शिमला/शैल। पंजाब नैशनल बैंक का स्कैम सामने आने के बाद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पूरी सरकार बैंक फुट पर आ गयी है। जो भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त करने का ऐजैण्डा लेकर चली थी वह आज भाजपा शासित राज्यों राजस्थान और मध्यप्रदेश में लोकसभा व विधानसभा के उपचुनाव हार गयी है और वह भी कांग्रेस के हाथों। इस बैंक स्कैम के सामने आने के बाद जिस तरह से कुछ भाजपा नेताओं ने इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं देते हुए इसके लिये पूर्व की कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराया उससे ही पूरी मोदी सरकार स्वतः ही सन्देह के घेरे में आ जाती है। क्योंकि इस स्कैम की जांच उस समय शुरू हुई जब इसका मुख्य आरोपी देश छोड़कर भाग गया। यही नहीं जब नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी की निकटता की चर्चा उठी तब इस स्कैम की जांच एसआईटी से करवाई जाने के लिये एक जनहित याचिका दायर हुई तब सरकार केे अर्टानी जनरल के.के. बेनुगोपाल ने एसआईटी गठित जाने को यह कहकर स्वीकार कर दिया कि इसकी जांच ठीक हो रही है।
इस समय जो जांच हो रही है वह सीबीआई कर रही है और वह इस पक्षपर जांच नही करेगी कि नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी में कोई निकटता रही है तथा उसका लाभ नीरव मोदी ने उठाया है। जबकि आरोप यह लगेे है कि प्रधानमन्त्री जब बर्लिन के दौर पर थे उस समय नीरव मोदी की ब्रांड एम्बेसेडर प्रियंका चोपड़ा प्रधानमन्त्री से मिली थी और इस मिलने की व्यवस्था नीरव मोदी ने की थी। राफेलडील कोे लेकर जो आक्रामकता राहूल गांधी ने दिखाई है वह बेबुनियाद नही है। चर्चा है कि इस सौदेे में भी नीरव मोदी की भूमिका है। प्रधानमन्त्री को जो पांच लाख का कोट भेंट किया गया था वह भी नीरव मोदी के ही किसी ने दिया था और बाद में उसकी नीलामी में भी उसी की भूमिका रही है। यह आरोप भी उछला है कि इस बैंक स्कैम की जानकारी पीएमओ को 2015 में ही हो गयी थी 2016 में तो नीरव मोदी और मेहुल चैकसी के बारे में बैंगलूरू के एक उद्यमी हरि प्रसाद ने प्रधानमन्त्री कार्यालय को दे दी थी लेकिन जांच नही हुई इससे यही प्रमाणित होता है कि नीरव मोदी और प्रधानमन्त्री के बीच निकटता रही है। इन सारे सन्देहों की जांच तो केवल एसआईटी ही कर सकती थी लेकिन यह जांच न होने देकर इन आरोपों को और हवा मिलती है।
फिर अब जब सत्तापक्ष इस स्कैम की शुरूआत कांग्रेस के कार्यालय से कर रहा है तब वह यह भूल रहा हैं कि आरोपी कांग्रेस के समय में नही बल्कि मोदी-भाजपा के कार्यालय में भागा है। कांग्रेस के कार्यालय में तो वह बैंक को पैसे लौटाता रहा जो उसने मोदी की सरकार आने के बाद बन्द कर दिये। यह तो संभव हो सकता है कि जब वह कांग्रेस के कार्यालय से व्यवसाय कर रहा था तो इसके संबंध कांग्रेस के नेताओं से भी रहे होंगे क्योंकि हर व्यवसायी हर पार्टी से अपने रिश्तेे रखता है और उसे चंदा भी देता है। यह बिजनैस मैन का स्वभाव होता है लेकिन इससे उस पार्टी और नेता को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है। फिर देश में सत्ता परिवर्तन तो तभी हुआ जब कांग्रेस और सहयोगीयों को भ्रष्टाचार का पर्याय करार दे दिया गया था। लेकिन मोदी और भाजपा को इसीलिये सत्ता सौंपी गयी थी कि वह पूरी चैकसी रखेंगे परन्तु इसी चैकसी में ललित मोदी, विजय माल्या तथा नीरव मोदी देश छोड़कर भागे क्यों? 2जी स्कैम जिसे यूपीए सरकार का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया गया था उसमें प्रारम्भिक गिरफ्तारियां तो मनमोहन सिंह के ही कार्यालय में हुई थी लेकिन उसकी पूरी जांच और अदालत में पैरवी तो मोदी शासन में हुई और सारे लोग बरी हो गये।
इस पृष्ठभूमि में यदि मोदी के कार्यालय का आंकलन किया जाये तोे सरकार किसी भी कसौटी पर खरी नही उतरती है क्योंकि जो 12 लाख करोड़ का कालाधन होना अन्ना आन्दोलन में प्रचारित किया गया था जिसके वापिस आने से 15-15 लाख हर खाता धारक को दिये जाने का वायदा किया गया था वह सब हवाई निकला। यही नही अब तो नोटबंटी को लेकर यह धारणा पक्कीे हो गयी है कि यह कदम हर आदमी की जमापूंजी को इस माध्यम से बैंको में वापिस लाने का सफल प्रयास था। इसी पैसे के दम पर एनपीए से संकट में आये बैंको को ‘बेल इन’ का प्रावधान लाकर उबारने का माध्यम बनाया जा रहा था। इसी एनपीए से उबारने के लिये पांच बैंको का 67000 करोड़ राईट आॅफ कर दिया गया और सरकार ने स्पष्टीकरण दिया यह माफ नही किया गया है। क्या राईटआॅफ करने के बाद यह कर्जदार इस पैसे को बैंको को वापिस दे देंगे? यह तो एक सामान्य सी समझ की बात है कि जब कोई कर्ज नीयत समय के भीतर वापिस न किया जाये वह 90 दिन केे बाद एनपीए हो जाता है और जब इसके वापिस आने की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती है तब इसे राईटआॅफ कर दिया जाता है। यह एनपीए आज 6लाख करोड़ से भी अधिक हो चुका है और यह धन बहुत कम लोगों के पास है लेकिन यह सब समाज के बड़े और प्रतिष्ठित लोग हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही इनकी दांयी और बांई जेब में होतेे हैं। यदि निष्पक्षता और ईमानदारी से देखें तो सरकार का हर बड़ा फैसला परोक्ष/अपरोक्ष में इन्ही के लिये लिया जाता है। आज जो बड़ी कंपनीयां और उद्योगपति अपने को दिवालीया घोषित किये जाने के आवेदन कर रहे हैं वह लोग दिवालीया घोषित होने के बाद भुखमरी और आत्महत्या केे कगार पर आ जायेंगेे? नही। उनके पास पीढ़ीयों तक हर साधन उपलब्ध रहेंगे। दिवालीया घोषित होना तो अप्रत्यक्षत कुछ पैसे को अपरोक्ष में डकारने का माध्यम है क्योंकि उनके लियेे यह प्रावधान किया गया है। भुखमरी और आत्महत्या तो गरीब किसान के हिस्से में है। आज जब सरकार ने 95 करोड़ से ऊपर के हर कर्ज की जांच किये जाने की बात कही है तो क्या यह सुनिश्चित किया जायेगा कि पब्लिक का कोई पैसा एनपीए नही होने दिया जायेगा। ‘बेल-इन’ और ‘बेल आऊट’ जैसे प्रावधान नही लाये जायेंगे। क्योंकि जब परोक्ष-अपरोक्ष में पब्लिक मनी को डकराने के प्रावधान किये जाते हैं तो उसका लाभ उठाने वाले पहले ही तैयार खड़े मिलते हैं। इसलिये आज पीएनबी का स्कैम सामने आने के बाद वित्तिय मामलों में प्रधानमन्त्री मोदी को अपनी विश्वसनीयता बहाल रखने के लिये अपनी सरकार के फैसलों पर फिर से विचार करना होगा अन्यथा समय मोदी और भाजपा दोनों को ही क्षमा नही करेगा।