चुनाव हो गये है। परिणाम आ गये। सरकारे बन गयी। राजनीतिक दल अपनी-अपनी हार-जीत के आकलनों में व्यस्त हो गये हैं। इन चुनावों के बाद आम आदमी को डीजल के दाम बढ़ने की पहली किस्त मिल गयी है। इससे दूसरी चीजों के दाम भी बढ़ेंगे ही और वह अगली किस्तों में सामने आयेंगे। इस दाम बढ़ौतरी के साथ ही एक फिल्म कश्मीर फाइल भी आम आदमी को मिली है। इस फिल्म पर प्रधानमंत्री का ब्यान आया है। जिसने फिल्म को चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है। भाजपा शासित राज्यों ने इस पर टैक्स माफ कर दिया है। इस फिल्म से 2024 तक आने वाला हर चुनाव प्रभावित होगा यह माना जा रहा है। बल्कि चुनाव को प्रभावित करना ही इस फिल्म का मकसद है यह कहना ज्यादा सही होगा कि इसी के साथ चुनाव के बाद यह भी देखने को मिला है कि पंजाब के कुछ लोग अपनी गाड़ियों पर खालिस्तानी झंडे लगाकर हिमाचल के मणिकरण आये थे। इन लोगों पर ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन का आरोप भी है। इनको हिमाचल पुलिस ने रोकने का प्रयास किया तो उसके बदले में हिमाचल के वाहनों को पंजाब में एंट्री स्थलों पर रोक दिया गया। इस घटना पर हिमाचल और पंजाब की सरकारों का कोई आधिकारिक ब्यान नहीं आया। यह घटना इसलिये महत्वपूर्ण हो जाती है कि है पंजाब में आप की सरकार बनने के बाद और आप के हिमाचल में चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद घटा है। इस सबका आने वाले दिनों में क्या प्रभाव देखने को मिलेगा यह तो आगे ही पता चलेगा। लेकिन इसको हल्के में लेना भी सही नहीं होगा। इसी परिदृश्य में यह सवाल फिर खड़ा होता है कि क्या आम आदमी ने इसी सबके लिये इन दलों को समर्थन देकर यह सरकारें बनवायी है या फिर चुनाव में आम आदमी परोक्ष/अपरोक्ष में अप्रसांगिक होकर रह गया था। क्योंकि इन चुनाव से पहले और इनके दौरान भी व्यवस्था के प्रति उसका रोष उसकी हताशा पूरी तरह खुलकर सामने आ गयी थी। तभी तो वह व्यवस्था से जुड़े हर व्यक्ति को सुनने तक के लिए तैयार नहीं था। उन्हें अपने गांव कस्बों से खदेड़ने तक आ गया था। इसी जन रोष के परिणाम स्वरुप सत्तारूढ़ भाजपा ने लखीमपुर में अपने गृह राज्य मंत्री को चुनाव प्रचार से हटा लिया था। उन्नाव और लखीमपुर खीरी सब जनता के सामने घटा है और उससे किसी भी सभ्य संवेदनशील व्यक्ति का रोष में होना स्वभाविक हो जाता है। लेकिन जब इतने रोष के बाद भी इन्हीं क्षेत्रों से व्यवस्था से जुड़े लोग सभी सीटों से चुनाव जीत जायें तो वह इसे कैसे आंकेगा। स्वाभाविक रूप से वह पूरी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर ही संदेह करने लगेगा। इसी में जब उसके सामने यह आ जाये की ईवीएम मशीनें चोरी हो रही है तो उसका संदेह पुख्ता हो जायेगा। इस चुनाव में जब ईवीएम मशीनें ले जाते हुये एक ट्रक पकड़ा जाता है और दो भाग जाते हैं। वैलेट पेपर का एक बॉक्स कूडे़ के ढेर में मिलता है। चुनाव आयोग को इसका संज्ञान अन्ततः लेना ही पड़ता है और वह संबद्ध अधिकारियों को निलंबित कर देता है तो चुनाव की निष्पक्षता पर उठने वाला हर सवाल स्वतः ही प्रमाणिक हो जाता है। फिर उसी चुनाव में एक पीठासीन अधिकारी का एक ऑडियो वायरल हुआ है जिसमें गंभीर आरोप लगे हैं। सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता भानु प्रताप इस पर पत्रकार वार्ता करके जांच की मांग कर चुके हैं। ईवीएम की निष्पक्षता पर सबसे पहले भाजपा नेता डॉ. स्वामी ने एक याचिका के माध्यम से सवाल उठाये थे और तब वीवीपैट इसके साथ जोड़ी गयी थी। वीवीपैट को लेकर एक याचिका सर्वाेच्च न्यायालय में लंबित चल रही है। इस तरह चुनावी प्रक्रिया से लेकर ईवीएम तक सब की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ चुके हैं। जिन देशों ने ईवीएम के माध्यम से चुनाव करवाने की पहल की थी वह सब इस पर उठते सवालों के चलते इसे बंद कर चुके हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी ईवीएम पर सवाल उठा चुके हैं। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि चुनाव प्रक्रिया पर आम आदमी का विश्वास बहाल करने के लिए ईवीएम का उपयोग बंद करके बैलट पेपर के माध्यम से ही चुनाव करवाने पर आना होगा।