प्रदेश विधानसभा के लिये चुनावों की तिथियां घोषित होने के बाद प्रमुख दलों भाजपा कांग्रेस तथा आप के उम्मीदवारों की सूचियां आने के साथ ही इनके स्टार प्रचारकों की सूचियां भी जारी हो चुकी हैं। नामांकन वापसी के बाद मतदान तक चुनाव प्रचार के लिये इस बार बहुत कम समय रखा गया है यह संयोगवश है या इसके पीछे कोई विशेष वैचारिक धरातल रहा है क्योंकि मतदान और परिणाम के बीच बहुत अन्तराल रखा गया है। चुनाव प्रचार में जिस संख्या में केन्द्रीय नेताओं को उतारा गया है उसके परिदृश्य में प्रदेश के नेताओं की भूमिका बड़ी संकुचित होकर रह जायेगी। स्टार प्रचारकों की सूचियों से तो यही इंगित होता है कि चुनाव प्रदेश के मुद्दों पर नहीं केंद्र के मुद्दों पर लड़ा जायेगा। क्योंकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस जयराम सरकार के पूरे कार्यकाल में कोई आरोप पत्र तक जारी नहीं कर पाया है। ऐसे में कांग्रेस के केन्द्रिय नेताओं के पास प्रदेश के मद्दों की कोई बड़ी व्यवहारिक जानकारी स्वाभाविक रूप से हो नहीं पायेगी। आम आदमी पार्टी 2014 में अपने गठन से लेकर आज तक प्रदेश में गंभीर और ईमानदार हो नहीं पायी है। क्योंकि हिमाचल में आप की ज्यादा सक्रियता भाजपा के लिये नुकसानदेह होगी। इसीलिए आप हिमाचल में दिल्ली मॉडल का सूत्र अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को रटाने से आगे नहीं बढ़ी है। केजरीवाल उसी तर्ज पर दिल्ली मॉडल की बात करता है जिस तर्ज पर आज तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की जनता को अपने ही मन की बात सुनाते आये है।ं दोनों विज्ञापन जीवियों की श्रेणी में आते हैं। जबकि केजरीवाल की मुफ्ती पर आरबीआई से लेकर सर्वाेच्च न्यायालय तक की चिंता व्यक्त कर चुके हैं और इस पर कभी भी कोई कड़े निर्देश आ सकते हैं। आप की गुजरात में बिलकिस बानो प्रकरण में चल रही चुप्पी से कई सवाल खड़े होते जा रहे हैं।
इस परिप्रेक्ष में यह लगता है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश के मुद्दों पर बात करने के बजाय इसी से काम चलाने का प्रयास करेगा कि रुपया नहीं गिर रहा है बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है। इस समय बिलकिस बानो के हत्यारों की सजा मुआफी के मामले में जिस तरह से केन्द्र की भूमिका बेनकाब हुई है उससे क्या आज भाजपा के हर नेता से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिये कि हत्यारों और बलात्कारियों का सार्वजनिक महिमामण्डन किस संस्कृति का मानक है। क्या मुस्लिम होने से उन्हें न्याय का अधिकार नहीं रह जाता है। क्या आज यह राष्ट्रीय प्रश्न नहीं बन जाता है। क्या संघ का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद इसी का नाम है? इसी तरह आज नोटबंदी पर आई हुई 58 याचिकाओं पर सुनवाई के माध्यम से एक सार्वजनिक बहस का वातावरण निर्मित हो रहा है। सर्वाेच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार और आरबीआई को नोटिस जारी किया है। इसमें यह सामने आ चुका है की नोटबंदी का अधिकार आरबीआई एक्ट के तहत सरकार को था ही नहीं। इस बहस से यह सवाल फिर उछलेंगे कि नोटबंदी के समय घोषित लाभ कितने क्रियात्मक हो पाये हैं। नोटबंदी पर क्या आज सवाल नहीं पूछे जाने चाहियं? नफरती बयानों पर जिस तरह का कड़ा संज्ञान सर्वाेच्च न्यायालय ने लेते हुए प्रशासनिक निष्क्रियता को अदालती अवमानना करार दिया है उससे पूरे समाज में एक नयी संवेदना और संचेतना का वातावरण निर्मित हुआ है। नफरती बयानों के लिए सबसे अधिक सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोग जिम्मेदार हैं। नफरती बयानों पर भी भाजपा नेतृत्व से सवाल पूछे जाना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि यह सारे आज के राष्ट्रीय प्रश्न बन चुके हैं। इनके कारण अर्थव्यवस्था पूरी तरह तहस-नहस हो चुकी है। इन प्रश्नों से ध्यान हटाने के लिए राम मन्दिर, तीन तलाक धारा 370 हटाने जैसे मुद्दे परोसे जायेंगे।
हिमाचल के संद्धर्भ में भी इस सवाल का जवाब नहीं आयेगा कि प्रधानमंत्री मुद्रा ऋण योजना में ही 2541 करोड़ रूपया बांटे जाने के बाद भी प्रदेश बेरोजगारी में देश के
टॉप छः राज्यों में क्यों आ गया। प्रदेश का कर्ज भार हर रोज बढ़ता क्यों जा रहा है? प्रदेश को दिये गये 69 राष्ट्रीय राजमार्ग और कितने चुनावों के बाद सैद्धांतिक स्वीकृति से आगे बढ़ेंगे। मनरेगा में इस वर्ष अभी तक कोई पैसा क्यों जारी नहीं हो पाया है? प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना क्यों बंद हो गयी? इसके तहत निर्माणधीन 203 सड़को का भविष्य क्या होगा। विधानसभा का यह चुनाव बहुत अर्थों में महत्वपूर्ण होने जा रहा है इसलिये यह कुछ प्रश्न आम आदमी के सामने रखे जा रहे हैं।