क्या न्यायपालिका भी खतरे में है

Created on Tuesday, 30 April 2019 06:40
Written by Shail Samachar

‘‘इस समय न्यायापालिका भी संकट में है। उसे रिमोट कन्ट्रोल से नियन्त्रित करने का प्रयास किया जा रहा है।’’ यह प्रतिक्रिया रही है देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की जब प्रधान न्यायधीश रंजन गगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगे। यह आरोप लगना एक बहुत बड़ी बात है क्योंकि गगोई सर्वोच्च न्यायालय के उन चार न्यायधीशों में शामिल थे जिन्होने एक पत्रकार वार्ता करकेे शीर्ष अदालत की विश्वसनीयता पर लगते प्रश्नचिन्हों पर चिन्ता व्यक्त की थी और देश की जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था। इन न्यायधीशों की चिन्ता का आधार था पिछले कुछ अरसे में शीर्ष अदालत के सामने आये कुछ महत्पूर्ण मामलों को लेकर जो आचरण सुप्रीम कोर्ट का रहा है। इन मामलों को पूरा देश जानता है इसलिये मैं यहां पर उनके विवरण में नही जाना चाहता । यहां चिन्ता ओर चिन्तन का विषय यह है कि जो न्यायधीश देश के सामने सर्वोच्च न्यायालय की साख को लेकर चिन्ता व्यक्त कर चुका हो उसके अपने ही खिलाफ ऐसे आरोप लग जायें तो इससे विश्वास को एक गहरा आघात लगना स्वभाविक है। किसी संस्था की प्रतिष्ठा उसके भव्य भवन निर्माण से नही वरन उसको संचालित कर रहे लोगों के अपने आचरण से बनती और बिगड़ती है। फिर जब ऐसी संस्था सर्वोच्च न्यायालय हो तो वस्तुस्थिति की गंभीरता और भी बढ़ जाती है। क्योंकि आम आदमी के भरोसे के शीर्ष संबल ईश्वर और न्यायपालिका ही होती है। इसलिये तो जहां राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है वहीं न्यायधीश को स्वयं ईश्वर की संज्ञा दी गयी है संभवतः इसी कारण से अदालत में न्यायधीश को ‘‘ माई लार्ड’’ कहकर संबोधित किया जाता है। क्योंकि न्यायधीश के पास ही मृत्यु दण्ड का अधिकार है।
इस परिपेक्ष में यह आवश्यक हो जाता है कि ऐसे न्यायधीशों पर लगने वाले आरोपों की जांच के लिये प्रक्रिया आम आदमी से कुछ भिन्न हो यह सही है कि हर आदमी कानून के सामने एक समान है और यौन शोषण के आरोपों की जांच के लिये जो व्यवस्था समय-समय पर स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने कर रखी है उसके अनुसार तो प्रधान न्यायधीश को अपने पद से पहले हट जाना चाहिये। फिर इन आरोपों पर जो जो प्रतिक्रियाएं विभिन्न वर्गों से आयी हैं उसका मंतव्य भी अधिकांश में इसी तरह का रहा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित की गयी ‘‘इन हाॅऊस जांच कमेटी’’ की प्रक्रिया पर जिस तरह से सवाल उठाये गये हैं उसका आश्य इसी तरह का है। यौन शोषण के आरोप लगाने वाली महिला की दिसम्बर में हुई नौकरी से बर्खास्तगी को उसके दोष के अनुपात से अधिक बताया जा रहा है और अपरोक्ष में इस बर्खास्तगी को इन आरोपों का ही प्रतिफल करार दिया जा रहा है। इन आरोपों और इस बर्खास्तगी पर 250 महिला वकीलों/बुद्धिजीवियों ने एक पत्र लिखकर जिस तर्ज पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है उसका आश्य भी लगभग ऐसा ही है। लेकिन इस सबमें एक बड़ा सवाल जो अनुतरित रह जाता है वह है कि यदि आज प्रधान न्यायधीश अपने पद से अलग हो जाते हैं वह न्यायिक दायितत्व छोड़ देते हैं और फिर यदि जांच में उनके खिलाफ लगाये गये आरोप निराधार साबित हो जाते हैं तो क्या उनका आज पद से अलग होना उन ताकतों की जीत नही होगी जो उन्हे पद से हटाना चाहते हैं।
इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि यह आरोप कब लगे और इन्हें न्यायपालिका पर हमला क्यों कहा जा रहा है इस पूरे प्रकरण से जुडे कुछ आवश्यक तथ्य पाठकों के सामने रखे जायें। इसमें सबसे प्रमुख है आरोप लगाने वाली महिला। यह महिला मई 2014 से सर्वोच्च न्यायालय में सेवारत है। 27 अगस्त 2018 को इसका स्थानान्तरण प्रधान न्यायधीश के आवास स्थित कार्यालय में हुआ। इसके बाद 22 अक्तूबर 2018 को इसका स्थानान्तर सर्वोच्च न्यायालय के रिर्सच और प्लानिंग प्रभाग में हो गया और 22 नवम्बर को पुस्तकालय प्रभाग में स्थानान्तरण हो गया। प्लानिंग प्रभाग में इसके खिलाफ अनुशासनहीनता के आरोप लगे। इन आरोपों की जांच में दोषी पाये जाने पर 21 दिसम्बर 2018 को इसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया। जब अनुशासनहीनता के आरोप लगे और जांच के बाद बर्खास्तगी की सज़ा दी गयी उस दौरान यौन उत्पीड़न के यह कोई आरोप नही लगाये गये। इसी दौरान सर्वोच्च न्यायालय में अनिल अंबानी और ऐरीसन के बीच 550 करोड़ की अदायगी को लेकर अदालत की अवमानना का मामला चल रहा था। इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस विनित सरन की पीठ ने अंबानी को अदालत में पेश होने के आदेश किये थे। यह यह आदेश सर्वोच्च न्यायालय की वैबसाईट पर 7-1-2019 को अपलोड़ हुए। लेकिन अपलोड़ करते हुए आदेश वाक्य "Personal appearance of the alleged contemnor(s) is not dispensed with,"  में से not शब्द छूट गया। यह शब्द छूटने से आदेश का अर्थ ही बदल गया। दस जनवरी को ऐरीसन के प्रतिनिधि इसे अदालत के संज्ञान मे लाये। अदालत ने इसका कड़ा संज्ञान लिया इस कोताई की जांच हुई और इसके लिये सुप्रीम कोर्ट के दो अधिकारियों मानव शर्मा और तपन चक्रवर्ती को नौकरी से बर्खास्त कर दिया। इस मामले में अनिल अंबानी को 12 और 13 फरवरी को अदालत में मौजूद रहना पड़ा और अन्तः ऐरीसन को पैसे देने पड़े।
यह सब होने के बाद अब 19-4-2019 को इस महिला सर्वोच्च न्यायालय के सभी 22 जजों को 20 पन्नों का पत्र लिखकर प्रधान न्यायधीश के खिलाफ यह आरोप लगाये हैं। यह आरोप सामने आने पर प्रधान न्यायधीश ने इसका संज्ञान लेते हुए इसकी सुनवाई के लिये तीन जजों की पीठ का गठन कर दिया। पीठ ने इसकी इन हाॅऊस जांच के साथ ही सेवा निवृत जस्टिस ए के पटनायक को अलग से जांच की जिम्मेदारी सौंपी है। सीबाआई, आईबी और दिल्ली पुलिस कमीशनर को इस जांच में सहयोग करने के निर्देश दिये हैं। जब यह आरोप सामने आये तब उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के ही एक वकील उत्सव वैंस ने एक शपथपत्र दायर करके यह खुलासा किया है कि कुछ लोग उसके पास आये थे और वह इस तरह का एक मामला तैयार करने में उसका सहयोग चाहते थे। इसके लिये वह 1.5 करोड़ उसे देने को तैयार थे। वैंस ने अपने शपथपत्र में अन्य के साथ मानव शर्मा और तपन चक्रवर्ती के नामो का उल्लेख किया है। उत्सव बैंस के शपथपत्र में यह आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय में बैंच फिक्सिंग के धन्धे में लगे हुए हैं। उत्सव का यह आरोप और भी गंभीर है। राफेल प्रकरण भी जनता के सामने है। सर्वोच्च न्यायाल इसमे अपने ही पूर्व फैसले पर पुनः विचार के लिये बाध्य हो गया है।
इस तरह जो कुछ घटा है उसमें यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जिस महिला के साथ उसके पत्र के मुताबिक उत्पीड़न की घटना दस अक्तूबर को घट जाती है इस घटना के बाद अनुशासनहीनता के लिये उसके खिलाफ कारवाई हो जाती है लेकिन उस दौरान यह आरोप नही लगते हैं। अब अंबानी और राफेल जैसे प्रकरण घट जाने के बाद इन आरोपों का लगना एक महज संयोग है या इसके पीछे कुछ और है। यह देश के सामने आना बहुत जरूरी है और जिस तरह से सर्वोच्च न्यायालय ने जांच के कदम उठाये हैं और प्रतिबद्धता दिखाई है उसको सामने रखते हुए यह बहुत संभव है कि महिला पर कोई दबाव रहा हो और यह आरोप सही में न्यायपालिका पर हमले की ही साजिश हो।