शिमला/शैल। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के दौरान जब‘‘हिमाचल मांगे हिसाब’’ जारी किया था तो उसमें एक आरोप यह भी उठाया गया था कि प्रदेश लोक सेवा आयोग में मीरा वालिया की नियुक्ति नियमों के विरूद्ध है। इस नियुक्ति को लेकर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में उस समय आ चुकी थी। बल्कि इस याचिका में अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठाये गये हैं। याचिका में सवाल इसलिये उठाये गये हैं क्योंकि पंजाब लोक सेवा आयोग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचे एक मामलें में 15 फरवरी 2013 को आये फैसले में स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं कि प्रदेशों में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के आधार क्या होने चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश इसलिये जारी किये हैं कि लोक सेवा आयोग राज्यों की शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं के लिये पात्र उम्मीदवारों का चयन करता है। इसलिये यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि इन संस्थानों में लगने वाले अध्यक्ष/सदस्यों की नियुक्ति के आधार पूरी तरह स्पष्ट और परिभाषित हों। सर्वोच्च न्यायालय का यह 103 पृष्ठों का फैसला न्यायमूर्ति जस्टिस ए.के.पटनायक और जस्टिस मदन वी लोकुर की खण्डपीठ का है।
इस फैसलें में परिभाषित मानकों और प्रक्रिया के आईने में प्रदेश के वर्तमान लोक सेवा आयोग का चयन और गठन एकदम इस फैसलें में तय प्रक्रिया से एकदम भिन्न है। क्योंकि यह फैसला 15 फरवरी 2013 को आ गया था और आज आयोग में अध्यक्ष से लेकर सदस्यों तक सबकी नियुक्तियां इस फैसलें के बाद हुई हैं। स्मरणीय है कि पंजाब लोक सेवा आयोग में लगाये गये अध्यक्ष की नियुक्ति को पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौतीे दी गयी थी तब इस नियुक्ति को उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। तब पंजाब सरकार इस फैसलें की अपील में सर्वोच्च न्यायालय गयी और इस पर 15 फरवरी 2013 को फैसला आ गया। भाजपा ने विधानसभा चुनावों के दौरान इसी फैसलें के आधार पर मीरा वालिया की नियुक्ति को नियमों के विरूद्ध करार दिया था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि मीरा वालिया की नियुक्ति नियमों के विरूद्ध थी तो फिर उसी गणित में डा. रचना गुप्ता की नियुक्ति सही कैसे हो सकती है। यही नहीं सरकार ने यह नियुक्ति करने के लिये पहले वाकायदा दो पद सदस्यों के सृजित किये और एक पर उसी दिन नियुक्ति भी कर दी। डा. रचना गुप्ता के पहले इसी आयोग में पत्राकार के. एस. तोमर अध्यक्ष रह चुके हैं। इसलिये पत्रकार तोमर की नियुक्ति हो या अब रचना गुप्ता की हो । इस पर व्यक्तिगत रूप से किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती और इसी गणित में मीरा वालिया की नियुक्ति से भी आपत्ति का कोई प्रश्न नही हो सकता। यह सभी लोग अपने में योग्य हैं लेकिन इन नियुक्तियों पर सवाल तो भाजपा के हिसाब मांगने से लगे हैं। ऐसे में अब अपने ही लगाये आरोप को नज़रअन्दाज करके की गयी इस नियुक्ति पर तो भाजपा को ही हिसाब देना है।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या रहा है इसकी जानकारी मुख्यमन्त्री को नही हो सकती यह स्वभाविक और संभव है। लेकिन इस फैसलें की जानकारी मुख्यमन्त्री कार्यालय और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों को भी नही रही हो ऐसा नहीं माना जा सकता। बल्कि इस मामलें में तो प्रदेश उच्च न्यायालय में पहले से ही एक याचिका लंबित है और उसमें सरकार की ओर से जवाब भी दायर किया गया है। इसलिये यह स्वभाविक है कि जब दो पदों के सृजन का मामला मन्त्रीमण्डल के पास गया होगा तब उच्च न्यायालय में लंबित मामलें की जानकारी भी रिकार्ड पर लायी गयी होगी। ऐसे में यह एक और सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या सरकार ने तथ्यों को नज़र अन्दाज करके पदों के सृजन और फिर नियुक्ति को हरी झण्डी दी या अधिकारियों ने सही स्थिति ही सामने नही रखी। जो भी स्थिति रही हो लेकिन इस पूरे मामलें को जिस तरह से अंजाम दिया गया है उससे सरकार की अपनी ही स्थिति बुरी तरह हास्यस्पद बन गयी है।