष प्रशासन को आगे बढ़ाया गया है जो इस कुव्यवस्था का बड़ा भागीदार रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इसी प्रशासनिक तंत्र के सहारे व्यवस्था कैसे बदली जायेगी।
कांग्रेस ने चुनाव से पहले जनता को दस गारंन्टियां जारी करके यह भरोसा दिलाया था कि वह उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिये यह कदम उठायेगी । इस वायदे के मुताबिक मंत्रिमंडल की पहली बैठक में इस आशय के फैसले भी लिये गये हैं। 73 लाख की आबादी में से कितनों को व्यवहारिक रुप से लाभ पहुंचेगा इसका आंकड़ा तो बाद में आयेगा । लेकिन अभी बजट से पहले ही जो डीजल के दाम और नगर निगम क्षेत्रों में पानी की दरों में जो बढ़ौतरी की गयी है उसका असर तो हर नागरिक पर पड़ेगा । युवाओं को रोजगार कैसे उपलब्ध करवाया जायेगा इसकी रूपरेखा एक मंत्री कमेटी तैयार कर रही है। लेकिन अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड से जो युवा परीक्षाएं पास करके नौकरी पाने के कगार पर पहुंच चुके थे वह अब निराश होकर आंसू बहाने पर पहुंच गये हैं । पूरी जनता ने यह आंसू देखे हैं । निकट भविष्य में इसका कोई समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा है। सरकार के पास दैनिक खर्च चलाने के लिये पैसा नहीं है यह एक वरिष्ठ मंत्री का ब्यान है । इस सरकार को भी कर्ज लेकर खर्च चलाना पड़ रहा है।
सरकार की इस व्यवहारिक स्थिति के परिदृश्य में जब आम आदमी के सामने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां और कुछ दूसरे लोगों को की कैबिनेट रैंक में हो रही ताजपोशीयां आ रही हैं तब उसका विश्वास भ्रमित होना स्वाभाविक हो जाता है। जबकि राजस्व और बिजली में ही कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर काम करने से प्रदेश को कर्ज से भी मुक्ति दिलाई जा सकती है। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय हर व्यक्ति को निशुल्क उपलब्ध होना चाहिये और प्रदेश में यह किया जा सकना बहुत संभव है । इसके लिए सही अध्ययन और राय की आवश्यकता है। इस समय यदि सरकार ने अपने कदम नहीं सुधारें तो आने वाला समय बड़ा कठिन हो जायेगा और व्यवस्था परिवर्तन एक जुमला बनकर रह जायेगा।