देश में राफेल विमान खरीद को लेकर लम्बे समय से बहस चली आ रही है। इस बहस का विषय यह नही है कि यह विमान खरीदे जाने चाहिये या नही। बल्कि बहस यह है कि इस खरीद में भ्रष्टाचार हो रहा है या नहीं। इस खरीद की प्रक्रिया पर सवाल उठाये गये हैं। इस पर उठी बहस के परिणाम स्वरूप यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पंहुच गया। शीर्ष अदालत ने इस पर सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा। सरकार ने सीलबन्द लिफाफे में बिना शपथपत्र के अदालत में अपना पक्ष रखा। शीर्ष अदालत ने सरकार के पक्ष को देखकर 14 दिसम्बर को अपना यह फैसला सुना दिया कि अदालत इसमें कोई हस्तक्षेप नही करना चाहती है। सरकार ने शीर्ष अदालत के इस फैसले को अपने लिये क्लीन चिट करार दिया। लेकिन जब यह फैसला लिखित में बाहर आया तब इसमें यह आया कि इस खरीद की प्रक्रिया और उससे जुड़े सारे दस्तावेज सीएजी और फिर पीएसी के संज्ञान में रहे हैं। पीएसी की अध्यक्षता विपक्ष के सबसे बड़े दल का नेता करता है और लोकसभा में यह दायित्व कांग्रेस नेता खड़गे के पास है। खड़गे ने अदालत में रखे गये तथ्यों पर हैरत जताई और यह एकदम राष्ट्रीय विवाद बन गया। इस पर सरकार ने तुरन्त शीर्ष अदालत में इस फैसले में संशोधन करने का आग्रह कर दिया। सरकार ने इस आग्रह का तर्क दिया कि शीर्ष ने उनके जवाब में प्रयुक्त भाषा और व्याकरण को ठीक से नही समझा है। सरकार के इस आग्रह के बाद शीर्ष अदालत में इस पूरे फैसले पर पुनर्विचार करने की याचिकाएं आ गयी है। इसी बीच इस खरीद प्रक्रिया से जुड़े कुछ दस्तावेज प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक हिन्दु में छप गये।
शीर्ष अदालत के 14 दिसम्बर को आये फैसले पर पुनः विचार के लिये आयी याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। इस सुनवाई के दौरान जब हिन्दु में छपे दस्तावेजों का संज्ञान लेने का प्रश्न आया तब सरकार के अर्टानी जनरल ने यह कह दिया कि यह दस्तावेज रक्षा मन्त्रालय से चोरी हो गये हैं और इनका संज्ञान न लिया जाये। इसी के साथ अर्टानी जनरल ने यह भी कह दिया कि सरकार इस पर चोरी को प्रकरण दायर करने जा रही है क्योंकि यह सरकारी गोपनीय दस्तावेज अधिनियम के तहत एक संगीन अपराध है। अर्टानी जनरल के इस कथन के बाद इस बहस में एक पक्ष यह जुड़ गया कि यदि रक्षा मन्त्रालय में एक फाईल सुरक्षित नही रह सकती तो फिर देश कैसे सुरक्षित रहेगा। इसी के साथ यह भी चर्चा चल पड़ी कि सरकार दस्तावेजों की चोरी का आरोप लगाकर प्रैस की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास करने जा रही है। अखबार पर इस आरोप के माध्यम से उसके सोर्स की जानकारी सार्वजनिक करने का दवाब बनायेगी। स्वभाविक है कि जब भी कोई भ्रष्टाचार का कांड घटता है तो उसके प्रमाण तो दस्तावेजों के रूप में सरकार की फाईलों में ही होते हैं। यह फाईलें भी कोई आम सड़क या चैराहे पर पड़ी नही होती हैं। लेकिन इन फाईलों से जुड़े किसी अधिकारी /कर्मचारी की आत्मा उसे कचोटती है तब वह इस भ्रष्टाचार को उजागर करने का रास्ता खोजता है। इस रास्ते की तलाश में सबसे पहले उसकी नजर प्रैस और पत्रकार पर जाती है। और जब वह सुनिश्चित हो जाता है कि इस माध्यम से यह जानकारी सार्वजनिक रूप से जनता के सामने आ जायेगी तथा उसकी पहचान भी गोपनीय रहेगी तब वह ऐसी जानकारी को सांझा कर पाता है। स्वभाविक है कि इस मामले में भी यही हुआ होगा। क्योंकि यह एक स्थापित सच है कि ‘‘गर तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालों’’ यदि एक अखबार साहस करके एक भ्रष्टाचार से जुड़े बड़े सच को बाहर ला रहा है तो क्या उसे दस्तावेज चोरी करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के नाम पर प्रताड़ित किया जाना चाहिये। शायद नही बल्कि ऐसे हर कदम का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिये।
राफेल खरीद में तीस हजार करोड़ का घपला होने का आरोप लग रहा है। क्या यह तीस हजार करोड़ इस देश के आम आदमी का पैसा नही है। क्या इस इतनी बड़ी चोरी के आरोप की गहन जांच नही होनी चाहिये। जब देश की रक्षा के लिये खरीदे जा रहे इन विमानों की खरीद में इतना बड़ा घोटाला हो रहा है तो क्या उससे देश के आम आदमी के भरोसे को धक्का नही लग रहा है। यदि रक्षा सौदे में ही इतना बड़ा घपला हो रहा है तो फिर देश की सुरक्षा को इससे बड़ा खतरा क्या हो सकता है। पाकिस्तान से तो हमारे सैनिक सामने से लड़ाई लड़ लेंगे लेकिन इन भीतर के भ्रष्टाचारियों से कौन लड़ेगा। आज जब एक अखबार ने भ्रष्टाचार को उजागर करने का इतना बड़ा साहस दिखाया है तो देश के आम आदमी को साथ देना चाहिये। यदि यह दस्तावेज गलत है तो उसके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला कायम किया जा सकता है। यदि यह दस्तावेज सही है तो इस सौदे की गहन जांच होनी चाहिये। क्योंकि जो दस्तावेज सामने आये हैं उनमें राफेल की तकनीकी जानकारीयों की कोई चर्चा नही है। केवल खरीद प्रक्रिया पर सवाल उठाये हैं। यदि आज शीर्ष अदालत इसकी जांच के आदेश नहीं देती है तो इससे आम आदमी के विश्वास को बहुत धक्का लगेगा क्योंकि अब तो अर्टानी जनरल ने भी यह कह दिया है कि दस्तावेज चोरी नही हुए है अखबार में उनकी फेाटो कापी छपि है। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि शीर्ष अदालत अपनी देख रेख में इसकी जांच करवाये।