नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ उभरा नागरिक विरोध जामिया और शाहीन बाग में गोली चलने के बाद भी जारी है। इन दोनों जगह गोली चलाने वाले युवा स्कूल और कालिज जाने वाले छात्र हैं। जिन्होने शायद इस संशोधन को पढ़ भी नही रखा होगा समझ आना तो और भी दूर की बात होगी। इस संशोधन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में सौ से अधिक याचिकायें दायर हैं। केन्द्र सरकार ने इन पर जवाब दायर करने के लिये एक माह का समय मांगा है। सर्वोच्च न्यायालय में आयी याचिकाओं में इसके हर पक्ष पर सवाल उठाये गये हैं। एनआरसी, एनपीआर और सीएए में क्या संबंध है इस पर सवाल है। इस पर प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री और अन्य मन्त्रियों एवम् नेताओं के संसद के भीतर दिये गये ब्यानों को भी अदालत के संज्ञान में लाया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस संशोधन पर उठे हर सवाल और हर शंका के समाधान का सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा और कोई मंच नही हो सकता। लेकिन इस मंच से कोई जवाब आने से पहले ही इसका विरोध कर रहे लोगों को गद्दार कहना, उन्हे टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थक बताना किसी भी अर्थ में जायज नही ठहराया जा सकता है।
शाहीन बाग में विरोध पर बैठे लोगों की मांग है कि सरकार उनकी बात सुने। कानून मन्त्री रवि शंकर प्रसाद ने जब यह ब्यान दिया कि सरकार इन लोगों से बात करने के लिये तैयार है लेकिन फिर उसी दिन प्रधानमन्त्री का ब्यान आ जाता है कि भाजपा को इस पर आक्रमकता से अपनी बात रखनी होगी। प्रधानमन्त्री का यह ब्यान भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को एक निर्देश है। प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री ने जब विरोधियों पर आरोप लगाया कि यह लोग टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन कर रहे हैं तो निश्चित रूप से इससे बड़ा कोई आरोप नही हो सकता। ऐसे लोग सही में राष्ट्रद्रोही कहे जा सकते हैं। जब देश का प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री इतना बड़ा आरोप लगाये तो स्वभाविक है कि यह आरोप तथ्यों पर आधारित होगा। क्योंकि तब किसी के खिलाफ इस निष्कर्ष पर पहंुचेंगे कि वह देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात कर रहा है तो तय है कि यहां तक पहुंचने से पहले देश की गुप्तचर ऐजैन्सीयों ने इस संद्धर्भ में सारे प्रमाण जुटा लिये होंगे। इसके लिये मानदण्ड तय कर लिये गये होंगे कि किस आधार पर किसी का ऐसा वर्गीकरण किया जायेगा। प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री के इन आरोप पर जब गृह मन्त्रालय से आरटीआई के माध्यम से यह सूचना मांगी गयी कि टुकड़े-टुकड़े गैंग को लेकर सरकार के पास क्या जानकारी है। क्या इसके लिये कोई मानदण्ड बनाये गये हैं। क्या इसकी कोई सूची उपलब्ध है। इस तरह की सारी जानकारियां एक अंग्रेजी दैनिक एक्सप्रैस के पत्रकार ने मांगी थी। लेकिन गृह मंत्रालय ने इस टुकड़े-टुकड़े गैंग को लेकर पूरी अनभिज्ञता जाहिर की। उसके गृह मन्त्रालय के पास कोई जानकारी ही नही है। अखबारों ने अपने पहले पन्ने पर यह खबर छापी है। जिस पर किसी का कोई खण्डन नही आया है। इस तरह आरटीआई के जवाब से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस तरह का संबोधन/आरोप बिना किसी प्रमाण के ही लगा दिया गया। आज हर छोटा-बड़ा नेता इस आरोप को हवा दे रहा है।
दिल्ली चुनावों के प्रचार में जब अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के ब्यानों का कड़ा संज्ञान लेते हुय चुनाव आयोग ने उन पर प्रतिबन्ध लगाया तो भाजपा ने इस प्रतिबन्ध का विरोध करते हुए चुनाव आयोग में इस पर आपति दर्ज करवाई। यह आपति दर्ज करवाने का अर्थ है कि भाजपा प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर के ब्यानों का समर्थन करती है। आज जब प्रधानमन्त्री ने पार्टी को निर्देश दिया है कि वह आक्रामक होकर इस संशोधन पर अपना पक्ष रखें तो स्वभाविक है कि अनुराग और प्रवेश वर्मा की तर्ज के कई और ऐसे ही ब्यान देखने को मिलंेगे। जिस तरह से जामिया और शाहीन बाग में दो छात्रों ने गोली चलायी है ऐसे ही कई और छात्र देश के अन्य भागों में भी देखने को मिल जायें तो क्या उससे कोई हैरानी होगी क्योंकि इस मुद्दे पर तर्क तो सर्वोच्च न्यायालय में ही सामने आयेगा जहां सरकार और याचिकाकर्ता खुलकर अपना-अपना पक्ष रखेंगे। अभी इस संशोधन पर उभरा विरोध थमा नही है और इसी बीच शाहीन बाग में संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा तैयार किये गये भारतीय संविधान को लेकर भी चर्चा उठ गयी है। यह आरोप लगाया गया है कि यह नया संविधान हिन्दु धर्म पर आधारित है। इसके मुताबिक भारत को एक हिन्दु राष्ट्र घोषित कर दिया जायेगा। इस कथित संविधान का संक्षिप्त प्रारूप सोशल मीडिया के मंच पर आ चुका है। लेकिन इस कथित संविधान को लेकर सरकार और संघ की ओर से कोई स्पष्टीकरण/खण्डन जारी नही किया गया है। यह संविधान पूरी तरह मनुस्मृति पर आधारित है। आज पूरे देश में ही नही बल्कि यूरोपीय यूनियन के मंच तक नागरकिता संशोधन अधिनियम चर्चा और विवाद का विषय बन चुका है। ऐसे में इसी समय इस सविंधान की चर्चा उठना और बड़े गंभीर संकेत और संदेश देता है जिस पर समय रहते कदम उठाने की आवश्यकता है।