सरकार की हताशा का प्रमाण है लखीमपुर प्रकरण

Created on Monday, 11 October 2021 10:25
Written by Shail Samachar

किसान आन्दोलन को लम्बाने और असफल बनाने के जितने भी प्रयास किये जायेंगे उससे सरकार के प्रति आम आदमी का रोष उतना ही बढ़ता जायेगा यह लखीमपुर प्रकरण सें प्रमाणित हो गया है। क्योंकि इस प्रकरण से पहले जिस भाषा और तर्ज में गृह राज्य मन्त्री ने किसानों को सबक सिखाने की चेतावनी दी थी उसका विडियो सामने आने से यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार आन्दोलन को हिंसा से कुचलना चाहती थी। प्रकरण घट जाने के बाद जिस तरह मन्त्री अजय मिश्रा अपने बेटे के घटना स्थल पर होने से ही इन्कार कर रहे थे उसका सच भी तब सामने आ गया जब क्राईम ब्रांच ने मन्त्री के पुत्र को लम्बी पूछताछ के बाद इस कारण गिरफ्तार किया कि वह जांच में सहयोग नही दे रहा था। पुलिस के सवालों का जबाव नही दे रहा था। क्राईम ब्रांच की पूछताछ में शामिल होने के लिये आशीष मिश्रा अपने साथ दो वकील लेकर गया था। इसलिये वह पुलिस पर किसी भी तरह का दबाव डालने का आरोप नही लगा सकता। आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद उनके पिता गृह राज्य मन्त्री अजय मिश्रा के त्याग पत्र की मांग बढ़ती जा रही है और बहुत संभव है कि प्रधानमन्त्री उनका त्याग पत्र भी ले लें।
इस लखीमपुर प्रकरण से यह प्रमाणित हो गया है कि किसान आन्दोलन को किसी भी तरह की हिंसा से दबाना संभव नही होगा। 26 जनवरी को भी इसी तरह का प्रयास हुआ था। उससे पहले जिस तरह सड़क पर कीलें गाडकर रोकने का प्रयास किया गया था वह भी सारे देश ने देखा है। जो आन्दोलन जायज मुद्दों पर आधारित होते हैं और हर छोटे-बडे़ को एक समान प्रभावित करते हैं ऐसे आन्दोलन किसी भी डर से उपर हो जाते हैं। ऐसे आन्दोलन को राजनीति से प्रेरित करार देना अपने आपको धोखा देना हो जाता है। राजनीति द्वारा प्रायोजित आन्दोलन और उनके नेतृत्व का अन्तिम परिणाम अन्ना आन्दोलन जैसा होता है। नेता आन्दोलन स्थल तक आने का साहस नही कर पाता है। अन्ना और ममता के साथ यही हुआ था। इसलिये आज सरकार और उसके हर समर्थक को यह अहसास हो गया होगा कि किसानों की मांगे मानने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नही रह गया है। क्योंकि इस सरकार के सारे आर्थिक फैसले केवल कुछ अमीर लोगों को और अमीर बनाने वाले ही प्रमाणित हुए हैं। मोदी सरकार ने मई 2014 में अच्छे दिन लाने के साथ देश की सत्ता संभाली थी। लेकिन आज यह अच्छे दिन पैट्रोल सौ रूपये और रसोई गैस एक हजार रूपये से उपर हो जाने के रूप में आये हैं। 2014 में बैंक जमा पर जो ब्याज देते थे वह आज 2021 में उससे आधा रह गया है। आज भी 19 करोड़ से ज्यादा लोग रात को भूखे सोते हैं और इस सच को पूर्व केन्द्रीय मन्त्री शान्ता कुमार ने अपनी आत्म कथा में स्वीकारा है। सरकार की आर्थिकी नीतियों ने सरकार को बैड बैंक बनाने पर मजबूर कर दिया है। किसी भी सरकार के आर्थिक प्रबन्धन पर बैड बैंक के बनने से बड़ी लानत कोई नही हो सकती है।
इस परिप्रेक्ष में यदि कृषि कानूनों पर नजर डालें तो जब यह सामने आता है कि सरकार ने कीमतों और होर्डिंग पर से अपना नियन्त्रण हटा लिया है तो और भी स्पष्ट हो जाता है कि गरीब आदमी इस सरकार के ऐजैण्डों मे कहीं नही है। जो पार्टी किसी समय स्वदेशी जागरण मंच के माध्यम से एफ डी आई का विरोध करती थी आज उसी की सरकार रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भी एफ डी आई ला चुकी है। आज सैंकड़ों विदेशी कम्पनियां देश के आर्थिक संसाधनों पर कब्जा कर चुकी हैं। कृषि में कान्ट्रैक्ट फारमिंग लाकर इस क्षेत्र को भी मल्टीनेशनल कम्पनियों को सौंपने की तैयारी की गई है। इसलिये आज इन कृषि कानूनों का विरोध करना और सरकार को इन्हें वापिस लेने पर बाध्य करना हर आदमी का नैतिक कर्तव्य बन जाता है। आर्थिकी को प्रभावित करने वाले फैसलों को राम मन्दिर, तीन तलाक, धारा 370 हटाने के फैसलों से दबाने का प्रयास आत्मघाती होगा। बढ़ती कीमतों और बढ़ती बेरोजगारी ने आम आदमी को यह समझने के मुकाम पर ला दिया है कि सरकार की इन उपलब्धियां का कीमतों के बढ़ने से कोई संबंध नही है। इसलिये सरकार को यह कानून वापिस लेने का फैसला लेने में देरी करना किसी के भी हित में नही होगा।