आपका मतदान आपकी बड़ी परीक्षा है

Created on Tuesday, 08 November 2022 17:25
Written by Shail Samachar

अब चुनाव प्रचार अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के राष्ट्रीय नेताओं की लम्बी टीमें चुनाव प्रचार में उतर चुकी हैं। भाजपा के पास दूसरे दलों की अपेक्षा संसाधनों की बहुतायत है इसमें कोई दो राय नहीं है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि भाजपा को जितना भरोसा अपने संसाधनों पर है कांग्रेस को उससे ज्यादा भरोसा आम आदमी की उस पीड़ा पर है जो उसने महंगाई और बेरोजगारी के रूप में इस दौर में भोगी है। 2014 में हुये राजनीतिक बदलाव के लिये किस तरह एक आन्दोलन प्रायोजित किया गया था। किस तरह इस आन्दोलन के नायकों का चयन हुआ और किस मोड़ पर यह प्रायोजित आन्दोलन एक बिखराव के साथ बन्द हुआ। यह सब इस देश ने देखा है और आज तक भोगा है। कैसे पांच वर्ष की मांग से शुरू करके उसे अगले पचास वर्ष के लिये बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है यह सब देश देख रहा है। 2014 से आज तक देश में कोई भयंकर सूखा और बाढ़ नहीं आयी है जिसके कारण अन्न का उत्पादन प्रभावित हुआ हो। लेकिन इसके बावजूद आज खाद्य पदार्थों की महंगाई कैसे इतनी बढ़ गयी है यह सवाल हर किसी को लगातार कुरेद रहा है। प्रतिवर्ष दो करोड़ स्थाई नौकरियां देने का वायदा आज सेना में भी चार वर्ष की ही नौकरी देने तक कैसे पहुंच गया यह बेरोजगार युवाओं की समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन इसी देश में सरकारी नीतियों के सहारे आपदा काल में एक व्यक्ति आदाणी कैसे सबसे बड़ा अमीर बन गया इस पर सवाल तो सबके पास है परन्तु जवाब एक ही आदमी के पास है जो अपने मन के अलावा किसी की नहीं सुनता।
2014 के प्रायोजित आन्दोलन से हुये बदलाव के बाद कितने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच पूरी करके उनके मामले अदालतों तक पहुंचाये जा सके हैं तो शायद यह गिनती शुरू करने से पहले ही बन्द हो जायेगी। लेकिन इसके मुकाबले दूसरे दलों के कितने अपराधी और भ्रष्टाचारी भाजपा की गंगा में डुबकी लगाकर पाक साफ हो चुके हैं यह गिनती सैकड़ों से बढ़ चुकी है। पहली बार मीडिया पर गोदी मीडिया होने का आरोप लगा है। सीबीआई, आयकर और ईडी जैसी जांच एजैन्सियों पर राजनीतिक तोता होने का आरोप लगना अपने में ही एक बड़ा सवाल हो जाता है। यह सरकार जो शिक्षा नीति लायी है उसकी भूमिका के साथ लिखा है कि इससे हमारे बच्चों को खाड़ी के देशों में हैल्पर के रूप में रोजगार मिलने में आसानी हो जायेगी। इस पर प्रश्न होना चाहिये या सर पीटना चाहिये आप स्वयं निर्णय करें। क्योंकि इसी शिक्षा नीति में मनुस्मृति को पाठयक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है।
धनबल के सहारे सरकारें पलटने माननीयों की खरीद करने की जो राजनीतिक संस्कृति शुरू हो गयी है इसके परिणाम कितने भयानक होंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। ऐसे में आज जब मतदान करने की जिम्मेदारी आती है तो वर्तमान राजनीतिक संस्कृति में मेरी राय में न तो निर्दलीय को समर्थन देने और न ही नोटा का प्रयोग किये जाने की अनुमति देती है। आज वक्त की जरूरत यह बन गयी है कि राष्ट्रीय दलों में से किसी एक के पक्ष में ही मतदान किया जाये। यह मतदान राष्ट्र के भविष्य के लिये एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। जुमलों और असलियत पर परख करना आपका इम्तहान होगा।