राम मन्दिर का शिलान्यास होने से अब उन सवालों पर विराम लग जायेगा जिनमें यह पूछा जाता था कि श्रीराम का मन्दिर कहां और कब बनेगा। इस मन्दिर निर्माण के लिये हुए आन्दोलन में भाजपा की चार सरकारों की बलि चढ़ गयी थी। लेकिन इस मुद्दे पर आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में जब यह कहा गया कि इस मन्दिर के लिये बाबरी मस्जिद का गिराया जाना गलत था और पुरातत्व विभाग ऐसे कोई साक्ष्य नही दे पाया है कि मन्दिर को गिराकर मस्जिद बनाई गयी थी तब इसी से सारे आन्दोलन की नैतिकता धराशायी हो जाती है। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला एक ऐतिहासिक धरोहर दस्तावेज बन गया है। आने वाले समय में जब भी कोई अतीत के इन पन्नो को खंगालते हुए आन्दोलन की नैतिकता का आकलन करेगा तो वह इस आन्दोलन के नायकों को साधुवाद नहीं कह पायेगा और न ही हिन्दु पुरोधाओं को निर्दोष करार दे पायेगा। आने वाली पीढ़ीयों के पास इसका शायद कोई जवाब नही होगा। बल्कि जब यह जिक्र आयेगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्यों से इतर जाकर अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए यह स्थल हिन्दु समाज को सौंपा है और मुस्लिम समाज ने इसे अपनी विशालता का परिचय देते हुए स्वीकार कर लिया तो वहां फिर आन्दोलन की राजनीतिक महत्वकांक्षा पर आकर ही बात रूकेगी। उस समय भविष्य की पीढ़ीयां आज के वर्तमान को कैसे आंकेगी यह कहना कठिन है। क्योंकि आज कोरोना के कारण जिस तरह से अभी तक धार्मिक स्थल बन्द चल रहे हैं और पुजारियों को अपने जीवन यापन के लिये सरकारों से आर्थिक सहायता मांगनी पड़ी है उससे निश्चित रूप से आस्था पर भी कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं।
इस समय देश कोरोना संकट के दौर से गुजर रहा है। तीन लाकडाऊन झेलने के बाद अब अनलाक तीन चल रहा है। लेकिन अनलाक तीन में भी अभी तक बाज़ार की आर्थिक गतिविधियां 30% भी बहाल नही हो पायी हैं। 30% आर्थिक गतिविधियों का अर्थ है कि सरकार का राजस्व संग्रहण भी अभी तक 40% नही हो पाया है। राजस्व की इसी कमी के चलते केन्द्र सरकार ने हिमाचल जैसे राज्य को कह दिया है कि वह पहली सितम्बर से कोरोना के टैस्टों पर होने वाले खर्च को स्वयं उठाये। इसी संकट के कारण एपीएल परिवारों की राशन की सब्सिडी बन्द कर दी गयी है और बीपीएल की मात्रा कम कर दी है। करोड़ों लोग बेरोजगार होकर बैठ गये हैं। हिमाचल में ही इससे पीड़ित आत्महत्या करने लग पड़े हैं। राज्य के डीजीपी ने इस पर गंभीर चिन्ता व्यक्त की है। पूरा देश आर्थिक संकट से गुजर रहा है। लेकिन राम मन्दिर के शिलान्यास को जिस तरह से देशभर में एक पर्व के रूप में मनाते हुए भाजपा-संघ द्वारा मिठाईयां बांटी गयी है उससे सत्तारूढ़दल की मानवीय संवेदनाओं और उसकी प्राथमिकताओं का अन्दाजा लगाया जा सकता है। विश्वभर में इस शिलान्यास के बाद धार्मिक राष्ट्रवाद को लेकर एक बहस छिड़ गयी है। इस शिलान्यास के बाद भी देश के धार्मिक स्थलों पर चल रही पाबन्दी नही हठ पायी है। इसको लेकर मर्यादा पुरूषोत्तम राम कितने प्रसन्न हो रहे होंगे इसका भी आन्दाज लगाया जा सकता है। शिलान्यास को लेकर जब भी कोई निष्पक्ष आकलन होगा तब इन सवालों को नजरअन्दाज कर पाना कठिन होगा। क्योंकि आर्थिक संकट में इस समारोह पर हुआ यह करोड़ों का खर्च यह भूखे पेट की आंखों में सवाल बनकर तो खड़ा रहेगा ही।
यह शिलान्यास मर्यादा पुरूषोत्तम राम के मन्दिर का हो रहा था। कोरोना काल में हुए इस शिलान्यास के पर्व पर बहुत लोग और कई बड़े नेता कोरोना को लेकर चल रही पाबन्दियों के कारण नहीं आ पाये। क्योंकि कोरोना निर्देशों के उल्लघंन पर सजा और जुर्माने का प्रावधान घोषित है। बहुत लोगों को इसके लिये जुर्माना लगा भी है। लेकिन शिलान्यास समारोह में जो बाबा रामदेव जैसे लोग शामिल थे वह कोरोना निर्देशों का खुला उल्लघंन कर रहे थे। उन्हें कोई इसके लिये इंगित भी नहीं कर रहा था। गृहमन्त्री अमितशाह तीन अगस्त को कोरोना पाजिटिव पाये गये और वह उपचार के लिये मेदान्ता में भर्ती भी हुए। 29 जुलाई को वह प्रधानमन्त्री के साथ मन्त्री परिषद की बैठक में शामिल थे। नियमों के अनुसार उस बैठक में शामिल हर व्यक्ति को संगरोध में होना चाहिये था लेकिन ऐसा हुआ नही है। देशभर में शिलान्यास के बाद जो जश्न मनाया गया है उसमें कोरोना निर्देशों का खुला उल्लंघन हुआ है। इस जश्न के आगे सारे नियम और निर्देश बौने साबित हुए हैं। समारोह में वह पोस्टर भी पूरा ध्यान आकर्षित कर रहा था जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत को राज्यपाल और मुख्यमन्त्री से ऊपर स्थान दिया गया था। जबकि मोहन भागवत कोई जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नही है। बल्कि उनका संघ तो एक पंजीकृत संस्था भी नही है। यही नहीं एक चित्र में तो भगवान राम को प्रधानमन्त्री अंगूली से पकड़कर मन्दिर की ओर ले जा रहे हैं यह दिखाया गया है कि इस तरह पूरे समारोह में प्रधानमन्त्री और संघ /भाजपा को ही महिमा मंडित करने का प्रयास रहा है। आज कोरोना के कारण आम आदमी इन मर्यादाओं के हनन पर खुल कर नहीं बोल पा रहा है। लेकिन इस समारोह से यह तो सामने आ ही गया है कि कोरोना को लेकर लगाई गयी पाबन्दियां केवल आम आदमी के लिये ही हैं। लेकिन यह तय है कि जिस दिन यह पाबन्दियां हटेगी उस दिन यही समारोह ऐसे सवाल लेकर आयेगा जिनका जवाब देना कठिन होगा क्योंकि मर्यादाओं का जो हनन यहां हुआ है वह अपना असर अवश्य दिखायेगा।