दिव्य हिमाचल के शिमला स्थित व्यूरोे चीफ सुनील शर्मा का 19 मार्च को शिमला में उनके आवास पर ह्रदयगति रूक जाने से देहान्त हो गया है। 47 वर्षीय पत्रकार का इस तरह असमय निधन हो जाना उनके परिवार के लिये तो एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई हो पाना कतई संभव नही है। लेकिन यह निधन पत्रकार जगत के लिये भी आसानी से भुला दी जाने वाली घटना नही है। वैसे तो मौत एक निश्चित सच है लेकिन इसके वक्त और बहाने की जानकारी किसी को भी नही हो पाती है। यही रहस्य जीवन को चलाये रखने का भी माध्यम रहता है यह भी सच है। ईश्वर सुनील शर्मा केे परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान करे यही प्रार्थना है।
सुनील शर्मा के निधन का समाचार जैसे ही फैला सारे पत्रकार उनके आवास पर पंहुच गये। पत्रकारों के साथ ही लोक संपर्क विभाग के निदेशक और अन्य अधिकारी तथा मीडिया सलाहकार भी पंहुच गये। मुख्यमन्त्री और शिक्षा मन्त्री भी परिवार के साथ दुःख बांटने पंहुचे। लोक संपर्क विभाग ने सुनील शर्मा के पार्थिव शरीर को अन्तिम संस्कार के लिये बिलासपुर ले जाने हेतु पूरे प्रबन्ध किये। जिलाधीश शिमला ने भी इसमें पूरा सहयोग दिया। मुख्यमन्त्री जब शोक व्यक्त करने के बाद वापिस लौटे तो पत्रकारों ने उनसे आग्रह किया कि सुनील शर्मा के परिवार को सहायता देने के लिये सरकार को कुछ व्यवस्था करनी चाहिये। इस व्यवस्था के नाम पर सुनील शर्मा की विधवा को सरकार में कोई समुचित नौकरी दिये जाने की मांग रखी है। प्रैस क्लब में शोक सभा करने के बाद पत्राकारों का एक प्रतिनिधि मण्डल इस संबंध में मुख्यमन्त्री से मिला भी है। मुख्यमन्त्री ने इस संबध में आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन भी दिया है।
सुनील शर्मा एक दैनिक समाचार पत्र के ब्यूरो चीफ थे। मीडिया को लोक तन्त्र का चैथा खम्भा माना जाता है। सरकार मीडिया को एक अरसे से सुविधाएं देने का दावा करती आ रही है। सुविधा के नाम पर ही प्रैस क्लब के लिये कार्यालय का स्थान दिया गया है। अब ज़मीन भी दी गयी है और उस पर निर्माण के लिए आर्थिक सहायता भी दी गयी है। पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी के नाम जगह दी गयी जहां पत्रकार विहार का निर्माण हुआ है। इस पत्रकार विहार में कितने पत्रकारों के आवास है। कितने पत्रकार वास्तव में ही वहां रह रहे हैं और कितनो ने वहां पर अन्य गतिविधियां चला रखी हैं। कितनों को वहां पर प्लाटों का सही आवंटन हुआ है। इस सबको लेकर राज्यपाल के पास एक शिकायत भी पंहुची हुई है। राज्यपाल ने इस शिकायत को सरकार को कारवाई के लिये भेज दिया है। आज सुनील शर्मा के निधन के साथ इस सारे प्रंसग को इसलिये उठा रहा हूं कि इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि क्या वास्तव में ही पत्रकारों को सुविधा मिल रही है या नही। क्योंकि यदि वास्तव में ही यह सुविधा मिल रही होती तो सुनील शर्मा की विधवा के लिये नौकरी मांगने की आवश्यकता न आती। पत्रकार हाऊसिंग सोसायटी की तरह कर्मचारियों /अधिकारियों विधायकों एवम् अन्य की हाऊसिंग सोसायटीयां है। इसलिये इसे पत्रकारों को सुविधा देना नही कहा जा सकता। प्रैस क्लब भी इस तरह सुविधा में नही गिना जा सकता। स्वास्थ्य चिकित्सा के नाम पर बीमा सुविधा एक सुविधा है लेकिन इसका लाभ बिमारी की सूरत में ही है।
इसलिये यदि सरकार और समाज वास्तव में ही मीडिया को लोकतन्त्र का चैथा स्तम्भ मानता है तो इसे मजबूत करने और सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। मीडिया को भी व्यवहारिक तौर पर लोकतन्त्र के एक सजग प्रहरी की भूमिका में आना होगा। आज मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठते जा रहे हैं। ग्लोबल ट्रस्ट इंडेक्स द्वारा पिछले दिनों किये गये सर्वे के अनुसार मीडिया और सरकार पर जनता के भरोसे में लगातार कमी आती जा रही है। कैम्ब्रिज ऐनेलिटिका और फेसबुक को लेकर विश्वस्तर पर अभी जो बहस उठी है वह एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। पिछले चुनावों में कैम्ब्रिज ऐनेलिटिका का इस्तेमाल करने पर भाजपा और कांग्रेस दोनो एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। फेसबुक को लेकर भी इन दोनों पार्टियों ने गंभीर आशंकाएं व्यक्त की हैं और फेसबुक को चेतावनी भी जारी की है। मीडिया जब अपनी सही भूमिका को छोड़कर कवेल व्यापार बनकर काम करता है प्रायोजित हो जाता है तब अन्ततः समाज और सरकार दोनो का ही अहित होता है। आज मीडिया पर पंूजीपति घरानो का कब्जा बढ़ता जा रहा है। अब तो सरकार ने मीडिया में विदेशी निवेश को पूरी छूट दे दी है। इस परिदृश्य मंे पत्रकार कितनी देर अपनी निष्पक्षता को बनाये रखेगा यह एक बड़ा सवाल खड़ा होता जा रहा है।
पत्रकार जब अपनी निष्पक्षता को छोड़कर केवल प्रायोजित माऊथपीस होकर रह जाता है तब वह जनता का भरोसा खोना शुरू कर देता है। हमारेे ही प्रदेशों में इसका स्पष्ट उदाहरण है कि शान्ता, वीरभद्र और धूमल तीनो के ही गिर्द एक पत्रकार विशेष का वर्ग घूमता रहा है। इनका सलाहकार होने का दावा करता है। मीडिया सरकारों को सर्वश्रेष्ठता के आवार्ड देता रहा है लेकिन इस सबका परिणाम यही रहा कि कोई भी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी नही कर पाया। सबके घोषित अघोषित मीडिया सलाहकार रहे हैं और परिणाम सबके सामने रहा है। आज इस दुःखद अवसर पर यह सारा प्रसंग उठाने की आवश्यकता इसलिये मान रहा हूं कि जयराम सरकार ने भरोसा दिया है कि वह इस परिवार की सहायता के लिये अवश्य ही कुछ करेंगे। इसलिये यह आशा और आग्रह है कि इस सद्धंर्भ में कोई स्थायी नीति बनाई जाये जो स्वतः ही हर पत्रकार पर लागू हो जाये। किसी के लिये भी अलग से कोई आग्रह न करना पड़े। इसके लिये सरकार को अपनी मीडिया पाॅलिसी पर नये सिरे से विचार करना होगा जिसमें मीडिया के दुरूपयोग भी स्वतः ही रूक जाये इसके लिये अलग से चिन्ता करने की आवश्यकता ही न रहे। आज सुनील की विधवा के लिये रोज़गार मांगने की आवश्यकता क्यों आ रही है क्योंकि जिस घराने में वह काम कर रहे थे उसकी ओर से ऐसा कोई ऐलान नही आया है।