शिमला/शैल। कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद देश में चार लोकसभा और ग्यारह विधानसभा सीटों के लिये उपचुनाव हुआ है। इस उपचुनाव में भाजपा लोकसभा की तीन और विधानसभा की दस सीटें हार गयी है। कर्नाटक चुनाव के बाद जद(एस) और कांग्रेस ने मिलकर उस समय सरकार बनायी जब भाजपा सदन में अपना बहुमत सिद्ध नही कर पायी। लेकिन भाजपा और उसके पक्षधरों ने जिस तरह से इस गठबन्धन को लोकतन्त्र की हत्या करार दिया तथा इसके तर्क में पूर्व के सारे राजनीतिक इतिहास को जनता के सामने परोसा उसमें लगा था कि अब भाजपा एक भी उपचुनाव अन्य दलों को जीतने नही देगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि वह पिछला उपचुनाव अति विश्वास के कारण हारे हैं लेकिन आगे हम कोई भी सीट नही हारेंगे पूरी ताकत और रणनीति से लड़ेंगे। सही में इस उपचुनाव में योगी सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी यहां तक की बागपत में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की एक रैली तक करवाई। इस रैली में हर तरह की घोषणाएं प्रधानमन्त्री से यहां के लोगों के लिये करवाई। लेकिन इस सब के बावजूद यूपी की दोनों सीटों पर भाजपा हार गयी। बिहार में नीतिश भाजपा की सरकार होने के बावजूद वहां पर आरजेडी भारी बहुमत से जीत गयी।
भाजपा की यह हार क्या विपक्ष की एक जूटता के प्रयासों का परिणाम है या यह हार संघ भाजपा की नीयत -नीति और विचारधारा की हार है। यह एक बड़ा सवाल इन उपचुनावों के बाद विश्लेष्कों के सामने खड़ा हो गया है। क्योंकि भाजपा ने पिछले चुनावों में किसी भी मुस्लिम को अपना उम्मीदवार नही बनाया था। फिर पिछले दिनों जिस तरह तीन तलाक के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया और उसे भाजपा ने केन्द्र सरकार की एक बड़ी सफलता करार दिया तथा दावा किया कि मुस्लिम समाज उनके साथ खड़ा हो गया है। आज यूपी में आरएलडी के उम्मीदवार के रूप में एक मुस्लिम महिला का चुनाव जीत जाना भाजपा के दावे और धारणा दोनों को नकारता है। यूपी से शायद पहली मुस्लिम महिला सांसद बनकर संसद में पहुंची है। इस उपचुनाव से पहले आरएलडी प्रमुख अजीत चौधरी के खिलाफ मुकद्दमा तक दर्ज किया गया। बिहार में लालू परिवार के खिलाफ तो मामले आगे बढ़ाये गये लेकिन नीतिश कुमार के खिलाफ बने आपराधिक मामले में एक दशक से भी अधिक समय से कोर्ट का स्टे चल रहा है। रविशंकर प्रसाद जब विधानसभा चुनावों के दौरान शिमला आये तब उनकी प्रैस वार्ता में मैने उनसे यह सवाल पूछा था। उन्होनें इस स्टे को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया था। यह संद्धर्भ यहां इसलिये प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि बिहार की जनता के सामने लालू और नीतिश -भाजपा में किसी एक को चुनने का विकल्प था। बिहार की जनता ने दूसरी बार लालू की आरजेडी को उपचुनाव में समर्थन दिया है।
इस परिदृश्य में भाजपा की हार का विश्लेषण किया जाना आवश्यक हो जाता है क्योंकि उत्तर प्रदेश के इन उप चुनावों में पचास से अधिक केन्द्रिय मन्त्रीयों की बूथ वाईज़ डयूटीयां लगायी गयी थी। एक मन्त्री राही ने जनता को संबोधित करते हुए यहां तक कह दिया था कि यदि आप भाजपा को वोट नही दोगे तो मै तुम्हे श्राप दे दुंगा और उससे तुम्हें पीलिया हो जायेगा। न्यूज चैनल ने मन्त्री का यह संबोधन लाईव दिखाया था। इसी मन्त्री की तरह संघ भाजपा के कई कट्टर कार्यकर्ता सोशल मीडिया में नेहरू गांधी परिवार को गाली देने के लिये जिस तरह की हल्की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं जिस तरह सेे इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर मनचाही व्यख्या दे रहे उससे उनके मानसिक स्तर का ही पता चलता है। प्रधानमन्त्री स्वयं जिस तरह से कई बार इतिहास की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं और एकदम हल्की भाषा का प्रयोग करते हैं उस पर तो कर्नाटक चुनावों के बाद पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह स्वयं राष्ट्रपति को पत्र लिख चुके हैं। संघ अपने को इस देश की संस्कृति का एक मात्र ध्वज वाहक मानता है। इस देश की सांस्कृतिक विरासत में भाषा की शालीनता सर्वोपरि रही है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज अपने को संघ स्वयंसेवक करार देने वाले सोशल मीडिया की पोस्टों में भाषाई मर्यादा का उल्लंघन कर रहें हैं। ऐसे लोग जिस तरह का झूठ परोस रहे हैं उससे अन्ततः संघ और भाजपा का ही नुकसान हो रहा है। क्योंकि जिस तरह के तथ्य नेहरू गांधी परिवार को लेकर परोसे जा रहे हैं उस पर जनता विश्वास करने की बजाये परोसने वालों के प्रति ही एक अलग धारणा बनाती जा रही है। मेरा स्पष्ट मानना है कि अतार्किक ब्यानों और हल्की भाषा के प्रयोग से केवल यही संदेश जाता है कि आप केवल सत्ता हथियाने के लिये ही ऐसे ओछे हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज यह आम माना जाने लगा है कि भाजपा के आई टी सैल में नियुक्त हजा़रों लोग केवल गोयल के इसी प्रयोग पर अमल कर रहे हैं कि एक झूठ को सौ बार बोलने से वह सच बन जाता है।
आज प्रधानमन्त्री यह दावा कर रहे हैं कि देश में रिकार्ड विदेशी निवेश हुआ है जबकि दूसरी ओर मूडीज़ ने सरकार के विकास दर 7.5% रहने के आकलन को 7.3% आंका है। यदि प्रधानमन्त्री का विदेशी निवेश का दावा सच्च है तो फिर विकास दर तो 8ः से ऊपर होनी चाहिये थी। आज जनता ने प्रधानमन्त्री के दावों और ब्यानों को गंभीरता से लेने की बजाये शुद्ध शब्द जाल करार देना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर अच्छे दिनो का जो भरोसा देश की जनता को दिया गया था वह पूरी तरह टूट चुका है। यूपी के उपचुनावों की हार योगी से अधिक मोदी की हार है। भाजपा के पास मोदी और शाह के अतिरिक्त कुछ भी नही है और यह दोनों अपनी विश्वनीयता तेजी से खोते जा रहे हैं। क्योंकि इस उपचुनाव में कैराना में हुई हार पर भाजपा समर्थकों की यही प्रतिक्रिया आई है कि यह हिन्दुत्व की हार है। ऐसी प्रतिक्रिया पर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या यह चुनाव यह जानने के लिये हो रहा था कि हिन्दु मुस्लिम में से कौन अच्छा इन्सान है या देश की संसद के लिये एक अच्छा सांसद चुनकर भेजने के लिये हो रहा था। इस उपचुनाव में जिस तरह जिन्ना का प्रकरण लाया गया और उसपर मुख्यमन्त्री योगी की यह प्रतिक्रिया आना कि हम यहां पर जिन्ना की फोटो नही लगने देंगे। एक मुख्यमन्त्री की इस तरह का वैचारिक हल्कापन जब सार्वजनिक रूप से सामने आता है तब संगठनों को लेकर एक अलग ही आंकलन का धरातल तैयार होता है आज भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण यही बनता जा रहा है।