बड़ा सन्देश है- दलित को मुख्यमन्त्री बनाना

Created on Monday, 27 September 2021 03:32
Written by Shail Samachar

अभी पंजाब में कांग्रेस ने अपना मुख्यमन्त्री बदला है। इससे पहले भाजपा ने उत्तराखण्ड में दो बार फिर कर्नाटक और गुजरात में मुख्यमन्त्री बदले हैं। उत्तर प्रदेश में भी मुख्यमन्त्री बदलने के प्रयास हुए। भाजपा के मुख्यमन्त्रीयों में सिर्फ कर्नाटक और गुजरात में रोष के स्वर उभरे परन्तु उत्तराखण्ड में ऐसा कुछ नही हुआ। पंजाब में यह रोष कुछ ज्यादा हो गया है क्योंकि निवर्तमान मुख्यमन्त्री ने नये बने मुख्यमन्त्री और वहां के पार्टी अध्यक्ष पर कई आरोप लगाये हैं। यह आरोप उनकी व्यक्तिगत हताशा बनते जा रहे हैं। क्योंकि यदि य आरोप सही है जो सबसे पहले इन पर कारवाई करने की जिम्मेदारी भी उसी मुख्यमन्त्री की थी जिसकी पार्टी में यह लोग थे। यही प्रश्न उन दूसरे लोगों पर भी लगता है जो अब इन अरोपों पद सवाल पुछ रहे हैं। इसलिये राजीतिक भाषा में यह आरोप उस बौखलाहट का परिणाम है जो पंजाब जैसे राज्य में एक दलित को मुख्यमन्त्री बनाये जाने से सभी बड़ो के अहम पर चोट बनी है। हटाये गये मुख्यमन्त्री ने पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहूल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी को भी अनुभवहीन और बच्चा कहा है। यहां पर फिर अमरेन्द्र सिंह पर ही सवाल उठता है कि जब राहूल गांधी के चरित्र हनन के लिये सैंकड़ों करोड़ का प्रौजेक्ट विरोधियों द्वारा चलाया गया था जिसका खुलासा कोबरा पोस्ट ने अपने सि्ंटग आप्रेशन में किया था उस पर पार्टी के यह बड़े नेता खामोश क्यों रहे थे? तब इस सिद्धान्त को क्यों भूल गये थे कि राजनीति में उसी विरोधी को गाली दी जाती है जो ज्यादा ताकतवर होता है। फिर अमरेन्द्र को मुख्यमन्त्री भी शायद इसी अनुभवहीन राहुल गांधी ने प्रपोज किया थ तब उन्हे बुरा क्यो नही लगा था। क्या प्रियंका को महामन्त्री बनाये जाने का एक बार भी अमरेन्द्र ने विरोध क्यों नही किया है? इसलिये आज अमरेन्द्र के सारे वक्तव्य उनकी व्यक्तिगत हताशा से अधिक कुछ नही रह जाते हैं।
लेकिन इसी सबमें यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस उस समय अपने मुख्यमन्त्री बदलने की रणनीति पर क्यों आ गये हैं। इस बदलाव का इनके संगठनो और जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसके लिये सत्ता पक्ष से इसका आकलन शुरू करना ज्यादा प्रसांगिक होगा। क्योंक कि इस समय भाजपा इतने बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज है जहां पर उसे कोई भी विधेयक पास करवाने मे किसी भी दूसरे दल के सहयोग की आवश्यकता ही नही हैं इसीलिये बिना किसी बहस के कानून बनते जा रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय तक इस पर चिन्ता जता चुके हैं। 2014 से भाजपा की जीत की जो लहर चल रही थी उसे 2021 में आकर बंगाल में ब्रेक लगी है। बंगाल के चुनावों में प्रधान मन्त्री नेरन्द्र मोदी, गृह मन्त्री अमित शाह अैर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सक्रियता जितनी बड़ी हो गयी थी उसके परिदृश्य में इसके परिणामों की भी सीधी जिम्मेदारी इन्ही पर आ जाती हैं भले ही इस बारे योगी आदित्यनाथ के अतिरिक्त किसी ने भी परोक्ष/ अपरोक्ष में सवाल उठाने का सहास न किया हो। बंगाल का हार में पार्टी के मनोबल और मोदी पर अति आस्था दोनों को गहरा धक्का पहुचाया है यह एक स्थापित सच है। यह सर्वेक्षेणों ने ही सामने ला दिया है। कि मोदी की लोकप्रियता 66%से घटकर 24% तक आ पहुंची है। इस घटती लोकप्रियता का असर आने वाले चुनावों पर न पडे यह सबसे बड़ी चिन्ता बन चुकी है। इस घटाव का कारण अब तक लिये आर्थिक फैसले हैं। इन फैसलों पर उपजी लोकप्रियता को हिन्दु मुस्लिम के गुणा-भाग में दबा दिया जा रहा था। लेकिन किसान आन्दोलन ने इस गुणा-भाग पर जिस तरह पर्दा खींचा है उससे भीतर का नंगा सच एकदम बाहर आ गया है । किसान आन्दोलन में सारे प्रयासों के बावजूद भी हिन्दू- मुस्लिम न खड़ा हो पाना एक ऐसा सच बन गया है जिसने सारे किले को ध्वस्त करके रख दिया है। इस गिरते प्रभाव से बचने के लिये अभी से राज्यों में मुख्यमन्त्री बदलने की रणनीति पर चलने की लाईन ली गयी है। इससे 2024 तक आते-आते इस अलोकप्रियता को कितना रोका जा सकेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
इस समय किसान आन्दोलन हर राजनीतिक दल के लिये केन्द्रिय बिन्दु बन चुका है। सत्ता पक्ष और उससे परोक्ष- अपरोक्ष में सहानुभूति रखने वालों के लिये इस आन्दोलन को असफल करना पहला काम हैं सारे विपक्ष के लिये किसान आन्दोलन को सफल बनाना पहली प्राथमिकता है। इस आन्दोलन ने देश की 80ः जनता को आन्दोलन के मुद्दों पर सक्रिय सोच में लाकर खडा कर दिया है। क्योंकि भण्डारण और कीमतों पर से नियन्त्रण हटाना सबको समझ आता जा रहा है। किसान आन्दोलन की सबसे बड़ी जमीन पंजाव है क्योंकि यह किसान और किसानी का केन्द्र हैं । ऐसे में जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार होते हुए वहां का मुख्यमन्त्री पंजाब के किसानों को वहां से धरने प्रदर्शन बन्द करने और अंबानी-अदाणी को सुरक्षा देने की बात करे तो क्या यह कदम एक तरह से पूरी पार्टी के खिलाफ राष्ट्रीय षडयन्त्र नही बन जाता है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के किसान आन्दोलन के विरोध मे आये ब्यान सभी के संज्ञान में हैं। बल्कि यह माना जा रहा है कि कांग्रेस हाई कमान को यह कदम बहुत पहले उठा लेना चाहिये था। 2014 से लेकर आज 2012 तक यदि भाजपा शासन में कोई सबसे ज्यादा प्रताडित रहा है तो उसमें सबसे पहले नाम दलित ओर मुस्लिम समूदाय के ही रहे हें। आज कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमन्त्री बनाकर न केवल भूल सुधार की है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक सकारात्मक सन्देश भी दिया है। इस सन्देश का लाभ न केवल कांग्रेस बल्कि पूरे देश को होगा।