नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उभरा विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। जनता प्रधानमंत्री मोदी की बात नही सुन रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि जनता प्रधानमंत्री पर विश्वास नही कर पा रही है। यही सबसे दुखद है कि प्रधानमंत्री जनता का विश्वास खोते जा रहे हैं। इसलिये यह जानना/ समझना बहुत आवश्यक हो जाता है कि ऐसा हो क्यों रहा है। क्या प्रधानमंत्री को अपने ही लोगों का सहयोग नही मिल रहा है। क्योंकि मोदी के मन्त्री अमितशाह, प्रकाश जावडेकर, रविशंकर प्रसाद जैसे वरिष्ठ लोग ही प्रधानमन्त्री से अलग भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। प्रधानमन्त्री और उनके मन्त्रीयों के अलग -अलग ब्यानों से पैदा हुए विरोधाभास के कारण उभरी भ्रान्ति तथा डर को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में इण्डियन यूनियन मुस्लिम लीग और असम ऐडवोकेट ऐसोसियेशन ने दो याचिकाएं भी दायर कर दी हैं। बंगाल के एक अध्यापक मण्डल की एनपीआर को लेकर आयी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय में केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर विधिवत चुनौती दे रखी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस संद्धर्भ में आयी पांच दर्जन से अधिक याचिकाओं पर 22 जनवरी से सुनवाई करने की भी घोषणा कर दी है। ऐसे मे जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर सुनवाई शुरू करने की बात कर दी है तो केन्द्र सरकार को भी इस अधिनियम और इसी के साथ एनपीआर तथा एनआरसी पर शीर्ष अदालत का फैसला आने तक सारी प्रक्रिया स्थगित कर देनी चाहिये।
इस समय नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालयों में आ चुकी हैं उससे पता चलता है कि देश में इसका विरोध कितना हो रहा है। शायद आज तक इतना विरोध किसी भी मुद्दे पर नही उभरा है। एनआरसी, सीएए और एनपीआर का जिस भी व्यक्ति ने ईमानदारी से अध्ययन किया है वह मानेगा कि तीनों में गहरा संबंध है बल्कि एनपीआर ही सबकी बुनियाद है। ऐसे में जब प्रधानमंत्री अैर उनके मन्त्री इस विषय पर कुछ भी बोलते हैं तो उससे सरकार और नेतृत्व की नीयत पर ही सवाल खड़े होने लग जाते हैं। राज्य मन्त्री किरन रिजजू ने राज्य सभा में 24-7-2014 को एक प्रश्न के उत्तर में स्वयं यह माना है कि एनपीआर ही इस सबका आधार है। स्थितियां जो 2014 में थी वही आज भी हैं। यह सही है कि अवैध घुसपैठिये और धर्म के कारण प्रताड़ित हो कर आने वाले व्यक्ति में फर्क होता है। प्रताड़ित की मद्द की जानी चाहिये घुसपैठिये की नहीं लेकिन फर्क कैसे किया जायेगा सवाल तो यह है। क्योंकि नियमों में ऐसा कोई प्रावधान ही नही रखा गया है। जिस तरह की परिस्थितियां निर्मित की जा रही हैं उससे यही संकेत उभरता है कि केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही बाहर का रास्ता दिखाने की बिसात बिछायी जा रही है।
प्रधानमन्त्री कह चुके हैं कि एनआरसी को लेकर कहीं कोई चर्चा ही नही हुई है और जब इस पर सरकार में कोई चर्चा कोई फैसला ही नही हुआ है तब एनपीआर को लेकर कोई प्रक्रिया क्यों शुरू की जा रही है इसके लिये धन का प्रावधान क्यों किया जा रहा है। एनपीआर का प्रतिफल तो एनआरसी और सीएए में आयेगा। जब एनआरसी लागू ही नही किया जाना है तो एनपीआर का बखेड़ा ही क्यों शुरू किया जाये। सर्वोच्च न्यायालय में आयी याचिकाओं पर सरकार को यह जवाब देना है। सर्वोच्च न्यायालय के सामने भी एक तरफ प्रधानमंत्री और उनके मन्त्रीयों के ब्यान होंगे और दूसरी एनआरसी, सीएए तथा एनपीआर पर जारी सरकारी आदेश होंगे। सबका मसौदा सामने होगा। यह स्थिति एक तरह से सरकार और सर्वोच्च न्यायालय दोनो के लिये परीक्षा की घड़ी होगी। इस परीक्षा में दोनो का एक साथ पास होना संभव नही है। लेकिन किसी एक का भी असफल होना देश के लिये घातक होगा। आज देश की अर्थव्यवस्था भी एक संकट के दौर से गुजर रही है और इसे नोटों पर महात्मा गांधी की जगह लक्ष्मी माता की फोटो छापकर उबारा नही जा सकता जैसा कि भाजपा नेता डा. स्वामी ने सुझाव दिया है। इस समय सरकार को अपने ऐजैण्डे से हटकर नागरिकता संशोधन को वापिस सर्वदलीय बैठक बुलाकर सर्व सहमति से इसका हल निकालना होगा। यदि ऐसा नही हो पाता है तो आने वाला समय नेतृत्व को माफ नही कर पायेगा।