जब कोरोना से बचने के लिये धारा 144, कर्फ्यू और तालाबन्दी जैसे सारे कदम जब एक साथ उठा लिये जायें तब अन्दाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है। लेकिन जब इन्ही कदमों के बीच कुछ राजनेता खुले आम ऐसे कार्यक्रमो का आयोजन कर डाले जहां सोशल डिसटैन्सिग मजाक बन जाये तब क्या यह सोचना स्वभाविक नही हो जाता कि आखिर हो क्या रहा है। कोरोना को लेकर चर्चाएं 2019 के अन्त में ही उठ गयी थी। जब चीन के बुहान प्रान्त में यह महामारी पहली बार सामने आयी थी। उसके बाद फरवरी के प्रथम सप्ताह में तो संयुक्त राष्ट संघ के विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका संज्ञान लेते हुए यह एडवाईजरी जारी कर दी थी कि सरकारें पी पी ई उपकरणों की उपलब्धता अपने अपने यहां सुनिश्चित कर लें। इस एडवाईजरी के बाद देश भर में सोशल डिसटैन्सिग की दिशा में कदम उठाते हुये केंन्द्र से लेकर राज्य सरकारों तक ने शैक्षणिक संस्थान, सिनेमाघर, शापिंग माल तथा सारे धार्मिक स्थल बन्द करवा दिये। इन स्थलों के बन्द हो जाने के बाद प्रधानमंत्री ने एक दिन के जनता कर्फ्यू का आहवान कर दिया। लेकिन आहवान के तीन दिन बाद यह कर्फ्यू लागू हुआ। जनता ने इसे सफल बनाने मे पूरा सहयोग दिया क्योंकि इसकी तैयारी के लिये उसे पर्याप्त समय मिल गया था। परन्तु इस कर्फ्यू के बाद कुछ राज्यों ने अपने यहां तुरन्त प्रभाव से कर्फ्यू लगा दिया। जनता को इसके लिये तैयार होने का समय नही दिया गया फिर अभी यह कर्फ्यू चल ही रहा था कि प्रधानमंत्री ने रात को आठ बजे पूरे देश में तालाबन्दी की घोषणा कर दी और बारह बजे से इसे लागू भी कर दिया। जनता को तैयार होने के लिये कोई समय नही दिया गया। सरकार के आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी पुलिस को दी गई और पुलिस ने डण्डे के बल पर इसे लागू करवाना शुरू कर दिया। देश भर से पुलिस की ज्यादतीयों के विडीयोज सामने आ चुके है।
इस तरह जो कुछ यह घटा है उससे कई गंभीर सवाल भी उठ खड़े हुये है। पहला सवाल तो यही है कि न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकारों ने जनता को इस संबंध में तैयार होने का समय दिया। ऐसा क्यों किया गया? क्या जो स्थिति सामने दिख रही है वास्तव में उससे भिन्न है ? दूसरा सवाल है कि जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी के शुरू में ही पी पी ई उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित रखने की एडवाईजरी जारी कर दी थी तो फिर केन्द्र 19 मार्च तक इसका निर्यात क्यों करता रहा। आज हर अस्पताल पी पी ई उपकरणों की कमी से जूझ रहा है। इसका कोई भी जबाव सामने नही आया है। तीसरा बड़ा सवाल है कि जब देश भर में सामाजिक आयोजनों पर सोशल डिसटैन्सिग के मकसद से प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तो शिवराज सिंह चैहान और योगी आदित्यनाथ के आयोजन कैसे हो गये क्या यह लोग प्रधानमंत्री के आदेशों की भी परवाह नही करते हैं? क्योंकि इन आयोजनों से अनचाहे ही यह सन्देश गया है कि स्थिति उस तरह की गंभीर नही है जैसी की सरकार के कदमों से लक्षित हो रही है। बल्कि यह संदेश जा रहा है कि सरकार जानबूझकर जनता का डरा रही है।
स्मरणीय है कि धारा 144 का ही विस्तारित रूप है कर्फ्यू और तालाबन्दी/प्रशासन सामान्यत यह कदम कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिये उठाता है। जब किसी कारण से जनाक्रोष उग्र हो उठता है और उससे जानमाल को क्षति पहुंचने की आशंका बन जाती है तब प्रशासन इन कदमों के सहारे स्थिति पर नियन्त्रण बनाये रखने का प्रयास करता है। उसमें भी जनता को पूर्व चेतावनी दी जाती है। इस समय जिस तरह से एकदम बिना कोई समय दिये कर्फ्यू और तालाबन्दी लागू कर दिये गये उससे तो एकदम आघोषित आपातकाल की स्थिति बना दी गई है। जबकि जनता तो इस महामारी से अपने आप ही डरी हुई है क्यांेकि अभी तक इसकी कोई दवाई तक उपलब्ध नही है। ऐसे में जब सरकार के आदेशों से पूरे देश की हर गतिविधि थम गई है तो उसका प्रभाव आर्थिक स्थिति पर किस तरह का पडेगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। छोटा बड़ा सारा उद्योग धन्घा बन्द हो गया है। लाखों लोग बेरोजगार हो गये हैं। सरकार ने इन लोगों की सहायता के लिये आर्थिक पैकेज की घोषणा तो कर दी है लेकिन इसे व्यवहार में उतारने के लिये कितना समय लगेगा जबकि यातायात के सारे साधन सरकारी आदेशों से बन्द हो चुके हैं। खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये कितना मानवश्रम चाहिये। जब यह मानव संसाधन व्यवहारिक रूप से आपूर्ति सुनिश्चित करने में लगेगा तो क्या उससे सोशल डिस्टैनसिंग प्रभावित नही होगी। क्या तालाबन्दी और कर्फ्यू लगाने से पहले यह विचार किया गया था कि आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता कैसे सुनिश्चित की जायेगी। अभी तीन दिन के कर्फ्यू में ही यह हालात को गये है कि लोगों को राशन की दूकानों से खाली हाथ लौटना पडा है। फिर यह तय नही है कि सोशल डिसटैन्सिग को कितने समय तक जारी रखना पडेगा। इस समय सरकार के ये कदम जनता में जन विश्वास की बजाये डर का कारण बनते जा रहे है और यही सबसे घातक है।